पेज

रविवार, 7 जून 2015

भूत-कथा

भूत-कथा 

  • दिनेशराय द्विवेदी



रात बाथरूम में चप्पल के नीचे दब कर एक कसारी (झिंगूर) का अंत हो गया। चप्पल तो नहाने के क्रम में धुल गयी। लेकिन कसारी के अवशेष पदार्थ बाथरूम के फर्श पर चिपके रह गए।

अगली सुबह जब मैं बाथरूम गया तो देखा कसारी के अवशेष लगभग गायब थे। केवल अखाद्य टेंटेकल्स वहाँ कल रात की दुर्घटना का पता दे रहे थे। बचे हुए भोजन कणों का सफाया करने में कुछ चींटियाँ अब तक जुटी थीं।

अगली बार जब मेैं बाथरूम गया तो वह पूरी तरह साफ था। वहाँ न चींटियाँ थीं और न ही कसारी का कोई अवशेष। किसी ने स्नान के पहले उस के फर्श को जरूर धोया होगा।

कसारी एक जीवित पदार्थ थी, एक दुर्घटना ने उस के जीवन तंत्र को विघटित कर दिया, वह मृत पदार्थ रह गयी। चींटियों ने उसे अपना भोजन बनाया। मृत पदार्थ अनेक जीवनों को धारण करने का आधार बना। बाथरूम धुलने के समय कुछ चींटियाँ वहाँ रही होंगी तो पानी में बह गयी होंगी। जाने वे जीवित होंगी या फिर उन में से कुछ मृत पदार्थ में परिवर्तित हो कर और किसी जीवन का आधार बनी होंगी।

इस बीच काल्पनिक आत्मा और परमात्मा कहीं नहीं थे, अब इस कथा को पढ़ कर वे किसी के चित्त में मूर्त हो भी जाएँ तो उन सब का आधार यह भूत-कथा ही होगी।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

कैसा लगा आलेख? अच्छा या बुरा? मन को प्रफुल्लता मिली या आया क्रोध?
कुछ नया मिला या वही पुराना घिसा पिटा राग? कुछ तो किया होगा महसूस?
जो भी हो, जरा यहाँ टिपिया दीजिए.....