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रविवार, 23 फ़रवरी 2020

लागा चुनरी में दाग छुपाऊँ कैसे?

अमूल्या लियोना गुनहगार है या नहीं, इसे अदालत तय करेगी। अदालत कहे कि वह गुनहगार नहीं तो उसे गुनहगार बताने वाले बड़ी अदालत जाएंगे। वहाँ भी वह गुनहगार न ठहरे तो उससे बड़ी अदालत जाएंगे। वहाँ भी नहीं तो सबसे बड़ी अदालत जाएंगे।

पर अदालत का इंतजार क्यों करें? वे तो तुरन्त उसके घर जाएंगे, पथराव करेंगे। उसके परिवार को आतंकित करेंगे। पिता से कहलवाएंगे की बेटी की सोच से उनका कोई लेना देना नहीं है और वह नक्सलियों के संपर्क में रह चुकी है।

अमूल्या गुनहगार क्यों है? क्या इसलिए कि वह सोचती है कि उसे या उसके देश को जिन्दाबाद कहने के लिए किसी को मुर्दाबाद कहने की जरूरत नहीं। कोई भी देश क्यों मुर्दाबाद कहा जाए? हम अपनी रोटी खाएँ लेकिन दूसरे की छीन कर क्यों खाएँ? शायद वह कहना चाहती हो कि तमाम असफल व्यक्ति अपनी और से ध्यान हटाने को काल्पनिक शत्रु (भूत, प्रेत, आत्माओँ वगैरा) की कल्पना करते हैं और सारा दोष उन पर मँढ कर खुद के बचाव का रास्ता तलाश करते हैं। शायद वह कहना चाहती थी कि तुम्हारा नेता जो अभी सब-कुछ बना बैठा है, वह असफल हो चुका है। उसके पास सारा दोष दूसरों पर मँड़ने के सिवा और कोई उपाय नहीं है। तो उससे धोखा मत खाओ। खैर!

किसी को पड़ौसी देश के नाम से जिन्दाबाद का नारा लगाने पर भड़क उठना तमाम सरकारी गैर सरकारी मशीनरी की ताकत उसे या उन जैसों को सबक सिखाने में झोंक देना। यही राष्ट्रवाद है। असल में राष्ट्रवाद काली चादर है जिस में गुनहगार खुद के शरीर पर पड़े धब्बों को छुपाते हैं। ये बात भागवत भी समझता है कि अब राष्ट्रवाद के पीछे धब्बे छुपाने की पोल खुल चुकी है। इसलिए कहता है कि उसका मतलब गलत है। राष्ट्रवाद शब्द का इस्तेमाल मत करो। कोई दूसरा शब्द खोजो।

पर नाम बदलने से फितरत नहीं बदलती, इलाहाबाद का नाम प्रयागराज कर देने से इलाहाबाद में कुछ नहीं बदलता। वह शहर वैसा ही रहता है जैसा पहले था। नाम बदलने से चरित्र नहीं बदलता। देखते रहिए, कि अब राष्ट्रवाद की जगह कौनसा शब्द आता है दाग छुपाने के लिए।

राष्ट्र और राजद्रोह

राष्ट्र कभी वास्तविक नहीं होता। वह एक काल्पनिक अवधारणा है।

यही कारण है कि किसी कानून में और कानून की किताबों में राष्ट्रद्रोह नाम का कोई अपराध वर्णित नहीं है।

कानून में राजद्रोह नाम का अपराध मिलता है। जिस का उपयोग सिर्फ सबसे खराब राजा विरोध के स्वरों को दबाने के लिए करता है। क्योंकि वह जानता है कि अधिकांश जनता उसके विरुद्ध है और राजदंड से ही उसे दबाया जा सकता है।


भारतीय दंड संहिता की धारा 124 में Sedition नाम के जिस अपराध का उल्लेख है वह "राजद्रोह" है। आप खुद देख लीजिए भारतीय दंड संहिता की धारा 124 में क्या है।

"124क. राजद्रोह--जो कोई बोले गए या लिखे गए शब्दों द्वारा या संकेतों द्वारा, या दृश्यरूपण द्वारा या अन्यथा भारत में विधि द्वारा स्थापित सरकार के प्रति घॄणा या अवमान पैदा करेगा, या पैदा करने का, प्रयत्न करेगा या अप्रीति प्रदीप्त करेगा, या प्रदीप्त करने का प्रयत्न करेगा, वह आजीवन कारावास से, जिसमें जुर्माना जोड़ा जा सकेगा या तीन वर्ष तक के कारावास से, जिसमें जुर्माना जोड़ा जा सकेगा या जुर्माने से दंडित किया जाएगा।
 स्पष्टीकरण 1--“अप्रीति” पद के अंतर्गत अनिष्ठा और शत्रुता की समस्त भावनाएं आती हैं ।
 स्पष्टीकरण 2--घॄणा, अवमान या अप्रीति को प्रदीप्त किए बिना या प्रदीप्त करने का प्रयत्न किए बिना, सरकार के कामों के प्रति विधिपूर्ण साधनों द्वारा उनको परिवर्तित कराने की दृष्टि से अननुमोदन प्रकट करने वाली टीका-टिप्पणियां इस धारा के अधीन अपराध नहीं हैं।
स्पष्टीकरण 3--घॄणा, अवमान या अप्रीति को प्रदीप्त किए बिना या प्रदीप्त करने का प्रयत्न किए बिना, सरकार की प्रशासनिक या अन्य कार्रवाई के प्रति अनुमोदन प्रकट करने वाली टीका-टिप्पणियां इस धारा के अधीन अपराध गठित नहीं करती। "

जब राजद्रोह के अपराध का उपयोग विरोध के स्वरों को दबाने के लिए खुल कर होने लगे तो समझिए कि जनतंत्र विदा हो चुका है। जनतंत्र की पुनर्स्थापना की लड़ाई जरूरी हो गई है।