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गुरुवार, 22 अक्टूबर 2009

डेज़ी तुम्हें आखिरी सलाम! तुम बहुत, बहुत याद आओगी!


पिछली जनवरी में मेरा भिलाई जाना हुआ था। दो रात और तीन दिन पाबला जी के घर रहना हुआ। वहीं उन की पालतू डेज़ी से भेंट हुई। वह उन के परिवार की अभिन्न सदस्या थी। दीवाली पर पटाखों से उत्पन्न धूंएँ और ध्वनि के प्रदूषण ने उसे बुरी तरह प्रभावित किया और वह बीमार हो गई। इतनी बीमार कि चिकित्सा की भरपूर सहायता भी उसे जीवन दान न दे सकी। आज दोपहर डेजी नहीं रही। उन तीन दिनों के प्रवास में डे़ज़ी ने जिस अपनत्व का व्यवहार मुझे दिया मैं उसे जीवन भर नहीं भुला सकता हूँ। मेरी भिलाई यात्रा के विवरण में डेज़ी का उल्लेख अनायास ही हुआ था। जिस के अंत में मैं ने लिखा था ....'कभी मैं दुबारा वहाँ आया तो वह तुरंत शिकायत करेगी कि बहुत दिनों में आ रहे हो'।
 लेकिन शिकायत करने वाली डेज़ी आज नहीं रही। जब से उस के प्राणत्याग की सूचना मिली है मैं उसे नहीं भुला पा रहा हूँ तो पाबला जी और उन के परिजनों की क्या स्थिति होगी? जिन के बीच वह चौबीसों घंटे रहती थी। मेरे बेटे वैभव ने शाम पाबला जी के पुत्र गुरुप्रीत से  फोन पर बात करनी चाही, लेकिन गुरुप्रीत बात नहीं कर सका उस का स्वर रुआँसा हो उठा।

अपनी भिलाई यात्रा के विवरण में से डेज़ी से सम्बंधित अंश यहाँ उस के प्रति श्रद्धांजलि स्वरूप प्रस्तुत कर रहा हूँ ......

पाबला जी की वैन से हम उन के घर के लिए रवाना हुए वेबताते जा रहे थे, यहाँ दुर्ग समाप्त हुआ और भिलाई प्रारंभ हो गया। यहाँ यह है, वहाँ वह है।  मेरे लिए सब कुछ पहली बार था, मेरे पल्ले कुछ नहीं पड़ रहा था।  मेरी आँखे तलाश रही थीं, उस मकान को जिस की बाउण्ड्रीवाल पर केसरिया फूलों की लताएँ झूल रही हों।  एक मोड़ पर मुड़ते ही वैसा घर नजर आया।  बेसाख्ता मेरे मुहँ से निकला 'पहुँच गए'।  पाबला जी पूछने लगे कैसे पता लगा पहुँच गए? मैं ने बताया केसरिया फूलों से। वैन खड़ी हुई, हम उतरे और अपना सामान उठाने को लपके।  इस के पहले मोनू (गुरूप्रीत सिंह) और वैभव ने उठा लिया। हमने भी एक-एक बैग उठाए।  पाबला जी ने हमें दरवाजे पर ही रोक दिया।  अन्दर जा कर अपनी ड़ॉगी को काबू किया। उन का इशारा पा कर वह शांत हो कर हमें देखने लगी।  उस का मन तो कर रहा था कि सब से पहले वही हम से पहचान कर ले।  उस ने एक बार मुड़ कर पाबला  की और शिकायत भरे लहजे में कुछ कुछ अभिनय किया। जैसे कह रही हो कि मुझे नहीं ले गए ना, स्टेशन मेहमान को लिवाने।  डॉगी बहुत ही प्यारी थी, पाबला जी ने बताया डेज़ी नाम है उस का।

.................आँख खुली तो डेज़ी चुपचाप मेरी गंध ले रही थी।  मन तो कर रहा था उसे सहला दूँ।  पर सोच कर कि यह चढ़ बैठेगी, चुप रहा। तभी पाबला जी ने कमरे में प्रवेश किया।  उन्हें देख कर वह तुरंत कमरे से निकल गई।  पाबला जी ने पूछा, परेशान तो नहीं किया?  -नहीं केवल पहचान कर रही थी।



......... तीसरे दिन सुबह गुरप्रीत ने सोने जाने के पहले कॉफी पिलाई।  नींद पूरी न हो पाने के कारण मैं फिर चादर ओढ़ कर सो लिया।  दुबारा उठा तो डेज़ी चुपचाप मुझे तंग किए बिना मेरे पैरों को सहला रही थी।  मुझे उठता देख तुरंत दूर हट कर बैठ गई और मुझे देखने लगी।  हमारे  पास भैंस के अतिरिक्त कभी कोई भी पालतू नहीं रहा।  उन की मुझे आदत भी नहीं।  पास आने पर और स्वैच्छापूर्वक छूने पर अजीब सा लगता है।  डेज़ी को मेरे भरपूर स्नेह के बावजूद लगा होगा कि मैं शायद उस का छूना पसंद नहीं करता इस लिए वह पहले दिन के अलावा मुझ से कुछ दूरी बनाए रखती थी।  उस दिन मुझे वह उदास भी दिखाई दी।  जैसे ही पाबला जी ने कमरे में प्रवेश किया वह बाहर चल दी।  लेकिन उस के बाद मैं ने महसूस किया कि वह मेरा पीछा कर रही है। मैं जहाँ भी जाता हूँ मेरे पीछे जाती है और मुझे देखती रहती है।  मैं उसे देखता हूँ तो वह भी मुझे उदास निगाहों से देखती है।  मुझे लगा कि मेरे हाव भाव से उसे महसूस हो गया है कि मैं जाने वाला हूँ।  उस का यह व्यवहार सिर्फ मेरे प्रति था, वैभव के प्रति नहीं। शायद उसे यह भी अहसास था कि वैभव नहीं जा रहा है, केवल मैं ही जा रहा हूँ।


हमें दो बजे तक दुर्ग बार ऐसोसिएशन पहुँचना था।  मैं धीरे-धीरे तैयार हो रहा था।  पाबला जी की बिटिया के कॉलेज जाने के पहले उस से बातें कीं।  फिर कुछ देर बैठ कर पाबला जी के माँ-पिताजी के साथ बात की।  हर जगह डेज़ी मेरे साथ थी।  मैं ने पाबला जी को बताया कि डेज़ी अजीब व्यवहार कर रही है, शायद वह भाँप गई है कि मैं आज जाने वाला हूँ।  ........

मैं सवा बजे पाबला जी के घर से निकलने को तैयार था।  मैं ने अपना सभी सामान चैक किया।  कुल मिला कर एक सूटकेस और एक एयर बैग साथ था। मैं ने पैर छूकर स्नेहमयी माँ और पिता जी से विदा ली।  मैं नहीं जानता था कि उन से दुबारा कब मिल सकूँगा? या कभी नहीं मिलूँगा।  लेकिन यह जरूर था कि मैं उन्हें शायद जीवन भर विस्मृत न कर सकूँ।

मैं सामान ले कर  दालान में आया तो देखा वे मुझे छोड़ने दरवाजे तक आ रहे हैं और डेजी उन के आगे है।  मैं डेजी को देख रुक गया तो वह दो पैरों पर खड़ी हो गई  बिलकुल मौन।  मैं ने उसे कहा बेटे रहने दो। तो वापस चार पैरों पर आ गई।  गुरप्रीत पहले ही बाहर वैन के पास खड़ा था। उस ने मेरा सामान वैन के पीछे रख दिया।  मैं पाबला जी और वैभव हम वैन में बैठे सब से विदाई ली।  डेजी चुप चाप वैन के चक्कर लगा रही थी। शायद अवसर देख रही थी कि पाबला जी का इशारा हो और वह भी वैन में बैठ जाए।  पाबला जी ने उसे अंदर जाने को कहा। वह घर के अंदर हो गई और वहाँ से निहारने लगी।  हमारी वैन दुर्ग की ओर चल दी।  मैं ने डेजी जैसी पालतू अपने जीवन में पहली बार देखी जो दो दिन रुके मेहमान के प्रति इतना अनुराग कर बैठी थी।  मैं जानता था कि कभी मैं दुबारा वहाँ आया तो वह तुरंत शिकायत करेगी कि बहुत दिनों में आ रहे हो।

इस पोस्ट का मकसद डेज़ी को स्मरण करना तो है ही साथ ही यह भी कि शायद हम अपने त्योहारों या अन्य किसी प्रकार की मौज-मस्ती के बीच उन्हें पहुँचाने वाले जानलेवा कष्टों को पहचान सकें और व्यवहार में कुछ सहिष्णु हो सकें। 

डेज़ी तुम्हें आखिरी सलाम! 
तुम बहुत, बहुत याद आओगी!

17 टिप्‍पणियां:

  1. द्विवेदी जी आँखे भर आयी ये पढ़कर और ताज्जुब भी हुआ कि इतने समझदार जानवर और इतना स्नेह भरा प्यार , लेकिन तकलीफ यह है कि अब वह नहीं है
    डेज़ी तुम्हें आखिरी सलाम!
    तुम बहुत, बहुत याद आओगी!
    सच कहा आपने

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  2. द्विवेदी जी मुझे भी आज दिन में ही पता चला....स्तब्ध हो गया क्योंकि अभी कुछ ही दिन तो हुए थे पाबला जी ने उसके बारे में मुझे विस्तार से सब कुछ बताया था। ज्यादा बात नहीं कर पाये आज वे...और मैं भी नहीं कर पाया दोबारा। इस दर्द से गुजर चुका हूं मैं खुद भी ..इसलिये महसूस कर सकता हूं। उसकी कमी पाबला जी के परिवार को बहुत खलेगी इतना जानता हूं। क्या कहूं इससे ज्यादा ..दुख हुआ

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  3. आपका संस्मरण बहुत भावुक कर गया. मेरे पास हमेशा से पेट रहे हैं. पहले डॉर्जी, जरम शैपर्ड, फिर चिड़िया-एना..दोनों नहीं रहे..अब बोलू, मोलू, खुशाल हैं चिड़ियों में...

    डॉर्जी और एना का जाना-मानो परिवार में एक वैक्यूम क्रियेट कर गया.

    पाबला परिवार का दुख जानता हूँ. मेरी साहनुभूति उनके साथ है.

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  4. इंसानों से जानवर ज्यादा संवेदनशील होते हैं. हमारा खुद का अनुभव भी रहा है. १२ साल साथ में रहने के बाद उस से बिछड़ना अत्यधिक दुखदायी है. हम अपने परिवार के सदस्यों से भी अधिक उसे चाहने लगते हैं क्यों की वह जितना हमसे प्यार करता है उसकी कोई तुलना नहीं हो सकती. आप तो केवल आगंतुक थे फिर भी उसने आपको कितना स्नेह दिया. आपकी requiem बड़ी अच्छी लगी.

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  5. ओह ! पाबला जी और उनके परिवार की स्थिति मैं समझ सकता हूँ -एक डेजी हमारे साथ भी है !

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  6. बहुत ही सँवेदनशील वृताँत !
    मेरे पास भी इस समय एक कॉकर स्पेनियल है,
    नाम है ’ छोटी ! ’ दो वर्ष की है किन्तु पूरे घर पर एक सास की तरह शासन कर रही है ।
    आज की पोस्ट पढ़ कर पिछले पालतू ज़ानवरों की अवसान कथायें स्मरण हो आयी हैं !

    इसीलिये आज आप छेड़े जाने से बच गये, पँडिज्जी !

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  7. अरे... डेजी का पढ कर मन बहुत उदास हो गया, मेरे पास भी हेरी है, अभी तो सात साल का हुआ है सब को बहुत प्यारा लगता है, हम ने इसे कभी कुत्ता नही समझा, अपना बच्चा ही समझा है, हरकते बिलकुल डेजी जेसी ही करता है, पाबला जी ओर उन का परिवार कितना उदास होगा....बहुत खाली पन लगेगा.... हम अपने हेरी कॊ नये साल पर घर मै बन्द रखते है, एक बार इस ने जलता हुआ बम्ब मुंह मै रख लिया था.... लेकिन कुछ पल पहले ही इस ने उसे छोड दिया, बस तभी से इसे नये साल पर अंदर बन्द करते है.
    डेजी तुम ने सच मै बहुत उदास कर दिया... पाबला जी के संग मेरी सहानुभूति है...

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  8. दीवाली के दूसरे दिन मैने ब्लॉग " एक सवाल तुम करो " पर यह सवाल किया था आप पटाखे चलाने वालों को मना क्यो नही करते ? आप मूक जानवरों से पूछेंगे तो नही पर वे आप्को ज़रूर बतलायेंगे कि उन्हे क्या तकलीफ होती है पटाखों से । देखिये डेज़ी ने अपने प्राण देकर यह बता दिया ना ?अब किसे इस बात के लिये दोष दिया जाय ? आज शाम पाबला जी से बात हुई ।अस्पताल में भरती माताजी के पास वे बैठे थे उनका दुख उनकी तरह कोई कैसे जानेगा डेज़ी तो उनके परिवार की एक सदस्य थी । फिर मैने द्विवेदी जी से बात की । हम मनुष्य हैं पशुओं की हत्या करना अपनी शान समझते है यह तो परोक्ष है हम तो प्रत्यक्ष हत्याएँ करते है इसके लिये हमे कौन माफ करेगा ?

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  9. एकदम से भावुक कर देनेवाली पोस्‍ट .. जब दो तीन दिनों की भेंट के बाद उसके नहीं रहने की सूचना से आलेख में आपका दर्द यूं उभरकर आ गया है .. तो सचमुच पाबलाजी के परिवार का क्‍या हाल होगा .. समझ सकती हूं !!

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  10. बहुत दुख हुया हमारी संवेदनायें आपके और पावला जी के साथ हैं। पालतू जामवर तो अपने बच्चों के समान ही होते हैं। किसी की दिवालि उस बेचारी की मौत बन गयी। हम तब भी नहीं समझते। अभार्

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  11. पालतू जानवर तो बच्चे के समान होता है। उसके कारण तो हम अपनी कुछ असुविधाओं को भी नज़र अंदाज़ कर देते हैं। डेज़ी के जाने से पाबलाजी के घर में जिस शोक का वातावरण होगा, उसे महसूस किया जा सकता है, शब्दों में नहीं बाधा जा सकता। ईश्वर डेज़ी की आत्मा को शांति प्रदान करें और पाबला परिवार को धैर्य।

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  12. जब मुझे इस बारें मैं पता पड़ा तो मेरी आखें भी नम हो गयी | डेसी के बारें मैं जितना कहा जाये वो कम हैं |जब मैं पाबला अंकलजी के यहाँ ट्रेनिंग के लिए गया था तब मुझे उससे काफी डर लगा पर ३-४ दिन मैं ही उसने मुझे एक अच्छे दोस्त का अनुभव करा दिया | उसे भूल पाना मेरे लिए ही नहीं बल्कि उससे जुड़े हुए हर इन्सान के लिए नामुमकिन हैं |

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  13. डैज़ी के जाने का पढ़कर बहुत दुख हुआ। पाबला जी व उनके परिवार के साथ मेरी शोक संवेदनाएँ।
    घुघूती बासूती

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  14. :-(
    i am sad to read this ..........
    पाबला जी और आप के घर परिवार के सभी उतने ही दुखी होंगें के जितना प्यारी डेजी के बारे में
    पढ़कर हम सभी को जितना दुःख हुआ है -- ईश्वर उसे अपनी रोशनी में बुला लें --
    विनीत,
    - लावण्या

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  15. आप सभी की संवेदनाओं, सहानूभूति, प्रार्थना, सांत्वना से हमारे परिवार को एक अनहोनी से उबरने हेतु संबल मिला।
    आभार आप सभी का।

    बी एस पाबला

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