जोधपुर की यह यात्रा पहली नहीं थी। मेरी बुआ यहाँ रहती थी, फूफाजी विश्वविद्यालय में संस्कृत के प्रोफेसर थे। उन की बेटियों के ब्याह में कोई पेंतीस बरस पहले यहाँ आना हुआ था। यहाँ पहुँचने के पहले मार्ग में ही एक दुर्घटना में पिताजी को चोट लगी और उनका तत्काल ऑपरेशन हुआ दो सप्ताह बाद पुनः ऑपरेशन हुआ। हमें इतने दिन यहीँ रुकना पड़ा। तब कोई काम नहीं था। गर्मी का मौसम था तो दुपहर बाद सायकिल ले कर निकल पड़ता। इस तरह जोधपुर से पहला परिचय ही गहरा था। फिर कुछ बरस पहले यहाँ वकालत के सिलसिले में आना जाना आरंभ हुआ और अब बार कौंसिल की अनुशासनिक समिति के सदस्य के नाते यहाँ निरंतर आना जाना हो रहा है। ऐसे में यह तो नहीं हो सकता था कि जोधपुर के ब्लागीरों से मिलना न होता। पिछली बार हरि शर्मा जी से भेंट हुई, इस बार उन्होंने एक संक्षिप्त ब्लागीर मिलन की योजना को ही कार्यरूप दे डाला।
मैं ने बार कौंसिल के दफ्तर पहुँचा तो रविवार के अवकाश के कारण वहाँ केवल दो कार्यालय सहायक ही उपस्थित थे। वे भी केवल उस दिन होने वाली सुनवाई के लिए। शिकायत कर्ता अपने साक्षियों के साथ उपस्थित थी। मैं ने कार्यवाही आरंभ होने के पहले ही बता दिया कि हरिशर्मा जी आएँगे। यदि वे कार्यवाही समाप्त होने के पहले आ जाएँ तो उन्हें बैठने को कह दिया जाए। कार्यवाही पूर्ण होने के पहले ही सूचना मिल गई कि वे आ चुके हैं। मैं उस दिन की कार्यवाही पूरी कर उन के पास पहुँचा और हम तुरंत ही उन के घर के लिए चल दिए। ब्लागीर मिलन अशोक उद्यान में रखा गया था। डेढ़ बजे तक वहाँ पहुँचना था। वहाँ सब से पहले शर्मा जी की स्नेहमयी माताजी से भेंट हुई। कुछ माह पहले उन की एक आँख के मोतियाबिंद का ऑपरेशन हो चुका था। और उसी दिन शाम को दूसरी का होने वाला था। जिस के लिए उन्हें चार बजे अस्पताल ले जाया जाना था। यह दायित्व भी हरि शर्मा जी का था।
हमें ब्लागीर मिलन में जाने की जल्दी थी। भाभी जी (श्रीमती शर्मा) ने तुरंत भोजन लगा दिया। मैं चकित था। थाली में कम से कम छह कटोरियाँ विराजमान थीं। उन्हें पास में चावल थे। मेरी तो भूख ही देखते ही काफूर हो गई। ऐसा पता होता तो मैं सुबह के पराठे में खर्च किया धन अवश्य बचा लेता। खैर मैं ने तय किया कि चपाती और चावल का न्यूनतम उपयोग कर कटोरियाँ खाली कर दी जाएँ। मैं तेजी से इस काम को करने में सफल रहा। मैं ने बताया कि मैं इस काम में उतना सिद्ध-हस्त नहीं जितना मेरे पिताजी थे। उन के भोजन के बाद थाली और कटोरियाँ ऐसी दिखती थीं कि यदि यह पता न हो कि उन में भोजन किया गया है तो उन्हें धुले हुए बर्तनों के साथ जमा दे। भोजन बहुत रुचिकर, स्वादिष्ट, सादा, राजस्थानी मिजाज का और बिलकुल घरेलू था। ऐसा कि किसी भी जोधपुर यात्रा के समय भाभी जी को अचानक कष्ट देने लायक। हम शीघ्रता से वहाँ से ब्लागर मिलन के लिए निकले। भाभी ने शर्मा जी से कहा कि यदि उन्हें वापस लौटने में देर हो तो वे माताजी को समय पर ले कर निकल लेंगी। लेकिन शर्मा जी ने आश्वस्त किया कि वे समय से पहुँच जाएंगे।
हम वहाँ से निकलते इस से पहले ही ब्लागीरों के फोन आने लगे। शर्मा जी ने आश्वस्त किया कि वे कुछ ही देर में पहुँच रहे हैं। पहले आने वाले रुके रहें। मार्ग में एक अधेड़ उम्र के संजीदा दिखने वाले सज्जन वाहन में सवार हुए। शर्मा जी ने परिचय दिया कि वे राकेशनाथ जी मूथा हैं, कवि हैं, एक संग्रह प्रकाशित हो चुका है और अपने ब्लाग पर केवल कविताएँ लिखते हैं। कुछ ही देर में हम उद्यान के बाहर थे। बाहर बोर्ड लगा था "सम्राट अशोक उद्यान"। शर्मा जी ने बताया कि पिछली भाजपा सरकार ने यह बोर्ड लगवा दिया। इस लिए कि कहीं यह "अशोक गहलोत उद्यान " न हो जाए। हम अंदर पहुचे तो वहाँ संजय व्यास और शोभना चौधरी मौजूद थीं।
वकील साहब आगे की रपट का इंतजार है।
जवाब देंहटाएंवैसे मु्झे जोधपुर की बोली बोलनी आती है।
इसका उपयोग मेरी अगली यात्रा मे होगा।
बधाई
क्रमश: से आगे की प्रतीक्षा है...
जवाब देंहटाएंबढ़िया वृतांत..अगली कड़ी का इन्तजार है.
जवाब देंहटाएंबढ़िया वृतांत..अगली कड़ी का इन्तजार
जवाब देंहटाएंबी एस पाबला
चोखो जीमने की तमन्ना मुझे भी है... ना जाने कब पूरी होगी :-)
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर जी यह चोखो हम भी जीमने आयेगे हरि शर्मा जी, पहले से बता दे.अगली कडी का इंतजार
जवाब देंहटाएंbadhiya sir.
जवाब देंहटाएंagli kisht ki pratikshha kar raha hu
अब तो ये ६ कटोरियों में खाना खाने हमें शर्माजी के घर जोधपुर जाना होगा, मजा आया प्रस्तुतिकरण में।
जवाब देंहटाएंवकील साहब की इस पोस्ट के बहाने से मुझे अपनी पत्नी को आधिकारिक धन्यवाद देने का मौक़ा मिला है. सच में वो रविवार बहुत ही व्यस्त था. और सारी व्यस्तता के बीच उन्होंने बाकई तुरंत बढ़िया खाना खिला दिया,.
जवाब देंहटाएंहम पिछले ६-७ साल से निर्वासित जीवन जी रहे है कितने शहरों में कब तक रहे इसका लंबा चिट्ठा है. घर से दूर रहने के कारण अतिथी कम ही आते है इसीलिये कोशिश करते है की एक बात अतिथी आये तो अगली बार घर का सदस्य बनके आये.
एंटी डिस्क्लेमर
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१. इसे वकील साहब की इस ब्लोगर मिलन पर आख़िरी पोस्ट ना समझा जाए.
२. वकील साहब इस ब्लोगर मिलन पर लिखने बाले आख़िरी ब्लोगर नहीं है.
चोखो लाग्यो :) कुछ दिनों पहले ही चोखी धाणी से सिख कर आया हूँ.
जवाब देंहटाएंसौ. भाभी जी व हरि शर्मा जी को पहली बार देख रही हूँ
जवाब देंहटाएंउनकी पू. माता जी की तबियत अब ठीक होगी
अब ६ कटोरियों के व्यंजनों की रेसिपी भी बतला देते तो अच्छा होता
आप ब्लोगरों में स्नेह ऐसे ही बना रहे
स स्नेह, सादर
- लावण्या
स्वादिष्ट सुस्वादु राजस्थानी भोजन का जिक्र कर आपने मुंह में पानी ला दिया। जोधपुर के भोजन के तो क्या कहने। हमने वहां भी वक्त गुज़ारा है।
जवाब देंहटाएंचलिए, जोधपुर अभी दूर है, कोटा ही आते हैं दावत खाने। शाम का खाना कहीं और खा लेंगे:)
आपकी भूख मिट गई लेकिन वृतांत अधूरा छोड़कर आपने हमारी भूख बढ़ा दी...
जवाब देंहटाएंमुझे तो राजस्थान प्रवास के दौरान के जीमें व्यंजन याद हो आये
जवाब देंहटाएंआपको कुछ का नाम भी बताना था न ?
बढ़िया वृतांत
जवाब देंहटाएंसुंदर वृत्तांत.
जवाब देंहटाएंआगे की कड़ी की प्रतीक्षा रहेगी !
सुंदर वृत्तांत.
जवाब देंहटाएंआगे की कड़ी की प्रतीक्षा रहेगी !
ाच्छा लग रहा है आपका ये सफर भी अगली कडी का इन्तज़ार रहेगा। धन्यवाद्
जवाब देंहटाएंभारतीय गृहिणियाँ वैसे भी 'जादूगर' होती हैं। फिर राजस्थान की तो बात ही निराली है। वहॉं जैसी मनुहार और कहॉं।
जवाब देंहटाएंविवरण पढने में आनन्द आ रहा है।