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शुक्रवार, 29 जनवरी 2010

हिन्दी ब्लागीरी बिना पढ़े और पढ़े हुए पर प्रतिक्रिया किए बिना कुछ नहीं


निवार को अविनाश वाचस्पति कह रहे थे कि रविवार को अवकाश मनाया जाए। कंप्यूटर व्रत रखें, उसे न छुएँ। मोबाइल भी बंद रखें। लेकिन रविवार को उन की खुद की पोस्ट पढ़ने को मिल गई। हो सकता है उन्हों ने अवकाश रखा और पोस्ट को शिड्यूल कर दिया हो। लेकिन कभी कभी ऐसा होता है कि अवकाश लेना पड़ता है। कल शाम अदालत से घर लौटा तो ब्रॉड बैंड चालू था। कुछ ब्लाग पढ़े भी। लेकिन फिर गायब हो गया और वह भी ऐसा कि रात डेढ़ बजे तक नदारद रहा। मुझे कुछ अत्यावश्यक जानकारियाँ नेट से लेनी थीं। काम छोड़ना पड़ा। सुबह उठ कर देखा तब भी नदारद थ, लेकिन कुछ देर बाद अचानक चालू हो गया। मैं ने पहले जरूरी काम निपटाया तब तक अदालत जाने का समय हो गया। हो गया न एक दिन का अवकाश। यही कारण था कि कल ब्लागजगत से मैं भी  नदारद रहा। आज शाम ब्रॉडबैंड चालू मिला। अपने पास एकत्र कानूनी सलाह के सवालों में से एक का उत्तर दिया। फिर कुछ काम आ गया तो वहाँ जाना पड़ा। लौट कर पहले अपने काम को संभाला। अब कुछ फुरसत हुई तो ब्लाग मोर्चा संभाला है।
ह तो थी जबरिया छुट्टी। लेकिन 'दुनिया में और भी मर्ज हैं इश्क के सिवा'। हो सकता है आज की यह पोस्ट अनवरत पर इस माह की आखिरी पोस्ट हो। कल शाम जोधपुर के लिए निकलना है। वहाँ बार कौंसिल की अनुशासनिक समिति की बैठक है जिस में किसी वकील की शिकायत पर सुनवाई करनी होगी। मुझे इस समिति का सदस्य चुना गया है। समिति में चेयरमेन सहित तीन सदस्य हैं। तीनों को सुनवाई के उपरांत निर्णय करना होगा। यदि वकील साहब दोषी पाए गए तो उन्हें दंड भी सुनाना होगा। यह सब एक ही सुनवाई में नहीं होगा। कुछ बैठकें हो सकती हैं। अब हर माह कम से कम एक दिन यह काम भी करना होगा। तो माह में कम से कम दो दिन का अवकाश तो इस काम के लिए स्थाई रूप से हो गया। यह हो सकता है कि उस दिन के लिए पोस्ट पहले से शिड्यूल कर दी जाएँ।  
मैं लौटूंगा 31 जनवरी को। लेकिन उसी दिन दिल्ली जाना होगा। वहाँ जर्मनी से आ रहे ब्लागर राज भाटिया जी से मुलाकात होगी। मैं तीन फरवरी को लौटूँगा। लेकिन आते ही एक पारिवारिक विवाह में व्यस्त होना पड़ेगा। जिस से पाँच फरवरी की देर रात को ही मुक्ति मिलेगी। इतनी व्यस्तता के बाद इतने दिनों के वकालत के काम को संभालना भी होगा। अब आप समझ गए होंगे कि अपनी तो ब्लागीरी से लगभग सप्ताह भर की वाट लगने जा रही है।  इस बीच यदि समय और साधन मिले तो ब्लागीरी के मंच पर किसी पोस्ट के माध्यम से मुलाकात हो जाएगी। लेकिन इस बीच ब्लाग पढ़ना और अपने स्वभाव के अनुसार टिप्पणियाँ करने का शायद ही वक्त मिले। इस का मुझे अफसोस रहेगा। हिन्दी ब्लागीरी बिना पढ़े और पढ़े हुए पर प्रतिक्रिया किए बिना कुछ नहीं है। यही शायद उस के प्राण भी हैं। यही बिंदु हिन्दी ब्लागीरी को अन्य किसी भी भाषा की ब्लागीरी से अलग भी करता है। 

13 टिप्‍पणियां:

  1. परम आदरणीय वकील साहब, आपकी जोधपुर यात्रा का पता चला. मुझे खुशी होगी कि इस दौरान आपसे मुलाकात का मौका मिल सके.

    हरि शर्मा
    उप प्रबन्धक
    भारतीय स्टेट बैक
    सी सी पी सी जोधपुर

    9001896079

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  2. आप की यात्रा शुभ हो, बाकी बाते मिलने पर, आज का लेख ओर मोडम देख कर अच्छा लगा..टिपण्णियां भी जरुरी नही, शायद कल मेरी भी आखरी टिपण्णियां हो इस महिने की, फ़िर वापिस आ कर देखूंगा.
    धन्यवाद

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  3. व्यस्ततावश ब्लागजगत से दूर रहिए, पर कहां रह पाएंगे। ब्लाग जगत को भी खबर होती है। ब्लाग जगत क्या पोस्ट पढ़ने, टिप्पणी करने और पब्लिश करने जितना जितना छोटा है क्या?

    हम अब 31 को दिल्ली न पहुंच कर 5 की सुबह पहुंचेंगे। और 7 फरवरी तक अपना काम निपटाएंगे, सो आपसे मुलाकात नहीं हो पाएगी। अलबत्ता कुछ अन्य साथियों से मिलने की कोशिश रहेगी। बेहतर जगह तो पुस्तक मेला भी हो सकती है।

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  4. चुनींदा पढ़ना ज़रूरी है। टिप्पणी भी ज़रूरी नहीं।
    ब्लाग संवाद कम और अभिव्यक्ति ज्यादा है। संवाद मंच तो बहुतेरे हैं।

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  5. चलिए, जैसी सहूलियत रहे, वैसा करियेगा. दिल्ली में फोटू वगैरह जरुर ले लिजियेगा. :)

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  6. द्विवेदी सर,

    शायद अब ब्लॉगिंग के लिए भी अब ऐसी ही अनुशासन समिति बनाने का वक्त आ गया है...

    जय हिंद...

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  7. छुट्टी भी जरुरी है उसके बाद काम भी जरुरी है।
    दोनो साथ ही लगा है वकील साब्। आभार

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  8. दिवेदी जी आप ने सही कहा। । आपकी यात्रा सफल हो भाटिया जी से मिलने का मन तो था मगर ट्रेन मे रिज़र्वेशन नही मिली। इस लिये स्वास्थ्य भी ऐसा नहीं कि बस मे आ सकूँ । उन से कहा भी था कि आऊँगी मगर मेरी तरफ से क्षमा माँग लें धन्यवाद शुभकामनायें

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  9. हां आपने उत्तम विचार व्यक्त किये हैं. तालमेल बिठाना तो जरुरी है.

    रामराम.

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  10. जरूरी तो कुछ भी नहीं पर कुछ चुनिन्दा ब्लॉग ना चाहते हुए भी पढ़े जाते हैं, जैसे मैंने कल रात को सोचा दिन रात कंप्यूटर के सामने... ! तो कल लैपटॉप ओन नहीं किया... और लेटे-लेटे २ घंटे आईपॉड पर ब्लॉग पढता रहा ! :)

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  11. दुश्यंत जी का शेर याद आ गया ....
    एक आदत सी बन गई है तू
    और आदत कभी नहीं जाती ।

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कैसा लगा आलेख? अच्छा या बुरा? मन को प्रफुल्लता मिली या आया क्रोध?
कुछ नया मिला या वही पुराना घिसा पिटा राग? कुछ तो किया होगा महसूस?
जो भी हो, जरा यहाँ टिपिया दीजिए.....