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शनिवार, 13 जून 2015

फर्जी डिग्री

'लघुकथा'
रामदास सरकारी टीचर हो गया। वह स्कूल में मुझ से चार साल पीछे था। एक साधारण विद्यार्थी जो हमेशा पास होने के लिए जूझता रहता था।  मैं स्कूल से कालेज में चला गया। फिर पता लगा कि वह दसवीं क्लास में दो बार फेल हो जाने पर पढ़ने मध्यप्रदेश चला गया। कुछ साल बाद जानकारी मिली कि उस ने वहाँ से न केवल हायर सैकण्डरी बल्कि बीए भी कर लिया और बीएड भी। कुछ दिन उस ने निजी स्कूलों में भी पढाया।

सरकारी नौकरी मिलने पर उस की पहली पोस्टिंग किसी गाँव के स्कूल में हुई थी। वह एक जीप से रोज शहर से गाँव जाता। इसी जीप से बहुत टीचर और टीचरनियाँ रोज शहर से गाँवों के स्कूल जाया करते थे। एक टीचरनी से उस की दोस्ती हो गयी। दोस्ती भी ऐसी कि धीरे धीरे प्यार में बदल गयी। दोनों ने शादी कर ली। 

शादी हो जाने के बाद दोनों ने कोशिश कर के अपनी पोस्टिंग जिला मुख्यालय पर करवा ली। दोनों कमाते और बचाते। फिर जिला मुख्यालय के शहर की ही एक बस्ती में प्लाट ले लिया। धीरे धीरे उस पर दो मंजिला मकान बना लिया। उन्हीं दिनों पडौस में कोचिंग इंस्टीट्यूट खुले तो पढ़ने वाले बच्चे कमरे ढूंढने लगे। रामदास ने बैंक से लोन ले कर दो मंजिलें और बना लीं और कमरे कोचिंग स्टूडेण्ट्स को किराए पर चढ़ा दिए। 

फिर एक दिन पता लगा कि रामदास की हायर सैकण्डरी का प्रमाण पत्र फर्जी निकला। उसे आरोप पत्र मिला और आखिर उसे नौोकरी से निकाल दिया गया। पर इस से रामदास के जीवन पर कोई बड़ा असर नहीं हुआ। रामदास की पत्नी अब भी सरकारी टीचर है। वह नौकरी पर जाती है। घर का सारा काम रामदास देख लेता है। खाना भी अक्सर दोनों वक्त का खुद ही बनाता है और बच्चों को भी संभाल लेता है। आमदनी की कोई कमी नहीं। जितना वेतन टीचर की नौकरी से मिलता था उस से दुगना तो वह मकान के किराए से कमा लेता है। रामदास सुखी है, उस की पत्नी अब भी खुश है। बेटा इंजिनियर हो गया है, बंगलौर में नौकरी कर रहा है। रामदास के पास बेटे के लिए खूब रिश्ते आ रहे हैं अच्छे खासे दहेज के प्रस्ताव के साथ।

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