अनवरत
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शुक्रवार, 29 अगस्त 2008
पुरुषोत्तम 'यकीन' की ग़ज़ल ... खो रही है ज़िन्दगी
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आज फिर से आप को ले आया हूँ, मेरे दोस्त और आप के लिए अब अजनबी नहीं पुरुषोत्तम 'यकीन' की ग़ज़लों की महफिल में। पढ़िए हालात पर म...
10 टिप्पणियां:
सोमवार, 25 अगस्त 2008
मंजिलों से तो मुलाक़ात अभी बाकी है.... शतकीय नमन ....
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अनवरत का यह सौवाँ आलेख है। 20 नवम्बर 2007 को प्रारंभ हुई यह यात्रा सौवेँ पड़ाव तक कैसे पहुँचा? कुछ भी पता न लगा। स्वयँ को अभिव्यक्त करते हुए...
28 टिप्पणियां:
गुरुवार, 7 अगस्त 2008
लड़ाते हैं हमें और अपने अपने घर बनाते हैं ...... पुरुषोत्तम 'यकीन की ग़ज़ल
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पुरुषोत्तम 'य़कीन' से आप पूर्व परिचित हैं। उन की एक ग़ज़ल का पहले भी आप अनवरत पर रसास्वादन कर चुके हैं। जब जम्मू-कश्मीर में वोट के ल...
14 टिप्पणियां:
मंगलवार, 1 जुलाई 2008
थोड़ा नजदीक आ अंधेरा है "गज़ल"
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आप ने अनवरत पर महेन्द्र 'नेह' की कुछ रचनाएँ पढ़ी हैं। आज आप के हुजूर में पेश कर रहा हूँ, ऐसे शायर की गज़ल जो बहुमुखी प्रतिभा का धनी ...
10 टिप्पणियां:
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