नयी रामकथा की सीता दुविधा में अभी तक अटकी पड़ी है। ब्लागवाणी चालू है लेकिन नए फीड नहीं ले रही है। जिस तरह की बातें सामने आ रही हैं उस से लगता है यदि ब्लागवाणी को वापस लौटना है तो भी कुछ समय तो इंतजार करना ही होगा। जब तक ब्लागवाणी मैदान में थी तब तक कोई किसी दूसरे संकलक को घास न डालता था। अंतर्जाल चालू होने के बाद जब तक ब्लागवाणी खोल कर न देख ले हिन्दी ब्लागर को चैन नहीं पड़ता था। वह थी ही ऐसी ही। हो भी क्यों न? हिन्दी को सैंकड़ों फोंट देने वाले, कम्प्यूटर और अंतर्जाल जगत में हि्न्दी की पैठ के लिए जी-जान से अपना समय, श्रम, कौशल और धन लगाने वाले मैथिलीशरण गुप्त के अद्वितीय योगदान का ही यह नतीजा था। पिछले तीन वर्षों में अंतर्जाल पर हिन्दी में जो काम हुआ है, उस में सर्वाधिक योगदान यदि किसी का है तो वह ब्लागवाणी का है।
केवल एक बार ही मैथिली जी और सिरिल गुप्त से मिलने का सौभाग्य मुझे मिला। उन्हें संपूर्ण रूप से समझ पाने के लिए यह मुलाकात पर्याप्त नहीं थी। लेकिन मैं इतना अवश्य समझ सका था कि केवल और केवल एक-दो या चार व्यक्तियों के आर्थिक योगदान से ब्लागवाणी जैसी निरन्तर विस्तार पाती गैरव्यवासायिक परियोजना को चला पाना संभव नहीं हो सकेगा। यदि उस का विस्तार नहीं होता तो वह भी अपनी सीमाओं में बंध कर रह जाती, और विस्तार हमेशा अधिक श्रम और अधिक पूंजी की मांग करता है। जो वैयक्तिक साधनों से जुटा पाना लगभग असंभव था। ऐसी परिस्थितियों में दो ही मार्ग शेष रह जाते हैं। एक तो यह कि उस का व्यवसायीकरण कर दिया जाए और दूसरा यह की उसे ऐसा संगठन चलाए जिस के सदस्य निरंतर आर्थिक योगदान करते रहें। दूसरे विकल्प की कोई गुंजाइश इसलिए नहीं कि स्थाई संगठन केवल वैचारिक हो सकते हैं। इसलिए केवल एक विकल्प शेष रहता है कि संकलक को व्यवसायिक बनाया जाए और यही शायद मैथिली जी और सिरिल गुप्त को स्वीकार नहीं था। यदि ब्लागवाणी पुनः आरंभ हो सकी तो उसे दीर्घजीवी होने के लिए व्यवसायिक रूप प्राप्त करना ही होगा। ब्लागवाणी सर्वश्रेष्ठ मानी जाती थी तो इस लिए कि वह थी और उस की वजह मैथिली जी का अनुभव और कौशल तथा सिरिल गुप्त का श्रम था। आज भी स्थिति यही है कि यदि इन दोनों के योगदान से ब्लागवाणी पुनः आरंभ होगी तो वह सर्वश्रेष्ठ हिन्दी संकलक होगी।
किसी भी विशाल वृक्ष के अभाव की कल्पना से सभी का हृदय थरथरा उठता है। यदि यह नहीं हुआ तो क्या होगा? जानवर कड़ी धूप में कहाँ आश्रय पाएंगे? गाडियों को फिर धूप में खड़ा करना होगा। कहाँ बुजुर्गों की चौपाल लगेगी? वृक्ष पर पलने वाले पंछी और कीट कहाँ जाएंगे? आदि आदि। जब एक दिन आंधी में वह वृक्ष गिर पड़ता है तो नयी परिस्थितियों का सामना करना ही पड़ता है। तीन दिन पहले एक नीम का पुराना विशाल वृक्ष गिर पड़ा। पहले उस की शाखाओं की छंटाई हुई लोग उन्हें ले भागे। आज उस के तने को काट कर लकड़ी के छोटे-छोटे टुकड़े किए गए जिस से अच्छी खासी इमारती लकड़ी प्राप्त हो गई। एक दो दिनों में उन्हें भी हटा दिया जाएगा। फिर वही विशाल नग्न भूमि प्राप्त हो जाएगी जो इस वृक्ष के लगाए जाने के पहले मौजूद थी। लेकिन अभी से आस पास के लोग विचार करने लगे हैं कि अब इस एक वृक्ष और पिछले वर्ष गिरे वृक्ष से रिक्त हुई भूमि पर कम से कम तीन पेड़ लगाए जा सकते हैं। निश्चित ही लोग वहाँ पेड़ लगा ही देंगे। कुछ वर्ष प्रतीक्षा करनी होगी, जब तक कि ये वृक्ष बड़े हो कर छाँह न देने लगें।
ब्लागवाणी के अभाव को दो सप्ताह तक झेलना बहुत बुरा लगा। न जाने कितनी आत्माएँ उस के अभाव में तड़पती रहीं। साथ ही उन्हों ने पुराने कुछ संकलकों में आश्रय पाना आरंभ किया। पुराने संकलकों के यहाँ जो ब्लाग पंजीकृत नहीं थे वे होने लगे। इस बीच इंडली जैसा संकलक सामने आया। कुछ और कतार में हैं, कुछ निर्माण की अवस्था में भी। इस से यह हुआ कि इन नए संकलकों से भी ब्लागों को पाठक मिलने लगे हैं। ब्लागवाणी के रुकने के बाद के पहले सप्ताह में ब्लागों पर पाठकों की आवक तेजी से गिरी थी। फिर कुछ सुधरने लगी। अब पिछले सप्ताह से पाठकों की आवक में तेजी से वृद्धि हुई है। अब स्थिति यह है कि हिन्दी ब्लागों को पहले से अधिक पाठक मिल रहे हैं। इस में भी ब्लागवाणी का योगदान कम नहीं है। यदि वह इस तरह यकायक दृश्य से गायब न हुई होती तो इन संकलकों तक हिन्दी ब्लाग पहुँचते ही नहीं और वे उन पाठकों से वंचित रहते जो उन के माध्यम से हिन्दी ब्लागों तक पहुँचते हैं। इस नयी और अपेक्षाकृत अच्छी परिस्थिति उत्पन्न करने के लिए ब्लागवाणी निश्चित रूप से श्रेय प्राप्त करने की अधिकारी है। मेरी कामना है कि ब्लागवाणी वापस लौटे एक नए और सुधरे हुए रूप के साथ, सभी हिन्दी ब्लाग संकलकों का सिरमौर बन कर। अंत में इतना ही और कि ..... थैंक्यू ब्लागवाणी !! वैरी, वैरी मच थैंक्यू !!!
अभी सीता जी अजीब दुविधा मे चल रही हैँ
जवाब देंहटाएंलिखते रहिये,प्रस्तुती के लिऐ आपका आभार
सुप्रसिद्ध साहित्यकार व ब्लागर गिरीश पंकज जीका इंटरव्यू पढने के लिऐयहाँ क्लिक करेँ >>>>
एक बार अवश्य पढेँ
कभी ब्लोग्वानी पर पोस्ट छापने की होड़ होती थी !
जवाब देंहटाएंजब से ब्लॉग वाणी बंद है, ना लिखने में मज़ा है ना, जोश
अब तो ये ही प्रार्थना करते है के ब्लोग्वानी जल्द से जल्द
वापस आये...
हमारा भी थैंक यू।
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जवाब देंहटाएंमुझे तो यह बड़ा प्रतीकात्मक लग रहा है ।
रावण ने अपने को पसँद किये जाने पर तमाम समय सीता को दुविधा में डाल रखा था ।
उन्हें मृत्यु का वरण स्वीकार्य रहा, किन्तु रावण नहीं ! क्या कोई मारुतनँदन आगे आयेंगे ?
अभी अभी मै अपनी प्यरी ब्लांग बाणी पर गया लेकिन वहां तो अभी तक सीता की ही दुविधा ही चल रही है, ओर अभी मै सोया भी नही कि कहुं यह एक सपना है, चलिये सपना हुआ तो यह टिपण्णियां सुबह नही होनी चाहिये, क्योकि सपने मै दी टिपण्णी कोई सच्ची थोडे ना होती है?
जवाब देंहटाएंमुझे लगता है परिस्थितियां खुद अपना हल ढूंढ लेगीं !
जवाब देंहटाएंबिना व्यवसायिक नजरिये के कोई भी एग्रीगेटर चलाना आर्थिक आधार पर बहुत मुश्किल है | इस तरह के संकलक को चलाने के लिए उसका स्ववित्त पोषण होना जरुरी है |
जवाब देंहटाएंब्लॉग वाणी ने हिंदी ब्लॉग जगत को आगे बढाने में जो अतुलनीय सहयोग दिया है वह हमेशा याद रखा जायेगा |
इतिहास खुद को दोहराता है, कभी नारद के प्रति चिट्ठाकारों का जो प्रेम था आज वही ब्लॉगवाणी तथा चिट्ठाजगत के प्रति है। नारद के बन्द होने पर भी दुख हुआ था ब्लॉगवाणी के बन्द होने पर भी हो रहा है।
जवाब देंहटाएंमैथिली जी के प्रति शुरु से ही श्रद्धा है, आशा है वे कोई हल अवश्य निकालेंगे।
ब्लागवाणी बंद करना उनका व्यक्तिगत फ़ैसला है।
जवाब देंहटाएंहम तो पुन: प्रारंभ करने के लिए निवेदन कर सकते हैं।
आपकी पोस्ट ब्लाग4वार्ता में
विद्यार्थियों को मस्ती से पढाएं-बचपन बचाएं-बचपन बचाएं
डाक्टर अमर कुमार की टिप्पणियां मुझे हमेशा से पसंद रही हैं ! बेशक आज की भी !
जवाब देंहटाएंब्लोग्वानी का ब्लॉग जगत पर बहुत बड़ा उपकार है. हमारा निवेदन है की इसे दुबारा और भी उत्साह के साथ शुरू करें.
जवाब देंहटाएंआपका व्यवसायीकरण का सुझाव भी अति उत्तम है.
बहुत बढ़िया पोस्ट ब्लाग वाणी की विदाई पर ! ब्लागवाणी को धन्यवाद !
जवाब देंहटाएंये है ब्लोगवाणी के राह के रोड़े , इन हरामी की औलादों की वजह से ही..........................
जवाब देंहटाएंMohammed Umar Kairanvi said...
मैं चुल्लू भर पानी की जगह आज ब्लागवाणी को लौटा भेज रहा था, लेकिन आपकी पोस्ट तो HOT में ले आयी, फिर सही, लौटा तैयार रखना पडेगा, इसका चुल्लू भर पानी में काम नहीं चलेगा
June 17, 2010 1:42 पम
आतिर कड़वा said...
ब्लोगवाणी , तू है बेईमानो की नानी , लगा ले तेल पी ले पानी .
मुस्लिम दुश्मन पोस्ट को रखे दोस्त और सच के साथ करे तू कारस्तानी .
June 17, 2010 11:17 ऍम
सहसपुरिया said...
Blogvani = Sanghvani
June 17, 2010 12:42 पम
Mohammed Umar Kairanvi said...
blogvani behaviour 46 पाठक, +8पसंद 19 कमेंटस फिर भी हाट(x) , डूब मर ब्लागवाणी लौटा भर पानी ने मिले तो बता, तुझे भेजा जाये
मैथिली जी और सिरिल जी का योगदान वास्तव में अतुलनीय है! ब्लागवाणी को धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंबेहतरीन पोस्ट थी। वृक्ष का रूपक जोरदार लगा।
जवाब देंहटाएंब्लागवाणी का सफर रुकेगा नहीं।
ब्लॉगवाणी से लौट आने का एक विनम्र निवेदन मैंने भी > अपनी एक पोस्ट पर किया है।
जवाब देंहटाएंघुघूती बासूती
जानकारी के लिए बहुत बहुत धन्यवाद
जवाब देंहटाएंब्लोग्वाणी का योगदान भुलाया नहीं जा सकता ।
मेरा भी साधुवाद.
जवाब देंहटाएंहम इंतज़ार करगें तेरा क़यामत तक.. खुदा करे की कयामत हो और तु आये...
जवाब देंहटाएं..... थैंक्यू ब्लागवाणी !! वैरी, वैरी मच थैंक्यू !!!
जवाब देंहटाएंएक संकलक का कार्य महत्वपूर्ण है ब्लॉग के विकास के लिये ।
जवाब देंहटाएंवाकई ब्लोग्वानी का बहुत बहुत शुक्रिया.
जवाब देंहटाएंब्लागवाणी की कमी तो वाकई बहुत खल रही है...
जवाब देंहटाएंvery true ! It has to go commercial now !
जवाब देंहटाएंसहमति असहमति चाहे जो हो, ब्लॉगवाणी का योगदान नमनीय है, प्रशंसनीय है।
जवाब देंहटाएंमुझे भी ब्लोगवाणी का बेसब्री से इंतज़ार है...
जवाब देंहटाएं5 जून से ही ब्लॉग जगत से कटा हुआ हूँ। आपकी पोस्ट पढने के बाद भी कुछ भी समझ-सूझ नहीं पड रहा।
जवाब देंहटाएंमैथिलीजी उन लोगों में प्रमुख हैं जिन्होंने मुझे मेरे पहले ही कदम से संरक्षण और सहयोग दिया है। उनसे बात करने पर ही कुछ समझ सकूँगा।