अनवरत
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गुरुवार, 18 नवंबर 2010
घूम-फिर कर, फिर यहीं आना है, यही मुकम्मल आशियाना है।
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एक दिन के वकील आ ज 18 नवम्बर हो गई है पिछली 15 नवम्बर के बाद अनवरत पर पोस्ट नहीं हुई। इसे समय की कमी कहा जा सकता है कुछ भौतिक और कुछ मानस...
8 टिप्पणियां:
रविवार, 21 फ़रवरी 2010
नहीं सुन पाए राकेश मूथा की कविता
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उ द्यान में मेरे पास ही बैठे संजय व्यास ने मुझे प्रभावित किया। एक दम सौम्य मूर्ति दिखाई पड़ रहे थे वे। वे पूरी बैठक में कम बोले लेकिन जितना ...
17 टिप्पणियां:
शुक्रवार, 19 फ़रवरी 2010
ताज़गी और बदलाव के लिए ब्लागीरी
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अ शोक उद्यान में हरी दूब के मैदान बहुत आकर्षक थे। हमने दूब पर बैठना तय किया। ऐसा स्थान तलाशा गया जहाँ कम से कम एक-दो दिन से पानी न दिया गया ...
23 टिप्पणियां:
गुरुवार, 18 फ़रवरी 2010
शर्मा जी के घर रुचिकर स्वादिष्ट भोजन
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जो धपुर की यह यात्रा पहली नहीं थी। मेरी बुआ यहाँ रहती थी, फूफाजी विश्वविद्यालय में संस्कृत के प्रोफेसर थे। उन की बेटियों के ब्याह में कोई पे...
19 टिप्पणियां:
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