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रविवार, 1 अगस्त 2010

राजा-रानी छू-मंतर, किसान को बनाया नायक मुंशी प्रेमचंद ने

मैं तो कल मुंशी प्रेमचंद जी की जयन्ती नहीं मना पाया। बस उन का आलेख 'महाजनी सभ्यता तलाशता रहा। लेकिन उधर प्रेस क्लब में 'विकल्प जन सांस्कृतिक मंच' ने मुंशी जी का जन्मदिन बेहतरीन रीति से मनाया। इस अवसर पर नगर के सभी जाने माने साहित्यकार और कलाकार एकत्र हुए, जी हाँ वहाँ कुछ ब्लागर भी थे, बस मैं ही नहीं जा सका था। इस अवसर पर "आज की कहानी और प्रेमचंद" विषय पर एक परिचर्चा आयोजित की गई। 
प्रोफेसर राधेश्याम मेहर
रिचर्चा में समवेत विचार यह निकल कर आया कि आज के कथाकारों को केवल परिवेश की अक्कासी ही नहीं अपितु मुंशी प्रेमचंद की कहानियों और उपन्यासों से प्रेरणा ले कर आम-आदमी के जीवन की सचाइयों आत्मसात करते हुए समाज को दिशा प्रदान करने वाली रचनाओं का सृजन करना चाहिए।
कवि ओम नागर
रिचर्चा को प्रारंभ करते हुए नगर के चर्चित कथाकार विजय जोशी ने कहा कि आज की कहानियों में भौतिक विकास तो दिखाई पड़ता है लेकिन आत्मिक विकास नदारद है। कवि ओम नागर ने कहा कि आज के गाँवों की स्थितियाँ प्रेमचंद के गाँव से अधिक त्रासद हैं, लेकिन कहानियों में वे प्रभावी ढंग से अभिव्यक्त नहीं हो रही हैं। 
डॉ. अनिता वर्मा
वि, व्यंगकार और ब्लागर अतुल चतुर्वेदी ने आधुनिक समय की अनेक कहानियों के उदाहरण देते हुए बताया कि इन कहानियों में बाजारवाद तो है लेकिन मनुष्य की मुक्ति की राह दिखाई नहीं देती है। प्रेमचंद की कहानियों के पात्र आज भी गाँव-गाँव में जीवन्त हैं। लेकिन आधुनिक कहानियों में अनुभव की वह आँच नहीं दिखाई देती जो प्रेमचंद की कहानियों में थी।  डॉ. अनिता वर्मा ने कहा कि मनुष्य और समाज से प्रेमचंद को गहरा लगाव था, आज का कथाकार उस गहराई को छू भी नहीं पाता है। 
श्याम पोकरा
विशिष्ठ अतिथि श्याम पोकरा ने कहा कि प्रेमचंद ने जितनी भी कहानियाँ लिखीं वे सभी समाज के कड़वे यथार्थ से उपजी हैं। लेखकों को कृत्रिमता से बचते हुए सहजता के साथ समाज के उत्पीड़ितों की गाथा लिखनी चाहिए।
कथाकार विजय जोशी
 रिचर्चा की अध्यक्षता कर रहे कवि-रचनाकार अम्बिका दत्त ने कहा कि प्रेमचंद के पास समाज के प्रति गहरी निष्ठा, त्यागमय जीवन मूल्य, व प्रगतिशील दृष्टि थी। इसी कारण से वे आज तक बड़े लेखक बने हुए हैं। अध्यक्ष मंडल के ही सदस्य प्रोफेसर राधेश्याम मेहर ने अपने उद्बोधन में कहा कि प्रेमचंद ने कहानियों  के केन्द्रीय पात्रों  राजा-रानी को किसान और मजदूर से प्रतिस्थापित कर दिया। वे ब्रिटिश साम्राज्य के विरुद्ध स्वातंत्र्य चेतना जगाने वाले महत्वपूर्ण और प्रमुख साहित्यकार थे। समारोह के संचालक शिवराम ने इस में अपनी बात जोड़ी कि आज के साहित्यकारों को जन-स्वातंत्र्य की चेतना जगाने के लिए प्रेमचंद की ही तरह काम करने की आवश्यकता है। विकल्प जन सांस्कृतिक मंच के अध्यक्ष महेन्द्र नेह ने सभी का धन्यवाद ज्ञापित किया।
कवि-रचनाकार अम्बिका दत्त

8 टिप्‍पणियां:

  1. हम सब हर साल मुंशी प्रेमचंद जी का जन्म दिन, जयन्ती ओर पता नही क्या क्या मनाते है, लेकिन सिर्फ़ एक दिन मै भी कुछ पल ही इन्हे दे देते है , फ़िर हमारा काम तमाम, तालियां हम खुश लोग खुश.... अगर हम मुंशी प्रेमचंद जी की कहानियो को अपने जीवन मै भी उतार ले... तो जीवन कितना सुखी हो जायेगा हम सब का, मुझे आज भी याद है मुंशी प्रेमचंद जी की कहानी का डा० चड्डा, ओर आज तो चारो ओर ही ऎसे चड्डे ही चड्डॆ है...
    चित्र बहुत सुंदर लगे, साथ मै सब क परिचय भी अच्छा लगा, धन्यवाद इस सुंदर पोस्ट के लिये

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  2. प्रेमचंद अपने समय के एक विलक्षण प्रेक्षक थे....युग द्रष्टा थे -महान शब्द शिल्पी थे कहानी सम्राट (उपन्यास सम्राट तो शरतचंद्र !) यथार्थवादी साहित्य के मसीहा थे !
    समय पर आई यह रिपोर्ट

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  3. हम भी वहीं थे...
    अम्बिका दत्त ने कई महत्वपूर्ण बातें कहीं...
    अभी तो ठीक से लौटे भी नहीं...और यहां रपट हाज़िर...

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  4. यही कारण रहा हो कि प्रेमचन्द की कहानियों में अधिक अपनापन मिलता था।

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  5. आप कोई क्षेत्र छोड़ोगे भी वकील साहब !
    आपके कई लेख पढ़ कर आश्चर्य होता है की आप वकालत में क्या कर रहे हैं भाई जी ! अनवरत और तीसरा खम्बा हिंदी जगत के महत्वपूर्ण स्तम्भ हैं ! शुभकामनायें !!

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  6. भाई जी !
    लोकगीत का यह लिंक दे रहा हूँ...
    http://www.youtube.com/watch?v=nt3QdGXhti0

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