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सोमवार, 18 जून 2012

हमें का हानि?



बाबूलाल फिटर बिना नागा रोज सुबह साढ़े नौ बजे राधे की पान की दुकान पर पहुँच जाता है। तब पान की दुकान खुली ही होती है। वह पान की दुकान के आरंभिक कामों में राधे की मदद करता है। राधे उसे चाय पिलाता है और मुफ्त में तम्बाकू खाने देता है। आसपास नल और सेनेटरी फिटिंग का सामान बेचने वालों की दुकानें हैं। उन दुकानों पर नल और सेनेटरी फिटिंग की मरम्मत कराने वाले पहुँचते हैं। दुकानदार मरम्मत कराने वालों को बाबूलाल से मिलवा देते हैं, उसे काम मिल जाता है। कई वर्षों से वह यही काम कर रहा है। उस के रिश्तेदारों ने उस की पत्नी को बहुत परेशान किया जिसे वह बहुत चाहता था। पत्नी बीमार हो कर एक बेटी को छोड़ चल बसी। बाबू को मानसिक आघात लगा। उस ने बेटी के खातिर दूसरा विवाह कर लिया। दूसरी पत्नी भी उसे प्रेम करने वाली मिली जिसे वह अपने सभी रिश्तेदारों से बचा कर रखता है। उस की बेटी बड़ी हो रही है और तीसरी क्लास में पढ़ती है। पहली पत्नी को परेशान करने वाले रिश्तेदार उसे राक्षस प्रतीत होते हैं। वह चाहता है उन्हें अपने किए की सजा मिले। लेकिन वह उन का कुछ नहीं बिगाड़ सकता। सरकारी मशीनरी उस की सुनती नहीं। उसे सुनाने के साधन उस के पास नहीं हैं। जब भी वह फालतू होता है तो पुरानी बातें सोचते सोचते इन रिश्तेदारों के प्रति गुस्से से भर उठता है। तब वह पान की दुकान के सामने फुटपाथ पर इधर से उधर चहल कदमी करते हुए अपने राक्षस रिश्तेदारों के लिए हवा में गालियाँ फेंकने लगता है। उसे विश्वास है कि उस के भगवान कभी न कभी उन राक्षसों को अवश्य दंडित करेंगे, यही वह बोलता रहता है।  लोग उस का तमाशा देखने लगते हैं। कभी कोई उसे उस हालत में छेड़ दे तो उस से वह शत्रु की तरह भिड़ जाता है। लेकिन कोई उसे प्रेम से पुकारे तो वह गुस्से के मोड से बाहर आ कर एक सामान्य व्यक्ति की तरह व्यवहार करने लगता है। बाबूलाल भारत का एक आम नागरिक है, जो केवल अपने भरोसे जीता है।

रोज सुबह अदालत जाते समय मैं राधे की दुकान पर रुकता हूँ और बाबूलाल को गुड मॉर्निंग कहता हूँ। उसे यह अच्छा लगता है। सामाजिक व्यवहार पर और राजनीति पर उस की अपनी समझ है। उस पर बात भी करता है। उस से बाजार के लोगों के बारे में पूछो तो सब के बारे में अपनी राय खुल कर प्रकट करता है। उसे यह चिंता भी नहीं होती कि यदि किसी के बारे में उस ने कुछ बुरा कहा तो वे उस का कुछ बिगाड़ सकते हैं। बाबूलाल से मेरी दोस्ती हो गई है। मैं अक्सर सामाजिक और राजनीतिक मामलों पर उस की राय पूछता रहता हूँ।

ल सुबह वह मिला तो मैं ने पूछा- बाबूलाल, देश का नया राष्ट्रपति चुना जाना है, तुम्हारी राय में किसे राष्ट्रपति बनाना चाहिए? मेरा सवाल सुन कर चुप हो गया। दुकान पर खड़े लोग उस की प्रतिक्रिया जानने को उत्सुक हो गए।  राधे मेरा पान लगाने लगा।

मेरा सवाल उसे कुछ अधिक समझ नहीं आया। उस ने मुझ से पूछा कि अभी राष्ट्रपति कौन है? मैं ने उसे वर्तमान राष्ट्रपति का नाम बताया तो बोला -यह तो मुझे भी याद था। पर अभी याद नहीं आ रहा था। पहले तो कलाम साहब राष्ट्रपति थे।  वे अच्छे थे।  स्कूलों में जाते थे, बच्चों से बातें करते थे, उन की हिम्मत बढ़ाते थे। इन वाली राष्ट्रपति का तो पता ही नहीं लगा कि इन्हों ने पाँच बरसों में किया क्या?
ज्यादातर विदेश घूमती रहीं। एक देश से लौटतीं, दूसरे का प्लान बनने लगता।
 -पर राष्ट्रपति का काम क्या होता है? बाबूलाल ने पूछा।
 तब राधे बताने लगा कि पहले देश में बहुत से राजा होते थे। देश आजाद हुआ तो सब राजाओं की राजाई छिन गई। जनतंत्र कायम हो गया। पूरे देश को एक ही राजा की जरूरत थी। तो तय किया कि एक व्यक्ति को विधायक और सांसद मिल कर चुनेंगे और वह राजा की गद्दी पर बैठेगा उसे राष्ट्रपति कहेंगे।
 बाबूलाल ने बीच में ही राधे को टोका – इतना तो मुझे भी याद है। मैं ने भी आठवीं कक्षा पास कर रखी है।  मैं तो पूछ रहा था कि राष्ट्रपति काम क्या करता है?

मैं ने उसे बताया कि राष्ट्रपति संसद को भाषण देता है लेकिन भाषण सरकार तैयार करती है। गणतंत्र दिवस पर परेड की सलामी लेता है। समय समय पर देशवासियों को संदेश देता है। दूसरे देशों के राष्ट्रपति या राजा आते हैं तो उन से मिलता है और दूसरे देशों में मिलने जाता है। संसद या विधानसभाएँ कोई कानून बनाती हैं तो उन पर हस्ताक्षर करता है। देश का सारा राज उसी के नाम  से चलता है। वह हमारी सेनाओं प्रमुख कहलाता है और भी बहुत से काम हैं।  
 -तो ये बात है। फिर तो किसी को भी राष्ट्रपति बना दो, क्या फरक पड़ता है। ये सब काम तो कोई भी कर लेगा। आप ही क्यों नहीं बन जाते राष्ट्रपति? क्या आप नहीं कर सकते ये काम? उस की इस बात पर वहाँ उपस्थित सभी लोग हँस पड़े, बाबूलाल सकुचा गया। उसे लगा उस ने कोई गलती कर दी है। फिर वह संभला और मुझे छोड़ सब से तर्क करने लगा।
 -मैं ने क्या गलत कहा? क्या भाई साहब राष्ट्रपति नहीं बन सकते? क्या कमी है इन में? ....


हाँ आ कर बाबूलाल मनोरंजन का पात्र हो गया था। राधे ने मेरा पान बना दिया था। मैं वहाँ से चलने को था। मैं ने बाबूलाल को कहा -मैं ने कभी चुनाव नहीं लड़ा और मैं लड़ूंगा भी नहीं। चुनाव में दर्जनों पाप करने पड़ते हैं। मैं चुनाव नहीं लड़ूंगा तो राष्ट्रपति कैसे बनूंगा? फिर जब राष्ट्रपति को कुछ करना ही नहीं है तो बन कर भी क्या करूंगा?
बाबूलाल को मेरी बात समझ आ गई थी। वह बोला -हाँ, रामायण में भी तो लिखा है “कोऊ नृप होय हमें का हानि”।

मुझे अदालत के लिए देर होने लगी थी। मैं ने बाबूलाल को कहा कि मैं कल आऊंगा तब बात करेंगे। मैं ने उस के आगे हाथ बढ़ाया। उस ने  हाथ मिला कर मुझे विदा किया।

7 टिप्‍पणियां:

  1. जब कुछ करना ही नहीं है , तो कोई भी बने या हम क्यों बने ...क्या !!!!

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  2. यह नए चरित्र बढ़िया लगे ...
    बाबू लाल क्यों राष्ट्रपति नहीं बन सकता ??

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  3. नहीं नहीं इस बार के राष्ट्रपति को २०१४ के चुनावों के बाद सरकार बनवाने का भारी और मुश्किल काम करना है इसी कारण तो इतना माथा पच्ची हो रहा है |

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  4. वैसे तो बाबूलाल की बात सही है किन्तु अंशुमाला की बात महत्वपूर्ण है।
    रामायण की कोई नृप वाली चौपाई ने भी हमारे समाज की सोच का बंटाधार करने में बहुत महत्वपूर्ण योगदान दिया है।
    घुघूती बासूती

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  5. वैसे अनुसूयला कि बात सही है मगर बाबूलाल भी अपनी जगह गलत नहीं बातों ही बातों में एक साधारण से बात में बहुत कुछ कह गया वो ....

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  6. सच में बहुतों को तो कुछ भी अन्तर नहीं पड़ता है..

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  7. यथार्थ ही तो कहा कि राष्ट्रपति करता ही क्या है ? इंटर में सिविक्स में यही पढ़ा था --- राष्ट्रपति सोने के पिंजरे में तोते के समान है ...

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