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रविवार, 31 जनवरी 2010

हरि शर्मा जी से एक मुलाकात

क दिन की जोधपुर यात्रा से आज सुबह लौटा हूँ और अब फिर से सामान तैयार हैं शोभा सहित रवाना हो रहा हूँ, फरीदाबाद के लिए। उसे बेटी के पास छोड़ मैं निकल लूंगा दिल्ली। वहाँ राज भाटिया जी से भेंट होना निश्चित है। और किस किस के साथ भेंट हो सकेगी यह तो यह तो वहाँ की परिस्थितियों पर ही निर्भर करेगा।
क दिन की यह जोधपुर यात्रा बार कौंसिल राजस्थान की अनुशासनिक समिति की बैठक के सिलसिले में हुई। इस के अलावा मुझे एक दावत में भी शिरकत करने का अवसर मिला जिस में कानूनी क्षेत्र के बहुत से लोग सम्मिलित थे। लेकिन उस का उल्लेख फिर कभी। 
कोटा से निकलने के पहले जोधपुर के ब्लागर श्री हरि शर्मा का मेल मिला था। मेरे पास समय था। मैं ने काम से निपटते ही उन्हे फोन किया तो पता लगा कि रात को एक दुर्घटना में उन्हें चोट पहुँची है और कार को भी हानि हुई है। उन के सर में एक टांका भी लगा है। पूछने पर पता लगा कि वे अपनी ड्यूटी पर बैंक में उपस्थित हैं। उन का बैंक नजदीक ही था मैं पैदल ही उन से मिलने चल दिया। रास्ते में अटका तो वे खुद लेने आ गए। हरि शर्मा जी के साथ करीब एक घंटा बिताया। वे बात करते हुए भी लगातार अपना बैंक का काम निपटाते रहे। उसी बीच अविनाश वाचस्पति जी से भी बात हुई। हरि शर्मा जी से मिल कर अच्छा लगा।  मैं ने उन्हें बताया कि मुझे तो अब जोधपुर निरंतर आना पड़ेगा। तो कहने लगे कि अब की बार जब भी समय होगा कोई ऐसा कार्यक्रम बना लेंगे जिस से अधिक ब्लागीर एक साथ मिल सकें। हम ब्लागीरों को इस काम में अपना समय लगाने को व्यर्थ समझने वाले लोगों के लिए आभासी संबंधों वाले लोगों को वास्तविकता के धरातल पर एक साथ देखना एक विचित्र अनुभव हो सकता है।

13 टिप्‍पणियां:

  1. दिनेश जी अबकी बार जोधपुर जायें तो वहां मिर्ची बङे जरूर खाकर आना आप याद करेंगे....

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  2. खम्मा घणै सा, म्हारी भी हरि शर्मा जी स्युं काल ही मुलाकात हुई। म्हाने तो चो्खा लाग्या।

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  3. हरि शर्मा जी आपकी मुलाकात के विषय में जानकर अच्छा लगा.

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  4. अछ्छी रही मुलाकात

    ब्लॉगर मिलन में अपना समय लगाने को व्यर्थ समझने वाले लोगों के लिए
    आभासी संबंधों वाले लोगों को वास्तविकता के धरातल पर एक साथ देखना एक विचित्र अनुभव हो सकता है।


    आपसे सहमत

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  5. मिहिरभोज के सुझाव पर भी ध्यान दीजिये :)

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  6. टांका हटे तो टांका भिड़े। एक द्विवेदी जी का भिड़ा। टांका लगवाना कोई नहीं चाहता पर भिड़ाना सब चाहते हैं। टांके टांके का फेर है। हरि शर्मा तो अपने हरि ही हैं और हरि यानी भगवान, तू मान चाहे न मान। अब की अच्‍छे से ले पहचान।

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  7. आज की पोस्ट का फ़्लेवर बडा आत्मिय लगा, बहुत आभार आपका और हरि शर्मा जी से रुबरु होने क अवसर मिला.

    रामराम.

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  8. बहुत अच्छा लगा इस जानकारी को पढ कर धन्यवाद्

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  9. द्विवेदी जी , आपकी इस यात्रा का उद्देश्य पूर्ण हुआ और साथ ही हरि शर्मा जी से आपकी भेंट के बारे मे जानकर प्रसन्नता हुई । हरि जी चोट के बावज़ूद बैंक मे काम कर रहे हैं यह जानकर अच्छा नहीं लगा .. धन्य है वह बैंक जो घायल लोगों से भी काम करवा लेती है ।

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  10. श्रद्धानवत.

    मेरे लिये ये कुछ विशेष छण थे जब एक बहुत ही सुलझे हुए ब्लोगर और कानून के महारथी दिनेश जी से रूबरू मिलने का मौका मिला.

    अच्छा तो ये हो कि इस पोस्ट की प्रति-पोस्ट लगा के मै आभार प्रकट करू उन सभी का जिन्होने मेरी इस मुलाकात से टिप्पणी के माध्यम से अपने को जोडा है.

    ललित जी और अविनाश जी से तो नित्य बात होती ही रहती है उडन तश्तरी पे सवार समीर लाल जी और निर्मला जी का भी आशीर्वाद टिप्पणी के माध्यम से मिलता ही रहता है. मिहिर भोज जी का कहना सही है मिर्ची बडे खाये बिना जोधपुर यात्रा अधूरी है. सन्जीत भाई, पाबला जी, अली जी, मनोज जी, ताऊ जी आप सबको भी पढते रहते है आशा है आगे कभी सम्पर्क बढेगा.

    शरद कोकस जी आप तो हमारी बैक से रिटायर हो गये पर पता है कि टायर नही हुए. सूर्य कान्त गुप्ता जी से आपके बारे मे बात होती है.

    अन्त मे दिनेश जी का पुन: आभार इतनी जीवन पोस्ट हमारी मुलाकात पर लिखने के लिये.

    आप सभी से अनुरोध मेरे नये ब्लोग पर एक बार नज़र डालिये.
    http://sharatkenaareecharitra.blogspot.com/

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  11. हरि शर्मा जी से आपकी मुलाकात के बारे में जानकर बहुत ख़ुशी हुई...ये आभासी पहचान..रियल पहचान में बदल गयी.....हरि शर्मा सचमुच एक कर्मयोगी हैं...जो घायल होने के बाद भी लगातार काम करते रहें...शुभकामनाएं जल्दी स्वस्थ होने के लिए.

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