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बुधवार, 18 अगस्त 2010

पूंजी का अनियोजित निवेश विकास को अवरुद्ध करता है

गर तेजी से विस्तार पा रहे हैं। लेकिन केन्द्र और राज्य सरकारों के नगरीय विकास विभाग इस विस्तार से आँख मूंदे बैठे हैं। लोग नगरों में शरण पाते हैं तो उन्हें रहने को छप्पर तो चाहिए ही। रोजगार मिलने के बाद सब से पहले आदमी यही सोचता है कि उसे एक छत मिल जाए। वह उस की तलाश में लग जाता है। वह किराए का घर लेता है। जो हमेशा उस की जरूरत से बहुत छोटा होता है। जैसे तैसे कुछ बचाता है और एक अपना घर बनाने की जुगाड़ में लग जाता है। नगरों में जमीनें कीमती हैं और उस के बस की नहीं। लेकिन अपने घर की चाह बनी रहती है
सी चाह का लाभ उठाते हैं वे लोग जिन के पास लाठी है, जिनकी लाठी की राजनीतिज्ञों को जरूरत होती है और जिन के पास कुछ पैसा भी है। वे जमीनों पर कब्जा करते हैं, झुग्गियाँ डालते हैं और उन्हें किराए पर उठाते हैं, बेच भी देते हैं। सस्ती झुग्गी खरीद कर आदमी उसे पक्की करने में जुट जाता है। यह झुग्गी हमेशा अवैध होती है जब तक कि पूरी बस्ती के वोटों का दबाव सरकार पर नहीं बन जाता है। हमारे नगरीय विकास विभाग इन झुग्गियों के न बसने का और लोगों को आवास मुहैया कराने का कोई माकूल इलाज आज तक नहीं निकाल पाए। 
धर अनेक स्तरों वाला मध्यवर्ग भी बहुत बड़ा है, उसे झुग्गियाँ पसंद नहीं वह सस्ती जमीन चाहता है। नगरों के आसपास की खेती की जमीनें किसान बेच रहे हैं। उन्हें ऐसे ग्राहक मिल जाते हैं जो उन्हें इतना पैसा देने को तैयार हैं जिस से बेचना फायदे का सौदा हो जाए। खरीदने वाले लोग जमीन पर भूखंड बनाते हैं और फिर बेच देते हैं। वे अपना पैसा जल्दी निकालना चाहते हैं। सभी भूखंड जल्दी ही बिक जाते हैं। जब पहली बार ये भूखंड बिकते हैं तो बस्ती नहीं होती है। इन भूखंडों को वे ही लोग खरीदते हैं जिन के पास पैसा है और उन्हें खरीद कर छोड़ देते हैं, तब तक के लिए जब तक कि उन का अच्छा पैसा न मिलने लगे। फिर कोई जरूरतमंद आ कर उन पर मकान बनाता है। उसे देख कर कुछ लोग और आते हैं और मकान बनने लगते हैं। जमीन की कीमत बढ़ने लगती है। जब कुछ मकान बन जाते हैं तो लोग उसे बसती हुई बस्ती मान कर वहाँ अपने लिए कोई भूखंड खरीदने जाने लगते हैं। भूखंडों का बाजार बनने लगता है। लेकिन उन्हें उस कीमत में भूखंड नहीं मिलता जिस पर वे लेना चाहते हैं, जितनी उन की हैसियत है। उन की हैसियत के मुताबिक कीमत पर भूखंड मिलता है तो वहाँ जहाँ अभी बस्ती बसने नहीं लगी है। नगरों के आस पास मीलों तक के खेत बिक चुके हैं। उन पर भूखंड बना दिए गए हैं, बेच दिए गए हैं। लेकिन बस्तियाँ नहीं बस रही हैं। लोग बसना चाहते हैं। लेकिन वाजिब कीमत पर जमीन नहीं है। 
ध्य और उच्च मध्यवर्गीय लोगों की इन भूखंडों में करोड़ों-अरबों की पूंजी लगी है। इस पूंजी ने जो आवासीय योजनाएँ खड़ी की हैं। उन में न बाजार हैं और न ही अन्य सुविधाएँ। इन्हें लोग अपनी मरजी और जरूरत के अनुसार बना ही लेंगे। लेकिन पार्क और खेलने के स्थान? वे इन में कभी नहीं होंगे। भूखंडों को उन के मालिक  तब बेचेंगे जब उन की मर्जी के मुताबिक भाव मिलेगा। पूंजी के इस अनियोजित निवेश ने नगरों की बस्तियों के विकास को अवरुद्ध और बेतरतीब कर दिया है। सरकारों को इस से क्या? भारत तो इसी तरह निर्मित होगा, अनियोजित और अव्यवस्थित।

10 टिप्‍पणियां:

  1. पूंजी के इस अनियोजित निवेश ने नगरों की बस्तियों के विकास को अवरुद्ध और बेतरतीब कर दिया है।
    आपने नगरीय नियोजन की की एक विषम होती समस्या की ओर ध्यान आकृष्ट किया है ...कौन सुनेगा ?

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  2. अनियोजित व अनियन्त्रित विकास का ही फल है कि आजादी के बाद से एक भी नया बड़ा नगर नहीं बना पाये हैं और पुराने नगर बजबजा रहे हैं।

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  3. अनियोजन , देश के विकास का सबसे बड़ा बाधक है ! सुचिंतित आलेख !

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  4. सटीक और सामयिक आलेख पर सारे ताऊ बहरे हैं, दूसरे की सुनने वाला कान खराब है.

    रामराम

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  5. नमस्कार,

    हिन्दी ब्लॉगिंग के पास आज सब कुछ है, केवल एक कमी है, Erotica (काम साहित्य) का कोई ब्लॉग नहीं है, अपनी सीमित योग्यता से इस कमी को दूर करने का क्षुद्र प्रयास किया है मैंने, अपने ब्लॉग बस काम ही काम... Erotica in Hindi. के माध्यम से।

    समय मिले और मूड करे तो अवश्य देखियेगा:-

    टिल्लू की मम्मी

    टिल्लू की मम्मी -२

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  6. इसका हल तब निकलेगा जब कोई निकलना चाहे ,इन झुग्गियों के पुनर्वास के नाम पर सिर्फ दिल्ली में ही कड़ोरों का भ्रष्टाचार कर राजनितिक पार्टियाँ हर वर्ष अपना पार्टी फंड मजबूत करती है...ये झुग्गियां इनके लिए सिर्फ पैसा ही नहीं बल्कि सत्ता में बैठने में भी अहम् रोल निभाती है ,शर्मनाक है जिनपर जिम्मेवारी है मानवता के उद्धार की वही मानवता को अपने फायदे के लिए नरक की ओर धकेलने का काम करती है ...

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  7. बहुत सही कहा आपने....
    "भारत तो इसी तरह निर्मित होगा, अनियोजित और अव्यवस्थित।"

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