अमूल्या लियोना गुनहगार है या नहीं, इसे अदालत तय करेगी। अदालत कहे कि वह गुनहगार नहीं तो उसे गुनहगार बताने वाले बड़ी अदालत जाएंगे। वहाँ भी वह गुनहगार न ठहरे तो उससे बड़ी अदालत जाएंगे। वहाँ भी नहीं तो सबसे बड़ी अदालत जाएंगे।
पर अदालत का इंतजार क्यों करें? वे तो तुरन्त उसके घर जाएंगे, पथराव करेंगे। उसके परिवार को आतंकित करेंगे। पिता से कहलवाएंगे की बेटी की सोच से उनका कोई लेना देना नहीं है और वह नक्सलियों के संपर्क में रह चुकी है।
![](https://1.bp.blogspot.com/-itnpWo9TXH8/XlH72pz-yXI/AAAAAAAA81I/p6RPvmKMvYUiC2hQ_awNdSESgdqqaQRegCLcBGAsYHQ/s280/%25E0%25A4%2585%25E0%25A4%25AE%25E0%25A5%2582%25E0%25A4%25B2%25E0%25A5%258D%25E0%25A4%25AF%25E0%25A4%25BE.png)
किसी को पड़ौसी देश के नाम से जिन्दाबाद का नारा लगाने पर भड़क उठना तमाम सरकारी गैर सरकारी मशीनरी की ताकत उसे या उन जैसों को सबक सिखाने में झोंक देना। यही राष्ट्रवाद है। असल में राष्ट्रवाद काली चादर है जिस में गुनहगार खुद के शरीर पर पड़े धब्बों को छुपाते हैं। ये बात भागवत भी समझता है कि अब राष्ट्रवाद के पीछे धब्बे छुपाने की पोल खुल चुकी है। इसलिए कहता है कि उसका मतलब गलत है। राष्ट्रवाद शब्द का इस्तेमाल मत करो। कोई दूसरा शब्द खोजो।
पर नाम बदलने से फितरत नहीं बदलती, इलाहाबाद का नाम प्रयागराज कर देने से इलाहाबाद में कुछ नहीं बदलता। वह शहर वैसा ही रहता है जैसा पहले था। नाम बदलने से चरित्र नहीं बदलता। देखते रहिए, कि अब राष्ट्रवाद की जगह कौनसा शब्द आता है दाग छुपाने के लिए।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
कैसा लगा आलेख? अच्छा या बुरा? मन को प्रफुल्लता मिली या आया क्रोध?
कुछ नया मिला या वही पुराना घिसा पिटा राग? कुछ तो किया होगा महसूस?
जो भी हो, जरा यहाँ टिपिया दीजिए.....