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सोमवार, 23 मार्च 2020

लंगोटों वाला देश



धरती पर कर्क रेखा के आसपास एक देश था। उस देश के लोगों के पास एक बहुत पुरानी  किताब थी। जिसकी भाषा उनके लिए अनजान थी। वह उनके पूर्वजों की भाषा रही होगी। वे ऐसा ही मानते थे। उस किताब की लिपि तो वही थी जो वे इस्तेमाल करते थे। किताबो को वे पढ़ तो सकते थे, लेकिन समझ नहीं सकते थे।  जिन्हों ने पढ़ने की कोशिश की उन की समझ में कुछ नहीं आया। उन्हों ने थोड़ी ही देर में अपना माथा पीट लिया और किताब पढ़ना छोड़ दिया। लेकिन वे नहीं चाहते थे कि उन्हें अज्ञानी कहा जाए।

उन्हों ने किताब को सबसे अच्छे खूब अच्छी तरह सजे हुए कपड़ों में बांध कर रख दिया और उसकी पूजा करने लगे। उन्हों ने लोगों को कहा कि ये किताबें आसमानी हैं, अबूझ हैं। इन्हीं में संसार का सारा ज्ञान भरा पड़़ा है। लोग उन्हें ज्ञानी कहने लगे।  वे नहीं जानते थे कि किस मंत्र का क्या मतलब है? लेकिन उन्होंने उनका उपयोग तलाश लिया। फिर उन्होंने उन किताबों के पन्नों की लंगोटें बना लीं। पहनने वाली नहीं, घुमाने वाली।

जब भी किसी को बहुत बुखार होता। कोई शरीर में  हो रहे दर्द से तड़पता रहता। किसी को साँप या कीड़े ने काट लिया होता। किसी की बीवी भाग गयी होती। किसी की फसल नष्ट हो गयी होती। किसी के पालतू खो गए होते या चोरी हो गए होते। वे सब बीमार को, पीड़ित को लेकर किसी ज्ञानी के पास जाते।  ज्ञानी उन्हें गंभीरता से सुनता। बहुत से ऊल-जलूल सवाल पूछता। फिर एक लंगोट निकालता और उसे घुमा कर बताते। फिर कहता: इसे ले जाओ। सुबह-शाम छत के बारजे पर खड़े होकर इसे घुमाना, फिर वापस दीवार पर अपनी छाती से ऊँची जगह पर खूंटी पर लटका देना। तुम ठीक हो जाओगे,  तुम्हारी समस्या हल हो जाएगी। लोग ठीक हो जाते। बहुत से लंगोट घुमाते घुमाथे मर जाते। जो मर जाता वह ज्ञानी के पास कभी नहीं लौटता। इस तरह ज्ञानियों के घर आने वाले लोगों को पता नहीं लगा कि लंगोट असफल भी होती है। देश में ज्ञानियों का डंका बजने लगा। तब से देश के लोग समझते हैं कि लंगोट घुमाना हर बीमारी का इलाज है, हर समस्या का हल है।

बस तब से लोग उस देश को लंगोटों वाला देश कहने लगे।

कोटा, 23.03.2020

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