मजमा अच्छा लगाया गया था। हर काम लाजवाब था। बड़ा मैदान बुक था, योग शिक्षा के लिए। वहीं अनशन होना था। वायु मार्ग से बाबा राजधानी पहुँचे। सत्ता के चार-चार नवरत्नों ने अगवानी की। बहुत मनाया। पर कसर रह गई। पाँच सितारा में फिर मनौवल चली। क्या बात हुई? क्या सहमति बनी किसी को नहीं बताया। बताया तो सिर्फ इतना कि अनशन होगा। अनशन हुआ तो दिन भर इधर से उधर, उधर से इधर फोन घनघनाते रहे। शाम को जय हो गई। सत्ता ने ज्यादातर मांगे मान ली हैं। शामियाना उल्लास से भर गया। तब सत्ता ने बताया कि जय तो कल ही हो गई थी। बाबा ने दोपहर तक अनशन और दो दिन तप करने का वायदा किया था। वायदा नहीं निभाया। लिखित चिट्ठी पढ़ दी गई। बाबा बैक फुट पर आ गए। संफाई पर सफाई देते रहे। कहते रहे -सत्ता ने उन के साथ धोखा किया। बाबा के सिर मुंढाते ही ओले पड़े। बाबा ने जनता का विश्वास खोया। बाबा ने को राजनीति का पहला सबक मिला। सत्ता के विश्वास से जनता का विश्वास बड़ा है। उसे जीतने की जल्दी में अनशन पर डट गए। जनता का विश्वास तो जा ही चुका था। अब सत्ता का विश्वास भी गया।
जनता जब विश्वास करती है तो आँख मूंद कर करती है। लेकिन जब उस का विश्वास टूटता है तो फिर से वापस वह विश्वास करे। यह आसान नहीं है। जनता का विश्वास हटते ही, सत्ता ने अपनी नंगई दिखाई। आधी रात के बाद हमला हुआ। पुलिस बाबा तक पहुँचे उस से पहले ही बाबा जनता के बीच कूद पड़े। पर देर हो चुकी थी। जनता भी घिरी पड़ी थी। कितना ही प्रयास किया। कपड़े बदले, वेष बदले पर पकड़े गए और सत्ता ने उन्हें उसी बदले वेष में राजधानी के बाहर कर दिया। सरकार के इस बेवकूफी और बर्बर तरीके की आलोचना आरंभ हो गई। जो जो सरकार से खार खाए बैठा था। वही उस के खिलाफ बोलने लगा। बाबा समझे उनको समर्थन है। वे राजधानी के अंदर नहीं तो परकोटे के बाहर बैठने चले। पर जिस ने जनता का विश्वास खोया, जिस ने सत्ता का विश्वास खोया। उसे कोई कैसे पनाह दे? सो बाबा वापस अपने घर लौटा दिए गए। अब वे वापस विश्वास जीतने बैठे हैं। लेकिन दुबारा विश्वास जीत पाएंगे या नहीं यह तो भविष्य ही बताएगा। यह सब से बड़ा योग है जिसे बाबा को अभी सीखना शेष है।
सरकार सिर्फ अपने आकाओं की सगी होती है। लेकिन आका तभी तक उसे पालते हैं जब तक वह जनता को भ्रम में रख पाती है। जनता के विश्वास को झटका देते ही सरकार ने बाबा पर हमला बोला। वह भी इस बेवकूफी के साथ कि बाबा के साथ-साथ जनता भी चपेट में आई। सरकार कहती है कि बाबा ने वादा तोड़ा। योगकक्षा के लिए अनुमति ले कर अनशन किया। अनुमति रद्द कर दी। उन्हें हटाना जरूरी था। हम मान सकते हैं कि उन्हें हटाना जरूरी था। लेकिन वहाँ इकट्ठे लोगों का क्या कसूर था? या तो वे योग कक्षा में आए थे, या फिर अनशन पर बैठने, या फिर दिन भर की पगार कमाने। उन पर लाठी की जरूरत क्या थी। उस के पास दिल्ली और केंद्रीय सत्ता की ताकत थी। पाँच हजार जवानों ने मैदान को घेरा था। अंदर निहत्थे लोग थे, बुजुर्ग, महिलाएँ और बच्चे। क्या जरूरत थी उन्हें जबरन वहाँ से हटाने की? आप के पास माइक भी जरूर रहे होंगे। आप के पास निकट ही सैंकड़ों बसें भी खड़ी थीं। उन्हें भी लगाया जा सकता था। घेरने के बाद यह घोषणा भी की जा सकती थी कि रामलीला मैदान का जमाव अवैध घोषित कर दिया गया है। वहाँ आयोजन की अनुमति रद्द कर दी गई है। सब वहाँ से हट जाएँ। सरकार ने उन्हें वापस उन के घरों तक पहुँचाने की व्यवस्था कर दी है। जो स्टेशन जाना चाहे स्टेशन तक पहुँचाया जाएगा। जो बस स्टेंड जाना चाहे उसे बस स्टेंड पहुँचाया जाएगा। जब तक लोगों के घर जाने का साधन न हो जाए तब तक उन के ठहरने खाने की व्यवस्था कर दी गई है। घिरे हुए लोगों को समय देते कुछ सोचने का। निहत्थे बुजुर्ग, महिलाएँ और बच्चे क्या कर लेते?
पर सरकार ने जनतंत्र का पाठ सीखा ही कहाँ है? तिरेसठ सालों में भी अंग्रेजों की विरासत ही ढोई जा रही है। उन्हीं का मार्ग नजर आता है। सरकार को जनता चार बरस तक कहाँ दिखाई देती है? वह तो सिर्फ चुनाव के साल में नजर आती है। सरकार को सिर्फ बाबा दिखाई दिए। उन को हवाई जहाज में बिठा कर उन के घर पहुँचाया। जनता दिखाई देती तो उसे पहुँचाते। सरकार सोचती है कि जनता में दिमाग नहीं होता। वह कभी सोचती नहीं। लेकिन वह सोचती भी है और जब वक्त आता है तो कर भी गुजरती है। जनता तो उस के पीछे जाएगी जो उस की बात करेगा और जो विश्वसनीय होगा। वह धोखा खाएगी तो फिर नया तलाश लेगी। लेकिन वह सोचेगी भी और करेगी भी। कोई विश्वास के काबिल न मिला तो अपने अंदर से पैदा कर लेगी। जब वह अपने अंदर से अपना नेता पैदा कर लेगी तब? सरकारों और सत्ताओं को सोचना चाहिए कि तब उन का क्या होगा? देर भले ही हो, पर किसी दिन यह जरूर होगा।
वकील साहब ! बाबा के साथ भी जो कुछ घटा रात में इसी टाइम घटा था और आपने भी इसी समय विस्तार से सब कुछ लिख डाला। जो लिखा दिल उसकी तस्दीक़ करता गया।
जवाब देंहटाएंमैं आपसे सहमत हूं लेकिन मैं इतना कहना चाहूंगा कि जनता ने कांग्रेस को हरा भी दिया तो वह किसे लाएगी ?
यहां तो एक सांपनाथ है तो दूजा नागनाथ ।
क्या आपने मेरा लेख पढ़ा है ?
घूंघट में सन्यासी और वह भी दाढ़ी वाला
द्विवेदी जी, बहुत गहरी बात कह दी आपने। पर काश, इन नेताओं को समझ में आती।
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कौमार्य के प्रमाण पत्र की ज़रूरत किसे है?
बाबाजी, भ्रष्टाचार के सबसे बड़े सवाल की उपेक्षा क्यों?
आपकी बातों से सहमत हूँ..एक दिन जरुर वैसा आयेगा..और जल्दी ही.
जवाब देंहटाएंyeh kaale aangrez hai jinhe sb ko fir se aazaadi ki ldaayi ld kar bhgaana hai bhtrin lekhn ke liyen bdhaai ..akhtar khan akela kota rajsthan
जवाब देंहटाएंआपकी पोस्ट की चर्चा यहाँ भी है .....
जवाब देंहटाएंआज के खास चिट्ठे ...
सहमत हूँ आपसे ....शुभकामनायें !!
जवाब देंहटाएंसत्ता का नशा किसी को नहीं छोड़ता...
जवाब देंहटाएं"घेरने के बाद यह घोषणा भी की जा सकती थी कि रामलीला मैदान का जमाव अवैध घोषित कर दिया गया है। वहाँ आयोजन की अनुमति रद्द कर दी गई है। सब वहाँ से हट जाएँ। सरकार ने उन्हें वापस उन के घरों तक पहुँचाने की व्यवस्था कर दी है। जो स्टेशन जाना चाहे स्टेशन तक पहुँचाया जाएगा। जो बस स्टेंड जाना चाहे उसे बस स्टेंड पहुँचाया जाएगा। जब तक लोगों के घर जाने का साधन न हो जाए तब तक उन के ठहरने खाने की व्यवस्था कर दी गई है।"
जवाब देंहटाएंहाँ यह होना ही चाहिए था
राजनीति की घातें और प्रतिघातें।
जवाब देंहटाएंबाबा आपात-प्रबँधन का गृहकार्य ( Home-Work ) कर के यह झमेला खड़ा करते, तो ऎसा न होता । प्रशासन से झूठ बोला ( योगाशिविर चलायेंगे ) जनता को धोखे में रखा ( एक रूपये का पचास डॉलर.. सरकार से आरपार की लड़ाई करेंगे वगैरह ) खुद बदनाम हुये, जनता घायल हुई, सरकार तमाम होने को है । बाबा आपात-प्रबँधन का गृहकार्य कर के यह झमेला खड़ा करते, तो ऎसा न होता ।
जवाब देंहटाएंबढ़िया विश्लेषण... हमाम में सब नंगे हैं...
जवाब देंहटाएंघेरने के बाद यह घोषणा भी की जा सकती थी कि रामलीला मैदान का जमाव अवैध घोषित कर दिया गया है। वहाँ आयोजन की अनुमति रद्द कर दी गई है। सब वहाँ से हट जाएँ। सरकार ने उन्हें वापस उन के घरों तक पहुँचाने की व्यवस्था कर दी है। जो स्टेशन जाना चाहे स्टेशन तक पहुँचाया जाएगा। जो बस स्टेंड जाना चाहे उसे बस स्टेंड पहुँचाया जाएगा। जब तक लोगों के घर जाने का साधन न हो जाए तब तक उन के ठहरने खाने की व्यवस्था कर दी गई है।
क्या जहाँ बाबा और भक्त के द्वारा अजीबो-गरीब हथकंडे अपना रहे हों, बाबा चुपचाप गिरफ्तारी देने की जगह छुपते फिर रहे हो, क्या वहां ऐसा संभव हो सकता था?
और अगर ऐसा हो जाता तो फिर दोनों की राजनीति कैसे संवरती???
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जवाब देंहटाएंवैसे इस प्रकरण में सबसे बड़ी गलती मैं कपिल सिब्बल की मानता हूँ... ना वोह बाबा का समझौते वाला ख़त मीडिया को दिखाते और ना बात इतनी बिगडती....
जवाब देंहटाएंअपकी बात्5ओं से सहमत हूँ लेकिन क्या माइक पर कहने से जनता चली जाती उसे तो बाबा के आदेश मानने थे न कि सरकार के लेकिन यहीं बाबा जनता को अर्जित करने का योग भूल गये उसे पितते हुये छोद कर अपनी जान बचा कर भागे वो भी एक ड्रामे की तरह। योगी का ये दोहरा चरित्र क्यों? सरकारें तो दमन करना ही जानती हैं, तिजोरियाँ ऐसे ही नही भरी जाती।
जवाब देंहटाएंभीड़ किसी की नहीं सुनती हैं , व्यवस्थित से व्यवस्थित जगह भी भीड़ का तीतर बीतर होना हमेशा कुछ लोगो को चोट पहुचता हैं . आम आदमी भेड़ चाल चलता हैं . और यहाँ तो पढ़े लिखे भी थे . क्या जरुरत थी भागने की शांति से लाइन बना कर क्यूँ नहीं पंडाल खली कर दिया
जवाब देंहटाएंआप को शायद पता न हो , आम आदमी जो एक बार वहाँ घुस गया था उसको बाहर नहीं निकलने दिया गया था . उस से कहा गया की यहाँ सब व्यवस्था हैं , पंडाल से बाहर नहीं जा सकते हो . टोइलेट हैं , पानी की लाइन हैं , शिकंजी का इंतज़ाम हैं , पंखा हैं , बत्ती हैं अब जब तक अनशन ख़तम नहीं होता बाहर नहीं जाना हैं . जितने दिन रहोगे पैसा दिया जायेगा . हर गेट पर लोग तैनात थे . जो रामदेव के अनुयायी थे . जो लोग पंडाल से जाना चाहते थे उन को नहीं निकालने दिया गया रात को .
रचना जी, पर आपकी बात यहां सुनना कौन चाहता है।
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बाबूजी, न लो इतने मज़े...
भ्रष्टाचार के इस सवाल की उपेक्षा क्यों?
‘ बाबा को राजनीति का पहला सबक मिला।’
जवाब देंहटाएंसच कहा है आपने :)
सार्थक और सटीक विश्लेषण
जवाब देंहटाएंबाबा अभी राजनीती में नए है उन्हें इसे सीखने में अभी बरसों लगेंगे खास कर ये जानने में की वी आई पी दिखावा गिरफ्तारिया क्या होती है और उसका क्या मतलब होता है |
जवाब देंहटाएंबाबा अतिआत्मविश्वासी हो गये हैं । बाबा का यह अतिआत्मविश्वास शायद अपने लाखों भक्तों के जनाधार के कारण हैं। जो व्यवस्था परिवर्तन कर अपना राम(देव) राज लाना चाहते हैं ।
जवाब देंहटाएंmy blog- संशयवादी विचारक
बाबा ने बहुत बडे बदम्नाशो से पंगा ले लिया, हम तो पहले ही सोच रहे थे कि क्या बाबा इन से पार पा जायेगा? यहां जितनी बडी कुर्सी हे वो उतना ही लाशो पर टिका हे... अब आग तो लग गई हे, ओर मोका भी हे जनता को आगे बढना चाहिये पिछॆ हटे तो फ़िर कभी नही मोका मिलेगा,,, बढो ओर इस सिस्टम को बदल दो.... यह काम अब सिर्फ़ जनता कर सकती हे
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