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शनिवार, 6 दिसंबर 2008

ऐसे विकसित होगा देश का नया और सही नेतृत्व

आप  में से अधिकांश कलर्स चैनल का हिन्दी सीरियल  "बालिका वधू" अवश्य देखते होंगे। बालिका वधू आनंदी के ससुराल में आयी नयी किशोर वधू "गहना" को भी आप ने देखा होगा। "गहना" के पिता ने अपना कर्ज उतारने के लिए धन ले कर अपनी बेटी का ब्याह उस से कई वर्ष बड़े आनंदी के विदुर ताऊ ससुर के साथ कर दिया है। यह किशोरी इस बे-मेल विवाह को स्वीकार नहीं करती, टकराव की स्थिति में कहने पर भी अपने मायके जाने से इन्कार कर देती है और हर अन्याय का प्रतिकार करना तय करती है।

"गहना" का प्रतिकार देख कर सभी दंग रह जाते हैं। कुछ सीमा तक वह अपनी एकाधिकारवादी सास को झुकने को  विवश कर देती है। लेकिन उस का प्रतिकार जारी रहता है। वह परिवार के अन्य मामलों में भी अब दखल देने लगी है। उस की सास अपने पोते जगदीश्या को जब सच बोलने पर पहले बोले गए झूठ की सजा देने को होती है  और जगदीश्या की पत्नी आनंदी, माँ और बहन के जगदीश्या को सजा से बचाने के प्रयास विफल हो जाते हैं तो वह अपनी सास का हाथ पकड़ लेती है उस से तर्क करती है। फिर भी जब सास सजा को उद्दत रहती है तो "गहना"फिर से उस का हाथ पकड़ लेती है और सजा न देने का आग्रह करती है और जगदीश्या को बचाने में सफल हो जाती है।

"बालिका वधू"के इस सामंती परिवार में "गहना" अब तक अन्याय को सहन कर रहे सभी लोगों की आकांक्षाओं का वह प्रतीक बन जाती है। सब इस परिवार का सामंती किला तोड़ना चाहते हैं। लेकिन उस की पहल कोई नहीं कर रहा है। लेकिन यह नयी किशोर बहू वह पहल कर देती है। जिस तरह से घटनाएँ मोड़ ले रही हैं। किशोर "गहना" परिवार की सामंती व्यवस्था को तोड़ने और नए मूल्यों की स्थापना के लिए चल रहे संघर्ष का नेतृत्व हासिल करने लगती है।

"गहना" संघर्ष में टिकेगी, केवल स्वयं के लिए नहीं अन्य के विरुद्ध हो रहे अन्याय के विरुद्ध भी खड़ी होगी तो सफल भी होगी। क्यों कि वह परिवार के बहुमत सदस्यों की आकांक्षाओं का वह प्रतिनिधित्व करने लगी है, उन का समर्थन उस के साथ है। इस परिवर्तन की वह अगुआ है और मुझे उस में भविष्य में उस परिवार का मुखिया बनने के सभी लक्षण दिखाई दे रहे हैं।

मैं ने अनवरत पर किसी सीरियल की कथा पर कुछ लिखा है और यह बेमकसद नहीं है। मैं दिखाना चाहता था कि कैसे एक व्यक्ति या समूह गलत चीजों का, व्यवस्था का प्रतिकार करने की पहल कर के लोगों की आकांक्षाओं का प्रतीक बन जाता है। जहाँ सब लोग खड़े हैं, उन से एक कदम आगे चल कर वह नेतृत्व करता है और धीरे धीरे संघर्ष के दौरान वह नेता बनता है और भविष्य में परिवार के मुखिया का स्थान ले कर पूरे परिवार का नेतृत्व करने की क्षमता उस में विकसित होती जाती है।

अनवरत के विगत आलेख देश को सही नेतृत्व की जरूरत है पर स्मार्ट इंडियन जी की टिप्पणी थी "सहमत हूँ - और वह सही नेतृत्व भी हम में से ही आयेगा!"।  मेरी समझ है कि हमारा नया सही नेतृत्व जनआकांक्षाओं का प्रतिनिधित्व करते हुए, व्यवस्था की जड़ता के प्रति प्रतिकार और नए समाज के लिए संघर्ष करने वाले लोगों से ही निर्मित होगा। आप की क्या राय है?

इस से सम्बन्धित बालिका वधू की कड़ी देखें यू-ट्यूब वीडियो पर 

10 टिप्‍पणियां:

  1. आपने जो भी इस सीरियल के लिए लिखा,मैं शत प्रतिशत उससे सहमत हूं...इस सीरियल पर मैंने अपने ब्लॉग में तीन नवंबर को एक पोस्ट डाली थी..लोगों की अलग-अलग प्रतिक्रियाएं भी आईं..कुछ सकारात्मक तो कुछ अलग भी...

    इस सीरियल में कहीं कोई कमी नहीं सबकुछ एक खूबसूरत जड़ाऊ हार की तरह....बस इच्छा यही है कि इसकी चमक उन अंधे मांबापों की आंखे खोलने में कामयाब हो जो अंधविश्वासों और कुरीतियों को अपने तर्कों की तलवारें चलाते हुए अपने बच्चों को होम किए जाते हैं....

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  2. सीरियल तो अभी तक नहीं ही देखा पर अब देखने की चाह है।

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  3. पंडित जी, अभिवादन !
    मैं ज़ाहिल मानुष सीरियल देखने की.. ..
    कहो तो कह दूँ.. बुरा मान जाओगे ?
    यह विलासिता या कहिये कुटेव नहीं पाल पाया !
    आपके अनुमोदन पर अब देखने का प्रयास करूँगा..
    परेशानी यह है कि मेरी पंडिताइन भी इनसे परहेज़ करती हैं, जाने क्यों ?
    जहाँ तक नेतृत्व विकास का प्रश्न है, रोना यह है..
    कि हम एक विचारशील कौम हैं, सो विचार ही करते रह जाते हैं..
    और दूसरे देश उन्हीं विचारों पर अमल करके आगे बढ़ते जाते हैं !
    ज़रूरत तो सभी समझते हैं,
    पर सभी बाल-बच्चे वाले हैं.. क्या करें ?

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  4. ४ मिनट ४२ सेकेंड्स तक ही देख सके उसके बाद धैर्य जवाब दे गया | ये कहानी बड़े पैसे वालो लोगों कि लग रही है, इतना बड़ा घर और सब गहने पैसों से दुरुस्त | बाकी आपने लिखा है तो ऐसा ही हुआ होगा :-)

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  5. आपने इस सीरियल के बहाने बिल्कुल सही लिखा है इसी तरह इस वतर्मान राजनैतिक प्रणाली के खिलाफ कोई तो नया नेतृत्व कभी तो खड़ा होगा ही |

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  6. इस सिरियल की बड़ी तारीफ़ सुनी है वैसे....मेरी मां तो बस उसी बालिका वधु के गुण गाती रहती है
    ...मुझे देखने का मौका नहीं मिल पाता

    अच्छी चरचा

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  7. डाक्‍टर अमरकुमारजी के प्रति सम्‍पूर्ण आदर सहित निवेदन कर रहा हूं । यह मेरी अशिष्‍टता भी हो सकती है, लेकिन विश्‍वास करने की कृपा कीजिएगा कि इसमें सदाशयता ही है, दुराशयता लेश मात्र को नहीं ।
    हम ऐसे स्‍वार्थी, पाखण्‍डी और दोहरे पैमानों को जीने वाला समाज बन गए हैं जो कुछ भी खोए बिना सब कुछ हासिल करना चाहता है । नतीजे में हमें कुछ भी हासिल नहीं हो रहा है । 'नो रिस्‍क-नो गेन' और 'देअर इज नो फ्री लंच' के मुहावरे हम सब प्रयुक्‍त करते हैं लेकिन केवल उपदेश के लिए, अमल के लिए नहीं ।
    हम सभी बाल-बच्‍चे लेकर बैठे हैं और उन्‍हीं के लिए दिन-रात जुटे हुए हैं । हम सब चाहते हैं कि कहीं न कहीं भगतसिंह, आजाद, बिस्मिल पैदा हों और व्‍य‍वस्‍था को बदलें । लेकिन इसके समानान्‍तर यह भी चाहते हैं कि वह पडौसी के यहां पैदा हो, मेरे यहां नहीं । मेरे यहां तो इन्दिरा, राजीव, संजय, राहुल पैदा हों । वतन पर मरने के लिए पडौसी का बेटा और राज करने के लिए मेरा बेटा ।
    मेरे प्रिय मित्र श्री विजय वाते का यह शेर मुझे अत्‍यधिक प्रिय है -

    चाहते हैं सब कि बदले, ये अंधरों का निजाम
    पर हमारे घर किसी बागी की पैदाइश न हो

    प्रसंगवश उल्‍लेख है कि अपने बेटों को दीवारों में चिनवाने वाले बाल बच्‍चेदार भी इसी मुल्‍क में हुए है जिनकी दुहाइयां देते हम नहीं थकते ।

    द्विवेदीजी ने रोचक और लो‍कप्रिय उदाहरण से बहुत ही महत्‍वपूर्ण और सामयिक बात कही है । एक रूढीवादी और परम्‍परावादी परिवार में हो रहे अन्‍याय के विरूध्‍द आवाज उठाने की जोखिम गहना ले रही है - पता नहीं, कल उस पर क्‍या बीतेगी । लेकिन 'सुखद भविष्‍य के लिए दुखद वर्तमान जीना मूर्खता ही नहीं, अपराध भी है ।' गहना यह मूर्खता और अपराध करने से बचने का साहस कर रही है और इसकी पूरी-पूरी कीमत चुकाने को तैयार नजर आ रही है ।
    इसीलिए, दुस्‍साहस करते हुए द्विवेदीजी की इस पोस्‍ट के शीर्षक में संशोधन करने की धृष्‍टता कर रहा हूं । कृपया शीर्षक में 'ही' और जोड कर इसे 'ऐसे ही विकसित होगा देश का नया और सही नेतृत्‍व' करने पर विचार कीजिएगा ।
    अशिष्‍टता और धृष्‍टता के लिए क्षमा करने का बडप्‍पन बरत लीजिएगा । कृपा होगी ।

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  8. @बैरागी जी,
    अब शीर्षक तो आप ने संशोधित कर ही दिया है। वैसे मूल शीर्षक में 'ही' था। लेकिन निश्चयात्मक रूप से यह कहना अहंकार के भाव को ले आता। वैसे नेतृत्व के विकसित होने के लिए दूसरे विकल्प की संभावना के लिए स्थान क्यों न छोड़ा जाए।

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  9. यह सीरियल देखा नहीं। पर बेमेल विवाह अब भी मुद्दा बचे हैं?

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कैसा लगा आलेख? अच्छा या बुरा? मन को प्रफुल्लता मिली या आया क्रोध?
कुछ नया मिला या वही पुराना घिसा पिटा राग? कुछ तो किया होगा महसूस?
जो भी हो, जरा यहाँ टिपिया दीजिए.....