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बुधवार, 8 अक्टूबर 2008
नवरात्र और दशहरा : जब हम किशोर थे
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किशोरावस्था में नवरात्र और दशहरा एक उल्लास भरा त्योहार था। दादा जी नगर के एक बड़े मंदिर के पुजारी थे। दादा जी के साथ मैं मन्दिर पर ही रहता ...
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गुरुवार, 24 जुलाई 2008
एक रविवार, वन-आश्रम में -3.......... मन्दिर में
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पदपथ समाप्त होने पर कोई दस फुट की दूरी पर दीवार में साधारण सा द्वार था, बिना किवाड़ों के। उस में घुसते ही दीवार नजर आई जिस के दोनों सिरों पर...
12 टिप्पणियां:
बुधवार, 23 जुलाई 2008
एक रविवार, वन-आश्रम में -2
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आश्रम द्वार बहुत बड़ा था, इतना कि ट्रक आसानी से अंदर चला जाए। द्वार पर लोहे के मजबूत फाटक थे। द्वार के बाहर बायीँ और दो छप्पर थे। जिन में पत...
13 टिप्पणियां:
शुक्रवार, 25 जनवरी 2008
कहाँ हैं दादा जी जैसे कथावाचक
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शाम साढ़े पांच बजे अदालत से घर पहुँचा तो शोभा जी (मेरी पत्नी) किसी धार्मिक टीवी चैनल पर आधुनिक नामचीन्ह कथावाचक की ‘ लाइव ’ कथा सुन रही थीं...
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