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शनिवार, 17 अप्रैल 2021

मैंने नहीं, तुमने बुलाया है

मैंने नहीं, तुमने बुलाया है


मैंने नहीं, तुमने बुलाया है
हाहाकार मचा है नगर भर में
एक के पीछे दूसरी, तीसरी
एम्बुलेंस दौड़ती हैं सड़कों पर
जश्न सारे अस्पतालों ने मनाया है
मैंने नहीं, तुमने बुलाया है
ताले पड़े हैं विद्यालयों पर
नौनिहाल सब घरों में बन्द हैं
पसरा है सन्नाटा बाजारों में
कुनबा मुख-पट्टियों ने बढ़ाया है
मैंने नहीं, तुमने बुलाया है
प्राण-वायु की तलाश में
भटकते वाहनों पर इन्सान हैं
फेफड़ों के वायुकोशों पर
डेरा विषाणुओं ने लगाया है
मैंने नहीं, तुमने बुलाया है
सज रही हैं, चिताओं पर चिताएँ
लकड़ियाँ शमशान सबका अभाव है
अपने लिए तुमने अवसर भुनाने को
अतिथि नहीं, दुष्काल बुलाया है
मैंने नहीं, तुमने बुलाया है

- दिनेशराय द्विवेदी

6 टिप्‍पणियां:

  1. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना रविवार १८ अप्रैल २०२१ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

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  2. अरे वाह ... आप कविता भी लिखते हैं ...पहली बार आपकी रची कविता पढ़ी वरना तो क़ानून की बातें ही पढ़ीं आपके ब्लॉग पर ....

    कुछ अतिथि बिना बुलाये ही आ जाते हैं ये उनमें से ही एक है और फिर जाने का नाम भी नहीं लेते ... सार्थक रचना .

    जवाब देंहटाएं
  3. बिलकुल सही कहा आपने....हमने ही बुलाया है और हमारी लापरवाहियों से ही ये पोषित भी हो रहा है ,सटीक चित्रण ,सादर नमन आपको

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  4. आदरणीय सर, बहुत ही सशक्त प्रहार इस कविता के द्वारा जो हमारी आत्मा झकझोर देता है । सच है, हमने ही इसे बुलाया है और हमने ही इसे बढ़ने भी दिया।
    हार्दिक आभार इस सुंदर रचना के लिए ।

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  5. सटीक भावाभिव्यक्ति..
    सच में..हमने दरवाजे नहीं खोले पर..
    सुंदर।

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  6. आज मुझे 2008-2011 का ब्लागिंग का दौर याद आ गया। तब अनवरत की हर पोस्ट पर दसियों टिप्पणियाँ हुआ करती थीं। बहुत दिनों बाद पोस्ट पर इतनी टिप्पणियाँ देख कर लगता है। राख के नीचे जीआग अभी शेष है, बस कुछ हवा चाहिए कुछ ईंधन, ज्वाला फिर से धधक उठेगी।
    आप सभी टिप्पणीकारों का आभार!

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