वे पाँच बहुत इतराते हैं। हम हैं तो जीवन है। वह छठा? उस के लिए कहा जाता है कि वह घातक विष है, जीवन नष्ट करने वाला।
अब उन पाँचों के इतराने का वक्त ख़त्म हुआ। एक जगह उन पाँचों में से एक गायब पाया गया। उस के स्थान पर छठा मौजूद था, और जीवन बरकरार।
नासा ने घोषणा की है कि उन्हों ने प्रकृति में ऐसा जीवित बैक्टीरिया पाया है जिसमें जीवन के लिए आवश्यक पाँच तत्वों कार्बन, हाइड्रोजन, नाइट्रोजन ऑक्सीजन फॉसफोरस और सल्फर में से फॉस्फोरस को आर्सेनिक से बदला गया और वह उस के बाद न केवल जीवित रहा अपितु उस ने प्रजनन भी किया। अब तक यह माना जाता था कि जीवन के लिए ये पाँच तत्व ही आवश्यक हैं। लेकिन आज उन में से एक अनावश्यक सिद्ध हो चुका है, उस के स्थान पर एक अन्य पाँचवें ने ले ली है। इस आविष्कार ने प्रकृति में जीवन के नए रूपों की संभावना को प्रबल किया है। कभी प्रकृति में ऐसा जीवन भी देखने को मिल सकता है जिस की कभी मनुष्य ने कल्पना भी न की हो। प्रकृति असीमित है और उस की संभावनाएँ भी, और जीवन वह अक्षुण्ण है।
किसी दिन अखबार में यह समाचार हो सकता है कि एक बैक्टीरिया ने दूसरे से कहा, तुम पुरातनवादी! अभी तक फॉसफोरस इस्तेमाल करते हो। मुझे देखो! मैं ने उसे कभी से त्याग दिया है। मैं आर्सेनिक इस्तेमाल करता हूँ। कोई विज्ञापन दिखाई दे सकता है जिस में खली टाइप कोई व्यक्ति यह कहता नजर आए, मैं विश्वचैम्पियन हूँ, मेरी हड्डियाँ आर्सेनिक से बनी हैं। हम विषकन्याओं के बारे में पढ़ते-सुनते आए हैं। पर यह बैक्टीरिया वह पहली विषकन्या है जिस के पास अपने शरीर में उर्जा संवाहक अणु में फॉस्फोरस के स्थान पर घातक विष आर्सेनिक (संखिया) मौजूद है।
प्रकृति अक्षुण्ण है अनेक सत्य उद्घाटित होने बाकी हैं
जवाब देंहटाएंदिनेशजी,
जवाब देंहटाएंइस खोज को मीडिया थोडा सा घुमाकर दिखा रही है। असल में नासा ने ऐसे बैक्टीरिया की खोज नहीं की है जो अपने आप से फ़ास्फ़ोरस के स्थान पर आर्सेनिक का इस्तेमाल करता हो। वैज्ञानिकों ने जब प्रयोगशाला में फ़ास्फ़ोरस के स्थान पर आर्सेनिक का प्रयोग कर बैक्टीरिया को मजबूर किया तो बरखुरदार ने आर्सेनिक पर गुजारा कुबूल कर दिया।
इस ब्लाग पर तनिक विस्तार से वर्णन है..
http://www.johndcook.com/blog/2010/12/02/nasa-arsensic-based-file/
NASA did not find a microbe that substitutes arsenic for phosphorous. They coaxed a microbe into substituting arsenic for phosphorous. Here’s the relevant paragraph from NASA’s story:
The newly discovered microbe, strain GFAJ-1, is a member of a common group of bacteria, the Gammaproteobacteria. In the laboratory, the researchers successfully grew microbes from the lake on a diet that was very lean on phosphorus, but included generous helpings of arsenic. When researchers removed the phosphorus and replaced it with arsenic the microbes continued to grow. Subsequent analyses indicated that the arsenic was being used to produce the building blocks of new GFAJ-1 cells.
So it seems that NASA found a microbe that could use arsenic, not a microbe that naturally does use arsenic. Perhaps some are inferring that because NASA was able to make this happen in a lab, it may also have happened naturally, though no one has seen that. Maybe so.
धन्यवाद नीरज जी,
जवाब देंहटाएंमुझ से पहली बार गलती हुई। मुझे इस समाचार को स्वयं नासा की वेबसाइट पर देखना चाहिए था। गलती सुधार ली गई है। वैसे भी इन दिनों सहधर्मिणी शोभा घर में नहीं है तो बहुत गलतियाँ हो रही हैं।
अच्छी जानकारी देती पोस्ट
जवाब देंहटाएंआपने तो स्वयं एक छठे तत्व शोभा जी की अनिवार्यता स्वीकार की है! उनके बिना गलतियाँ हो रही हैं जानकर अच्छा लगा।
जवाब देंहटाएंघुघूती बासूती
हड्डी में आर्सेनिक तो नसों में?
जवाब देंहटाएंआप ज्यादा गलत भी नहीं है -संभावना है कि ब्रह्माण्ड मेबं कहीं न कहीं कार्बन की जगह सिलिका या ऐसे तत्वों से निर्मित जीवन होगा !
जवाब देंहटाएंब्लॉगर में कौन सा विस्थापित तत्व है जी जो रोज नया नया (पोस्ट) ठेलता है हवा से! :)
जवाब देंहटाएंइन दिनों सहधर्मिणी शोभा घर में नहीं है तो बहुत गलतियाँ हो रही हैं।
जवाब देंहटाएंकमाल हैं हम सहधर्मिणी के होते हुये गलती करते हैं? कहीं ये भी तो आर्सेनिक और फ़ासफ़ोरस से कुछ रिलेशन रखते हैं क्या?:)
रामराम.
वाकई फास्फोरस से आर्सेनिक तक. सफर तो लम्बा है..
जवाब देंहटाएंबढ़िया जानकारी |
जवाब देंहटाएंइस बेक्टीरिया से उन्हें भी प्रेरणा लेनी चाहिए जो आर्सेनिक युक्त भूजल पीने को मजबूर है :)
बहुत बढ़िया पोस्ट!
जवाब देंहटाएंवैसे विज्ञान का यह परम सयता नहीं है की जीवन के लिए कार्बन, हाइड्रोजन, नाइट्रोजन ऑक्सीजन फॉसफोरस और सल्फर ही अनिवार्य हों. कुछ ऐसे विश्व भी हो सकते हों जहाँ प्राणियों के जींस या डीएनए अन्य तत्वों से बनें हों.
मिसाल के तौर पर ऑक्सीजन को लें. यह परम विषैली गैस है और वातावरण में इसकी उपस्तिथि में अंश मात्र बढ़ोत्तरी या कमी आने से मानव जीवन पर संकट खड़ा हो जायेगा. दूसरी और कुछ ऐसे प्राणी हैं जिन्हें ऑक्सीजन की दरकार ही नहीं है, वे अन्य गैसों, कार्बन डाई ऑक्साइड या मीथेन से अपना काम चला लेते हैं.
थेडी-बहुत चूक के बाद भी पोस्ट रोचक है और आगत की आहट देती है।
जवाब देंहटाएंबडनगर (उज्जैन) में एक कवि हुआ करते थे - श्री कुंज बिहारी पाण्डे। उनकी दो पंक्तियॉं आपकी बात को ताकत देती हैं -
लडाई की तैयारी रखो,
इससे लडाई पास नहीं आती।
जैसे,
अपनी लुगाई पास हो तो,
दूसरे की लुगाई पास नहीं आती।