विवाह योग्य उम्र प्राप्त अविवाहित स्त्री-पुरुष चाहें तो दो साक्षियों के साथ विवाह पंजीयक के समक्ष उपस्थित हो कर विवाह कर सकते हैं और उसे पंजीकृत करवा सकते हैं। इस का समाचार वे किसी को दें या न दें, वह जंगल की आग की भांति शीघ्र ही कानों-कान बहुत दूर तक पहुँच जाता है। लेकिन यदि परंपरागत रीति से विवाह का आरंभ हो, लड़की के माता-पिता किसी लड़के को रोकने की रस्म भर कर दें तो उस का समाचार उस से भी अधिक तेजी से लोगों तक पहुँचता है। फिर सगाई और विवाह का तो कहना ही क्या? वह बेहद जटिल प्रक्रिया है। वह केवल न्योते बांट देने, मेहमानों को निमंत्रण पहुँचा देने, विवाह की समस्त व्यवस्था कर लेने मात्र से संपन्न नहीं होता। विवाह में केवल संबंधी, मित्र गण और परिचित ही नहीं जुटते, पूरा समाज जुटता है। न जाने किस-किस को मनाना पड़ता है, उन में विनायक से ले कर नायक तक जितनी भांति के लोग हैं वे सभी शामिल हैं। फिर भी बिना किसी की नाराजगी के विवाह संपन्न हो जाए तो शायद कोई भी उसे विवाह नहीं कह सकते। कुल मिला कर एक भारतीय विवाह अत्यन्त जटिल विधान है।
आज तो मैं अपने काम से जयपुर जा रहा हूँ, लेकिन तुरंत ही शाम तक लौटूंगा और कल सुबह ही अपने साढू़ भाई श्री बीजी जोशी के पुत्र नीरज के विवाह में सम्मिलित होने चल दूंगा। पत्नी जी पिछले माह की अंतिम तिथि को ही जा चुकी हैं। वे अपने साथ पहली बार मोबाइल ले कर गई हैं। दो-तीन दिन तक जब भी मैं ने घंटी की मोबाइल पत्नी जी के स्थान पर मेरी किसी न किसी साली ने उठाया। (ऐसे पी.ए. सब को मिलें, पर हम पुरुषों की ऐसी किस्मत कहाँ?) कल मैं मेरी ससुराल से जाने वाले माहेरा (भात) (इस में दूल्हे के मौसा लोग अधिक होते हैं, शायद इस लिए इसे हमारे यहाँ मौसाला भी बोलते हैं) के बेड़े में सम्मिलित हो कर शाम तक सीहोर म.प्र. में बीजी जोशी से जा मिलूंगा।
यह सीहोर भोपाल के नजदीक है, वहाँ ग़ज़ल के मास्टर जी पंकज जी सुबीर से मुलाकात होगी। पहले की सीहोर यात्रा के समय वे वहाँ नहीं थे और मुलाकात नहीं हो सकी थी। कुछ मित्र और भी हैं, उन से भी मुलाकात होगी। विवाह आठ दिसंबर को संपन्न हो लेगा। पर पत्नी जी और उन की बहनों का कहना है कि वे विवाह के उपरांत भी दो दिन और रुकेंगी, जिस से बहिन को शेष काम के निपटारे में सहायता कर सकें। मैं इन दो दिनों का सदुपयोग भोपाल के मित्रों और ब्लागरों से मिलने में करने वाला हूँ। वापसी में एक दिन ससुराल में रुकना पड़ेगा। यह रंजन भी आवश्यक है।
मित्रों! इस तरह मैं आज से पूरे सप्ताह के लिए कोटा के बाहर हूँ। संभावना इस बात की है कि अंतर्जाल संपर्क भी शायद ही हो सके। इस कारण ब्लाग जगत में किसी भी प्रकार की उपस्थिति असंभव ही होगी। इस आवश्यक अनुपस्थिति के लिए आप सभी से और अपने ब्लाग पाठकों से क्षमा चाहता हूँ। विशेष रूप से तीसरा खंबा के उन पाठकों से जो मुझ से कोई कानूनी सलाह तुरंत चाहते हैं, और उन्हें एक-दो सप्ताह प्रतीक्षा करनी होगी।
आपके भ्रमण से ईर्ष्या होती है! :)
जवाब देंहटाएंसिहोर के नाम से मुझे अपना पुराना मण्डल याद आ गया!
हैप्प्पी छुट्टियां....
जवाब देंहटाएंआप विवाहों का आनन्द उठायें। भारतीय विवाह जटिल प्रक्रियाओं से होकर इसलिये ले जाया जाता है आने वाला भविष्य उतना अनजाना सा न लगे।
जवाब देंहटाएंमोबाइल पत्नी जी के स्थान पर मेरी किसी न किसी साली ने उठाया। (सबकी ऐसी किस्मत कहाँ?)
जवाब देंहटाएंपता नहीं इस मुहावरे का उदगम क्या और कैसे है मगर बेहदभ्रमण शील लोगों के बारे में कहा जाता है की उनके पैर में शनिश्चर का वास होता है ,मगर मैं जाता हूँ की शनि तो धीमे चलने वाले हैं ..मगर आपकी गति द्रुत है !
शुभकामनायें ...भ्रमण और विवाह सम्बन्धी कामों का आनंद लें ..
जवाब देंहटाएंसीहोर हमारी जन्मस्थली है और भोपाल कर्मस्थली। दोनों स्थानों पर आपका स्वागत है।
जवाब देंहटाएं`वह बेहद जटिल प्रक्रिया है।'
जवाब देंहटाएंइस जटिल प्रक्रिया से गुज़र कर ही तो जीवन की जटिलता को जाना जाता है :)
अति रोचक, आनंद आरहा है.
जवाब देंहटाएंरामराम.
अरविन्द मिश्र जी के कमेन्ट को मेरा भी मानें ! हार्दिक शुभकामनायें !
जवाब देंहटाएंअप विवाह का आनन्द लें । हम भी 3-4 दिन बाद आज ही आये हैं। छुट्टियाँ भी जरूरी हैं। शुभकामनायें।
जवाब देंहटाएंहमारी मिठाई जरुर लाये जी, शुभकामनायें
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