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शनिवार, 5 दिसंबर 2009

सौंदर्य और सार -शिवराम के कुछ दोहे

पिछले दो दिनों से आप अनवरत पर शिवराम की कविताएँ पढ़ रहे हैं। नवम्बर में जब मैं यात्रा पर था तो उन की तीन पुस्तकों का लोकार्पण हुआ। यात्रा से लौटते ही उन की तीनों पुस्तकें मिलीं, उन्हें पढ़ रहा हूँ। शिवराम का बहुत कुछ साथ रह कर सुना पढ़ा है। पर जब वह सब कुछ पुस्तक रूप में सुगठित हो कर आया है तो अहसास हो रहा है कि वे कितने बड़े कवि हैं। वास्तव में पुस्तकबद्ध साहित्य अपनी कुछ और ही छाप छोड़ता है। तीन पुस्तकों में एक "खुद साधो पतवार" उन के दोहों की पुस्तक है। दोहों में एक विशेषता है कि वे संक्षिप्त और स्वतंत्र होते हैं। सारा सौंदर्य और सार चंद शब्दों में व्यक्त होता है। उन के अर्थ के अनेक आयाम होते हैं। यहाँ उन के कुछ दोहे प्रस्तुत कर रहा हूँ जो साहित्य के सब से प्राचीन विवाद 'तत्व और रूप' या 'सौन्दर्य और सार' पर अपनी बात कह रहे हैं।  

सौंदर्य और सार
  • शिवराम

दृष्टि जो अटके रूप में, सार तलक नहिं जाय।
सुंदरता के सत्य को, समझ वो कैसे पाय।।


मन, दृष्टि और वस्तु का, द्वंद जो ले आकार।
तब कोई रूप अनूप बन, होता है साकार।।


रूप अनोखा है मगर, सारहीन है सार।
ऐसी थोथी चारुता, आखिर को निस्सार।।


सुंदरता मन में बसे, बसे दृष्टि के माँहि।
असली सुंदर वो छवि, जाकी छवि मन माँहि।।


सुंदरता के मर्म की, क्या बतलाएँ बात।
किसी को दिन सुंदर लगे, किसी को लगती रात।।

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13 टिप्‍पणियां:

  1. सरकार !
    काव्य-प्रेमी हूँ , दोहा देख के दौड़ा आया .
    कहीं-कहीं भाव सुन्दर लग रहे हैं ...
    पर , निराश हुवा दोहे की रवानगी में बाधा
    देख कर , जैसे यहाँ ---
    ............ '' असली सुंदर वह छवि, जिस की छवि मन माँहि।। ''
    यहाँ दोहे की मात्रा व्यवस्था शिथिल हो गयी है ...
    ऐसा न होता तो सोने में सुहागा हो जाता ...
    .... माफ़ कीजियेगा उम्मीद के साथ आया था इसलिए ... ...

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  2. सुंदरता के मर्म की, क्या बतलाएँ बात।
    किसी को दिन सुंदर लगे, किसी को लगती रात।।
    बहुत सुंदर भाव,बहुत सुंदर रचना, आप का ओर शिवराम जी का धन्यवाद

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  3. बढ़िया दोहे।
    अमरेन्द्रनाथ की बात भी सही है।
    बात शायद यूं बने-
    असली सुंदर वह छवि, जो अपने मन मांहिं

    समग्रता में, आपकी और शिवरामजी की रचनात्मकता का सम्मान है और यह सब महत्वपूर्ण नहीं है। शिवरामजी से लगातार कविताई का आग्रह करते रहिए। आपसे ये हमारा आग्रह है।

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  4. सुन्दरता पर एक सुन्दर रचना !

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  5. @ अमरेन्द्र नाथ त्रिपाठी,अजित वडनेरकर
    कल त्रिपाठी जी की टिप्पणी उक्त पोस्ट के प्रकाशन के उपरांत कुछ ही मिनटों में प्राप्त हो गई थी। खुद शिवराम ने दोहों की इस पुस्तक के आमुख में कहा है कि '..... मेरी चित्तवृत्ति में लोक काव्य के ये बीज भी स्फुरित होते रहे। ये दोहे इसी चित्तवृत्ति का परिणाम हैं। छंद का न तो मैं ने विधिवत ज्ञान अर्जित किया, न मेरा पर्याप्त अभ्यास है. इन दोहों में अनेक काव्य दोष हो सकते हैं। जैसे भी हैं प्रस्तुत हैं।'
    रात देर हो चुकी थी। शिवराम जल्दी सोने के आदी, उन से सुबह संपर्क हो सका। उन्हों ने उक्त दोहे को संशोधित किया। अब संशोधित दोहा मूल के स्थान पर प्रतिस्थापित कर दिया है। शिवराम चाहते हैं कि इस पर भी सुधि पाठक अपनी राय अवश्य दें।

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  6. बहुत सुन्दर दोहे, मन हर्षित हो गया पढ़कर ।

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  7. एक महीने में तीन पुस्तकें! शिवराम जी पुस्तकें यूं लिखते हैं जैसे हम ठेलते हैं पोस्टें?!

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  8. भाव-सम्पदा की तारीफ तो मैं कर ही चूका हूँ ..
    प्रयास के उपरांत शिल्पगत गढ़ाव भी आ गया है ..
    .............. कविवर को आभार ....................

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  9. जीवन को जीती कवितायेँ......बहुत सुन्दर
    बहुत बहुत बधाई शिवराम जी को.

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  10. 'सुंदरता के मर्म की, क्या बतलाएँ बात।
    किसी को दिन सुंदर लगे, किसी को लगती रात।।'

    यह सामान्य होते भी अच्छा लगा।

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