डाक्टर
भीमराव अम्बेडकर ने देश के दलित, आदिवासी और निम्न जातियों के उत्पीड़न के हिन्दू
(सनातन) धर्म के आधारों को खुल कर लोगों के सामने रखा और उसके विरुद्ध दलितों को
एकजुट हो कर उत्पीड़न के विरुद्ध संघर्ष के लिए तैयार किया। यहाँ तक कि उन्होंने
हजारों लोगों के साथ हिन्दू धर्म त्याग कर बौद्ध धर्म ग्रहण किया। उन्होंने भारतीय
संविधान को तैयार करने में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका अदा की। भारतीय संविधान का मूल
ढाँचा उनके बिना तैयार नहीं हो सकता था।
उनसे
बहुत असहमतियाँ हैं, जो उनकी दार्शनिक समझ से संबंधित हैं। वे बार-बार और लगातार दर्शन
के भाववादी आधारों पर चोट करते रहे, लेकिन उससे अन्त तक मुक्त नहीं हो सके।
भौतिकवादी दर्शनों के संसार की तरफ उनके पग बार बार उठते लेकिन पता नहीं किस
मोहपाश के कारण वे वापस लौट जाते। यही एक कारण था कि वे किसी भी भौतिकवादी दर्शन
को कभी ठीक से समझ ही नहीं सके। उनकी दार्शनिक समझ के इस अधूरेपन के कारण ही आज वे
स्थितियाँ दलितों के बीच मौजूद हें जिसके कारण मनुवादी सत्ता को बार बार दलितों,
आदिवासियों और पिछ़ड़ी जातियों की एकता तोड़ने में सफलता मिलती रही है। उनके तमाम
लेखन में भाववाद के प्रति जो मोह है, उसी ने उनके जीवित रहते ही उनमें देवत्व
उत्पन्न कर दिया। आज तो दलितों के एक बहुत बड़े हिस्से ने उन्हें भगवान का दर्जा
दे दिया है। वे उन्हे उसी तरह पूज रहे हैं जैसे हिन्दू अपने देवताओं गणेश, शिव,
विष्णु और ब्रह्मा को पूजते हैं। यही एक चीज है जो उनके तमाम संघर्षों को फिर से
उसी भाववादी कीचड़ के सागर में डुबो देती है।
बावजूद
अपनी इस कमजोरी के उन्होंने दलितों, आदिवासियों और पिछड़ी जातियों के उत्थान और
उनमें से हीनताबोध को नष्ट करने का जो बड़ा ऐतिहासिक काम किया है। उसके लिए वे भारतीय दलितों के अमर सेनानी के रूप में सदैव
याद किए जाएंगे। उनका नाम अमर हो गया है वह इतिहास के पृष्ठों से कभी मिटाया नहीं
जा सकता।
आज
उनके जन्मदिन पर उनके तमाम महान कार्यों के लिए मैं उनका नमन करता हूँ।
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