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रविवार, 5 जून 2011

जन नेता अवतार नहीं लेते

ल और आज जो कुछ देश की राजधानी में हुआ वह सब ने देखा-सुना है। उस पर तबसरा करने का मेरा कोई इरादा नहीं है। वैसे भी इन घटनाओं पर मैं ने अपनी राय अपनी पिछली पोस्ट छोटा भाई बड़े भाई से बड़ा हथियार जमीन पर रखवा कर कुश्ती लड़ना चाहता है में आप के सामने रखी थी। बाद में खुशदीप भाई ने अपनी राय देशनामा में व्यक्त की थी। वहाँ मैं ने अपनी राय अभिव्यक्त करते हुए अंकित करते हुए लिखा था, बहुतों की निगाह में बाबा भगवान से कम नहीं। आप बेकार ही उन्हें नाराज कर रहे हैं। दो दिन में सच सामने आ जाएगा। आप, हम और डाक्टर अमर कुमार जैसे लोगों फोकट जुगाली कर रहे हैं। उस टिप्पणी के बाद आठ घंटों में ही सारा सच सामने आ गया। 

हाँ तक सरकार के चरित्र का प्रश्न है, उस मामले में मुझे कोई मुगालता नहीं है। यह सरकार और देश की लगभग सभी राज्य सरकारें। बहुराष्ट्रीय निगमों, देशी पूंजीपतियों और देश की बची-खुची सामंती ताकतों का प्रतिनिधित्व करती हैं। वे उन्हीं के हित साधती हैं। जनता से उन का लेना-देना सिर्फ वोट प्राप्त कर के सरकार बनाने और या फिर कानून व्यवस्था तक सीमित है। कानून व्यवस्था भी ऐसी कि उन के इन आकाओं को कोई हानि नहीं पहुँचे। जब भी जनता का गुस्सा उबाल पर होती है और इन तीन आकाओं के हित संकट में होते हैं तो सरकार तानाशाही की ओर कदम उठाने से कभी नहीं हिचकती। उस ने कल और आज जो कुछ किया वह उस के चरित्र के अनुरूप ही था। यह अवश्य कि जो कुछ उसे सफाई के साथ करना चाहिए था वह उस ने बहुत बेतरतीबी के साथ किया। अब जनता यदि गुस्से में आती है और एक संगठित प्रतिरोध निर्मित होता है तो उस का श्रेय किसी विपक्षी नेता या आंदोलनकारी के अपेक्षा सरकार को ही अधिक जाएगा। आखिर उस ने काम ही इतने बेकार तरीके से किया है कि यह सब तो आने वाले दिनों में होना है।  जहाँ तक बाबा और उन के आंदोलन का सवाल है उस पर भाई प्रवीण शाह ने अपनी पोस्ट अनशन पर बाबा, सिस्टम का पलटवार और इस बार तो निराश ही किया योगऋषि ने... (भाग-२) में सटीक  टिप्पणी की है। रही सही कसर मनु श्रीवास्तव ने अपनी पोस्ट राम (देव) लीला !!! में पूरी कर दी है। उस के आगे मुझे कुछ नहीं कहना है। 

मुझे सिर्फ इतना कहना है कि भ्रष्टाचार उक्त तीनों आकाओं की सत्ता के लिए रक्त के समान है यह सत्ता उसी से साँस लेती है। यदि उस का रक्त निचोड़ लिया जाए तो वह एक क्षण के लिए भी जीवित नहीं रह सकती। इसलिए यह समझना कि भ्रष्टाचार लोकपाल कानून लाने से समाप्त हो जाएगा  या फिर सरकार द्वारा कुछ मांगे मान लेने से उस की विदाई निश्चित हो जाएगी बहुत बड़ी नासमझी है। यदि भ्रष्टाचार समाप्त करना है तो उस के लिए समूची व्यवस्था को बदलना होगा। मौजूदा व्यवस्था का स्थान एक नई व्यवस्था ले, तभी यह संभव है। लेकिन जब व्यवस्था बदलती है तो उसे हम क्रांति कहते हैं। इस काम को जनता एक व्यापक और सुसंगठित संगठन के नेतृत्व में ही कर सकती है। इस संगठन का निर्माण भी जनता ही करती है। परिस्थितियाँ ऐसे संगठन को फलने फूलने और आगे बढ़ने का अवसर प्रदान करती है। वर्तमान में ऐसे व्यापक संगठन का अभाव देश में देखा जा सकता है। हालाँकि बहुत छोटे और स्थानीय स्तर पर ऐसे संगठन देश के सभी भागों में देखे जा सकते हैं। जनता के ऐसे संगठन जिन का संचालन संगठन के सदस्यों द्वारा जनतांत्रिक ढंग से किया जाता है उन का निर्माण आवश्यक है। इस लिए सब से प्राथमिक बात यह है कि हम जहाँ भी रह रहे हैं वहाँ जनता के जनतांत्रिक संगठनों का निर्माण करें, उन्हें पालें पोसें और उन का विस्तार करें। आगे चल कर देश के सैंकड़ों हजारों ऐसे ही जनतांत्रिक संगठन आपस में मिल कर बड़े और व्यापक संगठन का निर्माण कर सकते हैं। ऐसे ही संगठन के नेतृत्व में जनता व्यवस्था परिवर्तन के ऐतिहासिक काम को पूरा करेगी। जहाँ तक नेता का प्रश्न है तो वे अवतार नहीं लेते, उन का निर्माण संघर्ष और जनता की कड़ी अग्निपरीक्षा में तप कर होता है। वे भी जनता के बीच से जनसंघर्षों की आग में तप कर ही जन्म लेंगे। 

17 टिप्‍पणियां:

  1. @वर्तमान में ऐसे व्यापक संगठन का अभाव देश में देखा जा सकता है।
    दशकों से देश के विभिन्न क्षेत्रों में विभिन्न निर्दयी बन्दूकची संगठनों द्वारा क्रांति का हल्ला मचाने के बावज़ूद ऐसा अभाव क्यों है? ऐसे संगठन पूरे प्रचारतंत्र और भयतंत्र होते हुए भी जनता को अपने साथ क्यों नहीं ला सके? क्या बाबा रामदेव इस खाई को भर रहे हैं?

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  2. @Smart Indian - स्मार्ट इंडियन

    बाबा रामदेव के पास भक्तों और अनुयायियों की भीड़ है। कोई जन संगठन नहीं। उस भीड़ का कारनामा तो 4-5 जून की रात को देखा जा चुका है और बाबा की क्रांतिकारिता भी। वे आराम से अपनी और लोगों की गिरफ्तारी दे सेकते थे। उन में इतनी अपरिपक्वता और अवसरवादिता है कि अनशन आरंभ करने के पहले उसे समाप्त करने के लिए चिट्ठी सरकार को सौंप बैठे। फिर सफलता की घोषणा भी कर दी। लेकिन सरकार ने उन के इस षड़यंत्र की पोल खुद ही खोल दी। फिर वे दो घंटों तक चिट्ठी पर सफाई देते रहे। खिसियानेपन में अनशन को आगे बढ़ा दिया।

    जन संगठन नेता नहीं बनाया करते हैं। जनता के संगठनों में नेताओं का निर्माण हुआ करता है।

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  3. .सँयोगवश उसी समय मैंने एक पोस्ट लिखने के बाद अपना पी.सी. ट्यूनर ऑन किया था । समय रात्रि 1.35 AM ..... सबकुछ इस बुरी तरह बदला हुआ था, बदलता जा रहा था , कि देखते देखते सुबह के चार बज गये । ईँट पत्थर चलने के बाद ही आँसू-गैस के गोले दागे गये । सवाल यह है कि आनन फ़ानन मँच पर इतने ईँट पत्थर कहाँ से आ गये । बाबा किसी के कँधे पर चढ़ कर ( स्मरण रहे कि कँधे पर चढ़ना प्रतीकात्मक चित्रण नहीं, बल्कि कैमरों में कैद वास्तविक दृश्य है ).. बाबा किसी के कँधे पर चढ़ कर माइक से कुछ बोल रहे थे, अचानक वह नटों की फ़ुर्ती से कूद कर मँच के पीछे चले गये । डँडा फ़टकारा गया और वह सरफ़रोशी की तमन्ना भूल कर सलवार ढूँढने लग पड़े । आज देखा कि मुलायम सिंह, राजनाथ सिंह जेटली सहित कई नेता बाबा का जूठा पत्तल चाट रहे हैं । बाबा का बयान टिप्पणी बक्से के लिये उपयुक्त नहीं है ।

    दरअसल हमारी लड़ाई भ्रष्टाचार के खिलाफ़ नहीं, उस व्यवस्था के खिलाफ़ चलनी चाहिये, जो इसे खाद पानी देकर पोस रही है ! बिडँबना यह है कि इस कड़ी में सबसे निचले पायदान पर हमारे मध्य के लोग यानि जनता खड़ी दिखती है । उतने बड़े जमावड़े में क्या 10% भी इतने स्वच्छ चरित्र के रहे होंगे, कि वह पूरी हनक से अपने को इस व्यवस्थित भ्रष्टव्यूह का अभिमन्यु सिद्ध कर सकें ? सभी यदि गाल बजाने में पारँगत नहीं हैं, तो इस प्र्श्न का ज़वाब देने में हमारे सूरमा बगलें झाँकते नज़र आयेंगे ।
    चमत्कारों के सहारे चलने वाले इस देश में, जहाँ नित एक नये भगवान पैदा होते हों.. बाबा द्वारा मास हिस्टीरिया पैदा कर देना अनोखा नहीं है , और उन्होंने इसे बखूबी भँजाया !

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  4. बाबा के विरोध में सुनना कौन चाहता है ? यदि आप उनके विरोध में कुछ भी कहें तो आप देश-द्रोही, कांग्रेसी, सोनिया-भक्त, सेक्युलर है !

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  5. .
    .
    .
    "सब से प्राथमिक बात यह है कि हम जहाँ भी रह रहे हैं वहाँ जनता के जनतांत्रिक संगठनों का निर्माण करें, उन्हें पालें पोसें और उन का विस्तार करें। आगे चल कर देश के सैंकड़ों हजारों ऐसे ही जनतांत्रिक संगठन आपस में मिल कर बड़े और व्यापक संगठन का निर्माण कर सकते हैं। ऐसे ही संगठन के नेतृत्व में जनता व्यवस्था परिवर्तन के ऐतिहासिक काम को पूरा करेगी। जहाँ तक नेता का प्रश्न है तो वे अवतार नहीं लेते, उन का निर्माण संघर्ष और जनता की कड़ी अग्निपरीक्षा में तप कर होता है। वे भी जनता के बीच से जनसंघर्षों की आग में तप कर ही जन्म लेंगे। "

    आज भी पक्ष व विपक्ष में भी जन-नेता मौजूद हैं और शायद इसीलिये ही एक लोकतंत्र के रूप में हमारा अस्तित्व बचा हुआ है... समय आ गया है कि इन नेताओं को सम्मान दिया जाये, बढ़ावा दिया जाये, उन पर अनुचित दोषारोपण से बचा जाये... हमारा नया नेतृत्व उन्हीं की छांव तले पल्लवित-पुष्पित होगा !



    ...

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  6. दोनों ही तरफ अनुभव की कमी स्पष्ट नजर आ रही है औए हालात गंभीर.....बाबा जी तो खैर...

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  7. नक्कारखाने में आपकी तूती की आवाज मुझे सुनायी दे गयी और मैं भी आपके साथ खड़ा हूँ ! आपके के लेख और डॉ अमर कुमार और प्रवीण शाह के कमेन्ट से सहमत हूँ भाई जी !

    मह्त्वाकांछा पर अगर कोई रिसर्च हुई तो बाबा रामदेव का उदाहरण शायद सबसे ऊंचा स्थान ले जाएगा !


    अपनी सरल और ओजस्वी भाषा में, योग को आसान बनाने की कला, बाबा तथा मिडिया ने घर घर पंहुचा कर, करोंडो लोगों का भला किया है !
    मैं खुद उनके श्रद्धालुओं में से एक हूँ !

    कपालभाती, भस्त्रिका और अनुलोम विलोम वाकई प्रभावी हैं ! बाबा से पहले इसे सिखाने वाले योगी हमें इतनी आसानी से कभी नहीं समझा पाए .....
    ...जारी

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  8. मगर बाबा का पिछले चंद सालों में बना भव्य साम्राज्य इनकी कहानी साफ़ बता देती है ...
    या इलाही ये माज़रा क्या है ??
    सन्यासी और योगी धन नहीं कमाया करते ....
    सन्यासी के लिए शिष्यों में भेदभाव नहीं होता ....
    सन्यासी फैक्ट्रियां नहीं चलाया करते .....

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  9. जहाँ तक भ्रष्टाचार मिटाने की बात है अन्ना हजारे की मुहिम सही दिशा में जा रही है बीच में यह ध्यान बंटाने की बात संशयात्मक ही रही ...

    सारे देश में फैली इस बीमारी को दूर करना है तो पहले अपने गिरेवान में झांकते हुए, अपने घर से शुरू क्यों न करें ...

    कि आज से अपना पैसा बचाने के लिए कोई बेईमानी नहीं करेंगे

    चाहे बच्चों का एडमिशन हो...
    उनकी नौकरी हो ...

    बाज़ार की खरीदारी करते समय वैट टैक्स की रसीद अवश्य लेंगे...

    घर खरीदने में सही कीमत से तिहाई कीमत दिखाते हुए टैक्स चोरी को सरकार में जमा कराएँ ....

    आप अपने आसपास प्रोपर्टी सौदों की जानकारी लें, बड़े बड़े ईमानदार, लैंड वैलुएशन में झूंठ बोलते पाए जायेंगे ! जितना पैसा यह इन्कमटेक्स में बताते हैं उससे ५० गज जमीं मिलना भी संभव नहीं है और इन्हें उतने पैसे में ५०० गज का प्लाट मिल जाता है ....

    एडमिशन के समय गलत उम्र लिखवाना तो कोई गलत मानता ही नहीं ....

    अपने पैसे खर्च करते समय देश और ईमानदारी का ध्यान अवश्य रखें......

    रचना का एक लेख याद आता है जिसमे उन्होंने लिखा था कि अगर कानून ठीक से लागू किये जाएँ तो देश का लगभग हर आदमी जेल में होगा .....

    आइये टटोलें हम अपने आपको ....

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  10. जननायक बनने में कठिन साधना करनी पड़ती है।

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  11. भाई प्रवीन जी, जन नेता की परिभाषा जरा समझा दीजिये और कौन है अभी वह भी बता दीजिये..

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  12. जब बाबा को आम जनता के साथ होना चाहिये था तब वो अपनी जान बचा कर भाग गये\ अगर वहीं रह कर अपनी गिरफ्तारी देते और लाटःइयांम्खाते तो जनता के नेता बन जाते अब तक तो वो लोगों के योग गुरू थे लेकिन नेता बनने का अवसर शायद खो चुके हैं। सरकारेम तो आपने सही कहा यही रवैया रखती हैं। समार्ट इन्डियन जी की बात से सहमत हूँ। आभार।

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  13. दिनेश जी,
    आपने अपने ब्लॉग में मुझे थोड़ी सी जगह दी, ये मेरे लिए सौभग्य की बात है.
    इतिहास गवाह है, जब भी इन्सान में महत्वाकांक्षा जगती है , तो वो विश्व विजेता बनाने के कहब देखने लगता हैं.
    बाबा जी को शायद, पी एम की कुर्सी दिख रही हो फ़िलहाल !

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  14. .
    .
    .
    @ स्मार्ट इंडियन,

    अभी हाल के ही चुनावों में विजयश्री प्राप्त सुश्री ममता बनर्जी और तरूण गोगोई को आप इस श्रेणी में रख सकते हैं... और भी हैं जैसे रमन सिंह, नीतिश कुमार, अच्युतानंदन, सुश्री मायावती जी व नरेन्द्र मोदी जी... यह सभी संघर्षों की आंच से तप कुन्दन हुऐ हैं... इन सभी की कुछ नीतियाँ विवादास्पद हो सकती हैं पर जनता की नब्ज पर उनकी पकड़ व उनकी नेतृत्व क्षमता को नकारा नहीं जा सकता...



    ...

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