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शुक्रवार, 9 जुलाई 2010

कोई जीते, कोई हारे, हमें निर्वस्त्र दौड़ने का सिर्फ बहाना चाहिए

 राग्वे की महशहूर मॉडल लारिसा रिक्वेल्म ने अपने देश की फुटबॉल टीम के विश्वकप में जीतने पर शरीर को रंग कर सड़क पर नग्न दौड़ने की घोषणा की थी। लेकिन उन के मंसूबे उस समय धक्का लगा जब पराग्वे की टीम को क्वार्टर फाईनल में ही पराजय का मुहँ देखना पड़ा। खेल के इस परिणाम से न केवल लारिसा के मंसूबे आहत हुए अपितु लारिसा को इस प्रदर्शन में देखने की इच्छा रखने वाले लोगों को भी बेहद निराशा हुई।
लेकिन जो कोई किसी काम को करना चाहता है उस पर किसी की जीत या हार का क्या असर हो सकता है? लारिसा फुटबॉल के इस विश्व प्रदर्शन में अपने शरीर को दिखाने का अवसर नहीं छोड़ना चाहतीं। वे बस समाचारों में बनी रहना चाहती हैं। उस के लिए वे अपनी घोषणा को संशोधित कर सकती हैं। उन्होंने ऐसा किया है। उन्हों ने घोषणा की है कि वे स्पेन के विश्वकप जीतने पर ऐसा करेंगी। (समाचार)
ब जिसे यह नग्न दौड़ लगानी ही है। वह स्पेन के हारने पर और नीदरलैंड के विश्व चैंपियन बनने पर भी ऐसा कर सकती है। आखिर उसे बहाना ही तो चाहिए।

21 टिप्‍पणियां:

  1. लाईम लाईट में रहने के लिए कुछ भी करेंगे ये लोग।

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  2. सही कहा आपने बस जो करना है उसके लिए कुछ भी कहेंगे ... ना जाने ऐसा कर क्या मिल जायेगा?

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  3. बस एक ही सूत्र आज कल लोगों ने गाँठ बान्ध लिया है पैसा शोहरत चाहिये कुछ भी करेंगे। त्रासद स्थिती है। आभार।

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  4. मोहतरमा में गजब का जज़्बा है। ये खेल जो न कराए।

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  5. दो बार नाम तो चमका. दौड़ना तो वैसे भी है. मगर शायद ही कोई टीम चाहे कि उसकी जीत पर नग्न दौड़ की घोषणा हो...काहे कि वो टीम हार जाती है ना :)

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  6. पाश्चात्य संस्कृति में यह सामान्य सा हो गया है भाई जी !
    सादर !

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  7. उनकी नैतिकता के मानदंड अलग हैं !

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  8. चलिये हम इस का विडियो आप को जरुर दिखायेगे:)
    वेसे इन्हे तो एक बहाना चाहिये... नाम हो केसे भी,

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  9. मुझे तो डर है कि कहीं वो भारत के किसी खिलाडी द्वारा राष्ट्रमंडल खेल में कोई पदक जीतने पर भी ऐसी ही एक उत्साहवर्धक दौड लगाने की घोषणा न कर दें .......हे भगवान फ़िर तो सारे के सारे पदक ही भारत जीत जाएगा । ये है असली sports spirit ....टीम कोई भी भावना नहीं बदलती ...इसलिए तो कहते हैं .....भावनाओं को समझो

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  10. मगर यह बहाना क्यूं चाहिए ?

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  11. प्रचार पाने के लटके के साथ साथ Exhibitionism एक परपीड़क ( Sadistic ) मनोविकार भी है ।
    याद है आपको.. 70 के दशक में प्रोतिमा बेदी ने जुहू बीच पर अनायास ही निर्वस्त्र दौड़ लगा दी थी ।
    तब मैं क्वाँरा ही था, किन्तु ऎन मौके पर वहाँ मौज़ूद नहीं हो पाया.. बेचारी प्रोतिमा !

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  12. @ अरविन्द जी,
    आपके प्रश्न का उत्तर मेरी टिप्पणी की पहली लाइन में है ।

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  13. कुछ खेलों जैसे तैराकी, दौड़ आदि में चुस्त कपड़ों का चलन है । एथलीट का शारीरिक सौष्ठव आँखों के लिए एक ट्रीट की तरह होता है। चुस्त कपड़ों की जगह रंग ही सही। त्वचा तो छिपी ही रहेगी। देहयष्टि उभर कर दृष्टिगोचर होगी।
    सभ्यताएँ, क्या पूर्वी क्या पश्चिमी, ऐसी कथित नग्नता पर अब आसमानफाड़ू आपत्ति नहीं जतातीं क्यों कि सिनेमा में नंगई देख देख के आँखें अभ्यस्त हो चली हैं।
    अब इस प्रवृत्ति के पीछे विकृति है या यौवन का उल्लसित बिन्दासपन जो चौंका कर मजे लेना चाहता है, यह तो विद्वत मंडली की बहस का विषय है। युवा जन तो उस क्षण की प्रतीक्षा में रहेंगे।
    वैसे गोबरपट्टी के किसी क़स्बे में कोई ऐसा करे तो उसे तुरंत मानसिक रुग्णालय में भेज दिया जाएगा।
    :)
    इस टिप्पणी जैसी बात करने वाले को भी दो चार तमगे पहना दिए जाएँगे।

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  14. वर्ल्डकप की स्टार यही महोदया हो गयीं ।

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  15. लोगों की बेहूदा हरकतें! इस गाने की ओर ध्यान आकर्षित करना चाहूंगा: "पीने वालों को पीने का बहाना चाहिये"……।

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  16. आपका लेख अच्छा है| स्पेन के लिए किया जाना वाला इनके वादे के बारे में तो मुझे नहीं पता चल पाया, लेकिन अपने देश के फुटबाल टीम के सम्मान के लिए इन्होनें कल कपड़े उतार दिये|
    http://canales.diariovasco.com/ocio/famosos/larissariquelme-desnuda-201007091209.php
    यह एक स्पेनी अख़बार की वैबसाइट है, जिसमें उस पत्रिका के आवरण पृष्ठ की फोटो है, जहाँ उन्होनें अपने कपड़े उतारे हैं|

    लातिन अमेरिका खास कर उरुग्वे, अर्जेंटीना, चिली, ब्राज़ील इन सब देशों में कपड़ा उतारना कोई बड़ी बात नहीं है| यूरोप के किसी भी सागर किनारे ये सारे बातें आम हैं|

    वैसे आज का मैच कम रोमांचक होगा, क्योंकि तीसरे और चौथे स्थान के लिए कोई भी टीम अपना शत प्रतिशत नहीं देती| हाँ उरुग्वे जीतता है, तो जर्मनी की थोड़ी और भद्द पीटेगी|

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  17. डॉ अमर ,शुक्रिया ..मगर जारा गिरिजेश की बात पर भी ध्यान दें....मुझे तो लगता है यह जगत को तृप्त कराने की एक वैशाली की नगरवधू नुमा चाह है ...इस चाह को सलाम !

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कैसा लगा आलेख? अच्छा या बुरा? मन को प्रफुल्लता मिली या आया क्रोध?
कुछ नया मिला या वही पुराना घिसा पिटा राग? कुछ तो किया होगा महसूस?
जो भी हो, जरा यहाँ टिपिया दीजिए.....