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शनिवार, 5 फ़रवरी 2011

प्रायश्चित

वैभव का फोन मिला -मैं कल आ रहा हूँ। वह साढ़े तीन माह में घर लौट रहा था। मैं ने शोभा को बताया तो प्रसन्न हो गई। आखिर बेटे के घर लौटने से बड़ी खुशी इस वक्त और क्या हो सकती थी। वह एक दिन पहले ही 5-6 अचार बना कर निपटी है। निश्चित रूप से अब सोच रही होगी कि बेटा वापस जाते समय कौन कौन सा अचार ले जा सकता है। आगे वह यह भी सोच रही होगी कि वह अचार ले जाने के लिए कैसे पैक करेगी। यदि उसे कुछ भी न सूझे तो शायद कल सुबह ही मुझे यह भी कहे कि दो एक एयरटाइट बरनियाँ ले आते हैं, बच्चों को अचार वगैरह पैक करने में ठीक रहेंगे। अगले दिन सुबह वैभव ने बताया कि वह कौन सी ट्रेन से आ रहा है। मैं ने उसे कहा कि हम उसे लेने स्टेशन पहुँच जाएंगे। उस की ट्रेन लेट थी। हम ठीक आधे घंटे पहले स्टेशन के लिए रवाना हुए,  जि स से रास्ते में कहीं रुकना पड़े तब भी समय से पहुँच सकें। शोभा रास्ते में बोर्ड देखती जा रही थी। स्टेशन के ठीक नजदीक पहुँचने पर उस ने पूछा -ये एस. एस डेयरी यहाँ भी है क्या? मुझे पता नहीं था इस लिए जवाब दिया -शायद होगी। स्टेशन पहुँच कर हमने कार को अपने स्थान पर पार्क किया।
बीस मिनट की प्रतीक्षा के बाद वैभव आ गया, हम घर की ओर चले। शोभा कहने लगी डेयरी से रसगुल्ले लेंगे। मैं ने कहा वह आने वाली सड़क पर होगा तो नहीं ले पाएंगे। फिर भी मैं सड़क पर बोर्ड देखते हुए धीरे-धीरे  तेज ट्रेफिक के लिए दायीं ओर रास्ता छोड़ कर कार चलाता रहा। अचानक बाईं और डेयरी का बोर्ड दिखा। मैं ने कार पार्क करने के लिए उसे बाईं और मोडा। एक दम धड़ाम से आवाज हुई और एक बाइक कार को हलका सा छूते हुए कार से दस कदम आगे जा कर रुक गई। मैं कार रोक चुका था। बाइक वाला लड़का अपनी बाइक को खड़ी कर मेरे पास आया, लड़की बाइक के पास ही खड़ी रही। युवक ने पास आ कर कहा - कार में इंडिकेटर भी होते हैं। मुझे याद नहीं आ रहा था कि मैं ने मुड़ते हुए इंडिकेटर का उपयोग किया था या नहीं। मैं ने उसे सॉरी कहा। उस का गुस्सा कुछ कम हुआ तो कहने लगा- मैं आप को स्टेशन फॉलो कर रहा हूँ और धीरे गाड़ी चला रहा हूँ। मैं ने कहा फिर तो टक्कर नहीं होनी चाहिए थी।  वह बोला -एक तो आप गाड़ी बहुत धीरे चला रहे हैं, ऊपर  आप ने एक दम मोड़ दी। मैं समझ गया कि वह बाईं तरफ से कार को ओवरटेक करने की कोशिश कर रहा था।  मैं ने उसे फिर सॉरी करते हुए कहा- भाई, अब क्या करना है? उस ने ने अपनी बाइक की ओर देखा। लड़की अपनी कोहनी सहला रही थी, शायद वह कार से छुई होगी। लड़का बाइक तक गया,  हैंडल चैक किया, फिर लड़की की ओर देखा। शायद लड़की ने उस से यह कहा कि उसे चोट नहीं लगी है। लड़का संतुष्ट हुआ तो अपनी बाइक ले कर चल दिया। मैं ने कार को ठीक से पार्क किया, शोभा को रसगुल्ले लाने को कहा। वह लौटती उस से पहले कार को चैक किया तो अंधेरे में कोई निशान तक न दिखा। मेरी समझ नहीँ आ रहा था कि बाइक कार से कहाँ टकराई थी। 
सुबह कार देखी तो उस पर बाईँ तरफ रबर घिसने का निशान पड़ा हुआ था जो गीले कपड़े से साफ हो गया। मैं सोच रहा था कि गलती तो मेरी थी, कुछ कुछ शायद उस की भी। यह (Contributory negligence) अंशदायी लापरवाही का मामला था। चाहे मैं कार को धीरे ही चला रहा था लेकिन मैं ने उसे मोड़ा तो अचानक ही था और शायद इंडिकेटर का उपयोग किए बिना भी। लड़का भी बाईं ओर कुछ स्थान देख कर कार को ओवरटेक करने का मन बना रहा था। कार को मुड़ती देख अचकचाकर टकरा गया। वह लड़का यूँ चला न जा कर, उलझ गया होता तो, लोग तो देखने ही लगे थे। शायद मुझे कार वाला होने का नतीजे में कुछ न कुछ भुगतना पड़ता। मैं ने मन ही मन उस लड़के को एक बार फिर सॉरी कहते हुए धन्यवाद दिया और तय किया कि भविष्य में आज जैसी गलती न हो इस के लिए प्रयत्न करूंगा। 

18 टिप्‍पणियां:

  1. कभी कभी बेध्यानी मे ऐसे वाकये हो जाते हैं शुक्र है कोई बडा हादसा नही हुआ वरना प्रायश्चित का मौका भी नही रहता।

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  2. बहुत खुब जी , लेकिन अगर वो लडका बाये हाथ से ओवर टेक कर रहा था, तो गलती उस की हुयी, क्योकि हमे हमेशा सीखाया जाता हे कि जिस ओर ड्राईवर बेठता हे (जेसा की उस देश का नियम हे ) हमेशा उसी तरफ़ से ओवर टेक करना चाहिये, हमारे यहां भारत से उलटा हे ओर हम हमेशा लेफ़्ट हाथ की तफ़ से ही ओवर टेक करते हे, राईट से करने पर जुर्मना देना पडता हे अगर कुछ हादसा हो जाये तो

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  3. धीमी गति में पीछे वाले के पास पर्याप्त समय रहता है, स्वयं को बचा लेने का।

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  4. गडी धीरे चलाने का फायदा हो गया, पीछे वाले को भी संभलने का समय मिल गया|

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  5. परसों रात 1 बजे हम भी टकराते-टकराते बचे। उस एक्सीडेंट में 2 निपट गए,2 अस्पताल में हैं :(

    गाड़ी चलाने के लिए एक महीने का कोर्स बनाना चाहिए और जब तक उसमें पास हो न हो जाए, तब तक लायसेंस नहीं देना चाहिए।

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  6. सही बात है,ड्राइविंग करते समय बहुत चौकन्ना रहना पड़ता है,.

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  7. अतिरिक्त सावधानी ही फार्मूला है -अतिरिक्त इसलिए कि अगले की भी असावधानी का ख़याल आपको ही रखना है !

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  8. vaah gret dinesh ji bhaai saahb gret khud ki glti jo svikaare vhi mhaan he or yeh mhanataa aap men kut kut kr bhri he lekhn or prstutikrn bhi jivnt he . akhtar khan akela kota rajsthan

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  9. इस पोस्ट को पढकर बहुत अच्छा लगा । लोग संयम खोते जा रहे हैं विशेषकर युवावर्ग पर तो काफ़ी आरोप लगते हैं। अक्सर रोड-रेज की घटनाओं को पढना पडता है और बडा अफ़सोस होता है।

    मनोवैज्ञानिक रूप से माफ़ी मांगने अथवा केवल सारी कह देने से ही सम्बन्धित झगडे का तनाव थोडा कम हो जाता है और उसके बाद ठंडे दिमाग से सोचकर आगे की कार्यवाही की जा सकती है। किसी को कोई चोट नहीं आयी तो सब खैरियत है।

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  10. सावधानी रखें इतनी कि कोई चाहे भी तो आपकी गाड़ी से आत्‍महत्‍या न कर सके.

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  11. स्पीड भी एक बुरी चीज हैं. मंजिल पर जल्दी पहुंचा देती हैं.

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  12. अपकी इस पोस्‍ट से एक नया शब्‍द-युग्‍म 'अंशदायी लापरवाही' मिला। धन्‍यवाद।

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  13. पिछले एक महिने से हम भी धीमे ड्राइव करने लगा हूँ,पर इतनी भी नहीं कि पीछे वाला खीझ जाए...:)
    अपनी गलती से दूसरों को होने वाला नुकसान या असुविधा पर भलेमानुस को हमेशा पश्चाताप होता ही है।

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  14. अब भी अच्छे लोग बचे हैं…वैसे सावधानी ज़रूरी है।

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  15. आप बढ़िया ड्राइव करते हैं,आपने तो गलती मान ली... यहां अन्धे का लाइसेंस बन जाता है फिर वे क्या करते होंगे, उनकी सोचिये...

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  16. आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
    प्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
    कल (7/2/2011) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
    देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
    अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।
    http://charchamanch.uchcharan.com

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कैसा लगा आलेख? अच्छा या बुरा? मन को प्रफुल्लता मिली या आया क्रोध?
कुछ नया मिला या वही पुराना घिसा पिटा राग? कुछ तो किया होगा महसूस?
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