आतंकवाद से युद्ध की बात चल रही है। इस का अर्थ यह कतई नहीं है कि शेष जीवन ठहर जाए और केवल युद्ध ही शेष रहे। वास्तव में जो लोग प्रोफेशनल तरीके से इस युद्ध में अपने कामों को अंजाम देते हैं उन के अलावा शेष लोगों की जिम्मेदारी ही यही है कि वे देश में जीवन को सामान्य बनाए रखें।
मेरे विचार में हमें करना सिर्फ इतना है कि हम अपने अपने कर्तव्यों को ईमानदारी से करते हुए सजग रहें कि जाने या अनजाने शत्रु को किसी प्रकार की सुविधा तो प्रदान नहीं कर रहे हैं।
इस के साथ हमें हमारे रोजमर्रा के कामों को आतंकवाद के साये से भी प्रभावित नहीं होने देना है। लोग अपने अपने कामों पर जाते रहें। समय से दफ्तर खुलें काम जारी ही नहीं रहें उन में तेजी आए। खेत में समय से हल चले बुआई हो, उसे खाद-पानी समय से मिले और फसल समय से पक कर खलिहान और बाजार पहुँचे। बाजार नियमित रूप से खुलें किसी को किसी वस्तु की कमी महसूस न हो। स्कूल, कॉलेज और विश्वविद्यालय अपना काम समय से करें। कारखानों में उत्पादन उसी तरह होता रहे। हमारी खदानें सामान्य रूप से काम करती रहें।
सभी सरकारी कार्यालय और अदालतें अपना काम पूरी मुस्तैदी से करें। पुलिस अमन बनाए रखने और अपराधों के नियंत्रण का काम भली भांति करे। ये सब काम हम सही तरीके से करें तो किसी आतंकवादी की हिम्मत नहीं जो देश में किसी तरह की हलचल उत्पन्न कर सके।
वास्तविकता तो यह है कि हम आतंकवाद से युद्ध को हमारे देश की प्रणाली को चुस्त-दुरुस्त बनाने के लिए उपयोग कर सकते हैं। बस कमी है तो देश को ऐसे नेतृत्व की जो देश को इस दिशा की ओर ले जा सके।
सर, मन से या बेमन से.. ऑफिस तो हर दिन जाना ही है और काम भी करना ही है.. :)
जवाब देंहटाएंवैसे आप सही कह रहें हैं..
सही कहा दिनेश जी,
जवाब देंहटाएंइजरायल का ही उदाहरण के लीजिये. चारों ओर से दुश्मनों से घिरा मुल्क है, लेकिन अन्दर से इतना मज़बूत बना रहता है कि बाहर का दुश्मन आंख उठाने से पहले सौ बार सोचे. रेनोवेशन हमेशा इनसाइड-आउट होता है.
आपकी बातो से सौ प्रतिशत सहमत हूँ !
जवाब देंहटाएंरामराम !
बिल्कुल ठीक कहा आपने. एमर्जेन्सी जैसा महॉल बन जाना चाहिए. नेतृत्व तो अब युवा पीढ़ी ही दे सकेगी. आभार.
जवाब देंहटाएंहां होना तो यही चाहिये।
जवाब देंहटाएंसही कह रहे हैं। चरित्र हो तो कोई आतंक या दुश्मन कुछ नहीं कर सकता।
जवाब देंहटाएंश्रीमान जी सहमत हूँ आपसे .
जवाब देंहटाएंयदि सभी अपने कार्यों का निर्बहन जिम्मेदारी पूर्वक करे ताओ किसी आतंकवादी की हिम्मत नहीं जो देश में किसी तरह की हलचल उत्पन्न कर सके।
हमारा आत्मसम्मान और खुद त्वरित निर्णय लेने की क्षमता मृत हो चुकी है. हम स्वाधीन तो सही पर मानसिक रूप से पराधीन हैं!!!
जवाब देंहटाएं100% agreed
जवाब देंहटाएंसामयिक और प्रासंगिक परामर्श है आपका । हम अपनी जवाबदारी और उसे निभाने की समझ पा लें । अपनी गरेबां में झांके, दूसरा अपना काम कर रहा है या नहीं, यह चिन्ता छोड दें ।
जवाब देंहटाएंमरे बिना स्वर्ग नहीं देख जाता ।
गुरु गंभीर चिनान एवं परामर्श है सर
जवाब देंहटाएंसादर
अपने कार्य के प्रति इमानदारी सभी समस्या का हल है मगर ऐसा न हो पाना खुद ही एक समस्या है।
जवाब देंहटाएंसभी ने सब कह दिया है पर कार्तिकेय की बात में दम है
जवाब देंहटाएंईज़्राइलीयोँ ने होलोकोस्ट के बाद
जवाब देंहटाएंनिर्णय किया कि अब
कोई कौम उन्हेँ इस तरह
बर्बाद नहीँ करेगी
जैसे हीटलर ने किया था -
इसी का नतीजा है
जो आज वे इतने सशक्त हैँ
सहमत हूँ - और वह सही नेतृत्व भी हम में से ही आयेगा!
जवाब देंहटाएंआपने बिल्कुल सही कहा है. नेतृत्व की गुणवत्ता पर बहुत कुछ निर्भर करता है. यह दुःख की बात है कि आजादी के बाद इस देश को कुशल नेतृत्व नहीं मिला, वरना मानव और अन्य संशाधनों से भरपूर यह देश आज विश्व के शिखर पर होता. आतंकवादी और उन्हें समर्थन दे रहे राष्ट्र और संगठन मानवता के शत्रु हैं. यह लोग अपना काम करते रहेंगे. हमें अपना काम करना है. इस बारे में आपके सुझाव बहुत महत्वपूर्ण हैं.
जवाब देंहटाएंसरकार और उस की अनेक एजेंसियां अपने कर्तव्य पूरे करें और हर नागरिक अपना कर्तव्य पूरा करे. सब एक स्वर में कहें, 'हम आतंकवाद को विजयी नहीं होने देंगे'.
दिनेश जी सही कह रहे हैं....
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