दीवाली के पहले का सप्ताह आरंभ हो गया है। या तो लोग अपने-अपने घरों की सफाई कर चुके हैं या फिर यह काम जोरों पर है। आखिर दीवाली के पहले सब को अपने-अपने घर चमकाने हैं। देवी लक्ष्मी का स्वागत जो करना है। हमारे घर में यह वार्षिक स्वच्छता अभियान कोई बीस दिन पहले ही आरंभ हो चुका था। श्राद्ध समाप्त हुए, नवरात्र के पहले दिन से ही सफाई का काम आरंभ हो गया। पहले सोने के कमरे को जाँचा गया, पाया कि रंगरोगन अभी ठीक है, वर्ष भर चलेगा, केवल सफाई से काम चल सकता है। उस की सफाई की गई। उस के बाद हमारे बाहर की बैठक की बारी थी। कहने को यह बैठक जरूर है। पर हमारे वकालत के दफ्तर का दरवाजा सुबह छह बजे मुख्य दरवाजे के पहले खुलता है तो रात ग्यारह के बाद मुख्य द्वार पर ताला पड़ने के बाद ही वह बंद होता है। नतीजा ये कि हमारे घर सभी का पहला प्रवेश दफ्तर से होता है। बैठक साफ की गई। इस में वक्त लगा। यहीँ हमारी गैर-वकालती किताबें हैं। सब की सफाई कर वापस जमाया गया। इस तरह दशहरा आ गया।
अब दफ्तर की बारी थी। उस के लिए गांधी जयन्ती नियत है। वह दीवाली के पहले मुकम्मल अवकाश का दिन होता है। उस दिन उस से निपटा गया। इस के बाद बचा सिर्फ बीच का हॉल, रसोई और बाहर का पोर्च बनाम बरामदा। रसोई और बरामदा रंगाई मांग रहे थे। उस के लिए एक भवन निर्माता मुवक्किल से पुताई वाले को भेजने को कहा था। लेकिन सब पुताई वाले अपनी सालाना कमाई में लगे थे, जिस से वे अपने कर्जे चुका कर दीवाली मनाएँगे। कोई खाली न मिला। एक दिन पान की दुकान पर फिटर बाबूलाल नजर न आया तो मैं ने पान वाले बाबूलाल जी से पूछा कि आज बाबूलाल नहीं दिखा। इतने में बाबूलाल आ गया। कहने लगा दुकान के पड़ौस के मकान की पुताई कर रहा हूँ। 1500 रुपए में मजदूरी तय हुई है। मैं ने तुरंत उसे पकड़ा। भाई मेरे मकान में भी कुछ पुताई है, कर दोगे? उस ने हाँ कर दी।
पान वाला और फिटर, दोनों बाबूलाल
बाबूलाल दोहरे व्यक्तित्व वाला व्यक्ति है। अधिक पढ़ा लिखा नहीं है। अपनी धुन में मस्त रहता है। सुबह नौ बजे बाबूलाल पान वाले की दुकान पर आ जाता है। जिसे भी उस से काम कराना होता है उसे वहीं से पकड़ता है और काम करवा कर वहीं छोड़ देता है। काम में कोई नुक्स नहीं। मुस्कुरा कर बात करता है। उस से बात करो तो बहुत ज्ञान की बातें करेगा। वह ज्ञान की बातें ही नहीं करता, उन पर अमल भी करता है। पर उस के कुछ परिजनों के लगातार सताने से उस के अंदर एक और व्यक्तित्व विकसित हो गया है, जो दुनिया की सभी बुरी चीजों से घृणा करता है। वह उन्हें समाप्त तो नहीं कर सकता, लेकिन उन्हें बुरा कह सकता है, उन के साथ गाली गलौच कर सकता है, उन्हें शाप दे सकता है। बस कुछ फुरसत हुई, उसे अपने साथ हुए बुरे बर्ताव का स्मरण हुआ, और उस की त्योरियाँ चढ़ जाती हैं, वह पान की दुकान के सामने फुटपाथ पर इधर से उधर तेजी से चक्कर लगाने लगता है। साथ ही कुछ शाप बड़बड़ाने लगता है। फिर ऊंचे फुटपाथ पर सड़क की ओर मुहँ कर के खड़ा हो जाता है। उसे वे सब बुरे लोग सामने दिखाई देने लगते हैं। वह उन्हें खूब दुत्कारता है, शाप देता है। कभी कभी इसी हालत में मैं पहुँच जाता हूँ। जोर से उसे बुलाता हूँ -बाबूलाल ! राम! राम! उस का दूसरा व्यक्तित्व तुरंत गायब हो जाता है और वह हमारा प्यारा बाबूलाल बन जाता है। मैं और पानवाले बाबूलाल जी चाहते हैं कि उस में से प्रतिशोधी व्यक्तित्व समाप्त हो जाए और वह हमारा प्यारा सा बाबूलाल बन कर रहे। लेकिन राजस्थान में कहावत है 'रांड रंडापा तो काट ले, पर रंडवे काटने दें तब ना!' उसे भी लोग मजा लेने के लिए छेड़ते हैं और उस का दूसरा व्यक्तित्व उभर आता है।
खैर! हमने सफेदी का सामान खरीदा और बाबूलाल को पान की दुकान से पकड़ लाए। उस ने परसों बरांडे की छत और हमारी रसोई पर सफेदी की और कल बरांडे की दीवारों पर रंग किया। उस से भोजन के लिए पूछा तो उस ने मना कर दिया कि वह सुबह आठ बजे भोजन कर के ही घर से निकलता है। चाय वह दिन में चार बार पी लेता है। उसे दिन भर यह खुराक समय-समय पर बिना कहे मिल गई। उस ने अपनी मजदूरी पहले नहीं बताई थी। आधा काम करने के बाद उस ने पाँच सौ रुपया बताया, वह उसे दे दिया गया। जाते वक्त बाबूलाल खुश था। इन दो दिनों में उस के दूसरे व्यक्तित्व के एक बार भी दर्शन न हुए।
हमारे घर पर सफेदी होते देख एक पड़ौसन भी पूछने आईँ। हमने बाबूलाल को काम देख आने को कहा। वह देख भी आया। उस ने उन्हें भी वाजिब मजदूरी बताई, लेकिन सौदा तय नहीं हुआ। हमने भी उस में अधिक रुचि नहीं ली। हमारी रुचि अपने घर की सफाई में थी, पड़ौसी के घर की सफाई में नहीं। हमें पता भी नहीं कि उन के घर में कितनी गंदगी है? जिस की सफाई की जरूरत है और पता हो भी तो हम क्या करें? आखिर उन के घर की चिंता उन्हें करनी चाहिए। वे अपने घऱ को जैसा रखना चाहेँ रखें। हाँ उन के घर की गंदगी हमारे घर में आए, या हमें प्रभावित करने लगे, या वे हमारे घर की सफाई में जबरन रुचि लेने लगें, या वे हमारे घर के नुक्स निकालने लगें तो हम जरूर आपत्ति करेंगे। वे खुद अपने घर की सफाई में जुटें और मदद मांगें तो हमें कोई आपत्ति नहीं होगी। इस से उन के और हमारे बीच भाईचारा बना रहेगा। हम सोचते हैं कि चिट्ठा-जगत में भी यही हो तो यहाँ भी भाईचारा बना रहे। हाँ घरों के बाहर मुहल्ले की बात करें तो सब मिल कर बैठ लें, और बात करें कि मोहल्ले में स्वच्छता बनाए रखने के लिए क्या करें?
बाबूलाल का व्यक्ति -परिचय तो प्रभावित कर गया !
जवाब देंहटाएंउसे बस आप या आप जैसों के काम में सहजता होगी
बाकी तो दुनिया कैसी है आप खुद जाने हो दिनेश जी !
हमने प्रण किया है कि जहाँ स्वच्छता की बात होगी वहाँ अवश्य पहुचूँगा। सो यहाँ आ गया लेकिन यह सादगी भरी 'स्वच्छता' नहीं जमी। कम से कम हिन्दी ब्लॉगिंग में तो 'स्वच्छ' होना अनंत मायने रखता है।
जवाब देंहटाएंसोच रहा हूँ कि हिन्दी ब्लॉग जगत से स्वच्छता कैसे दूर हो पाएगी। आभासी मोहल्ले में झाड़ू कैसे लगाई जाय कि अस्वच्छता का प्रसार हो सके।
द्विवेदी सर,
जवाब देंहटाएंजिस एंग्री यंगमैन की मैं शिद्दत के साथ तलाश कर रहा था वो तो आपके बाबूलाल में निकला...
जय हिंद...
बाबू लाल जैसी आदत सब मे थोडी बहुत होती है मगर आप जैसे विनम्र व्यवहार से उसे सुधारा जा सकता है जैसे बाबू लाल बदल जाता था । सच मे ब्लाग जगत के हर घर और मोहल्ले की सफाई की जरूरत है। आज आपके साभार श्री नेह जी की कविता पोस्ट कर दी है धन्यवाद्
जवाब देंहटाएंue wala swachata abhiyaan badhiya raha.
जवाब देंहटाएंयही नैतिक ज़िम्मेदारी है पहले खुद को स्वच्छ रखो फिर देखो सारी दुनिया सुंदर लगेगी..क्योंकि ऐसा तब सब करेंगे और दुनिया हम सब से ही तो बनी है....बढ़िया बात...धन्यवाद
जवाब देंहटाएंक्या बेहतरीन सबक है । यह दीपावली शुभ होगी घर-बाहर दोनों के लिए ।
जवाब देंहटाएंबाबूलाल ने सोचा भी नहीं होगा कि वो रातो रात ब्लोगीवुड का स्टार बन जायेगा.. यही है ब्लोगिंग की ताकत..
जवाब देंहटाएंबाकी हमने भी कल सफाई कर ही डाली..
विषयांतर से बहुत अच्छा संदेश दिया है आपने। देखते हैं लोग कितना आत्मसात कर पाते हैं।
जवाब देंहटाएंप्रायः हर मुहल्ले में एक न एक बाबूलाल मिल जाता है किन्तु उसे भड़काने और उकसाने वाले सैकड़ों लोग मिलते हैं, समझने वाला कोई कोई ही।
जवाब देंहटाएंयह आप का बाबू लाल तो मेरा ही दुसरा रुप है, यानि मै ही हुं, बहुत अच्छा लगा आप का लेख, मेरा सलाम देना इस बाबूलाल जी को
जवाब देंहटाएंराम राम
बाबूलाल से तो मिले लिए... एक वर्ग का प्रतिनिधि लगता है अपने आप में बाबूलाल. सफाई की बात तो ठीक है लेकिन मिल बैठ कर करने वाली बात यहाँ (ब्लॉग) तो नहीं चलने वाली. बाकी आज तो हमारे घर भी सफाई हो ही गयी. आज ही नयी बाई रिक्रूट हुई है और पहले दिन बड़ा इम्प्रेसिव काम किया है !
जवाब देंहटाएंदीपावली शुभ हो !!
जवाब देंहटाएंसफाई आयोजन
बहुत प्रभावशाली रहा दीनेश भाई जी
बाबूलाल ने अपना काम बखूबी किया -
क्या ही अच्छा हो
अगर हर कोइ
इस "स्वच्छता सन्देश " को अपनाएँ
दुहरे व्यक्तित्त्व को यहां -
Bi polar disorder
कहते हैं -
बहुत स्नेह, के साथ
- लावण्या
हम तो हमारे बाबूलाल को कबसे ढूंढ रहे है अभी मिला तो कहने लगा " साहब अभी टेम नही है दिवाली के बाद देखेंगे ..हमने भी विचार विमर्श किया ..ठीक है अभी तो नया है चल जायेगा । खैर दिवाली की चकाचक बधाई आप सभी को ।
जवाब देंहटाएंबाबूलाल के जरिए कई गंभीर इशारे कर गए हैं आप...
जवाब देंहटाएंआप की अदा लाजवाब है...
ये बाबूलाल ही था ना!?
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर आलेख। स्वच्छ हिन्दुस्तान बनाना है!
जवाब देंहटाएंवाह फोटो भी है...बिलकुल ज्ञानदत्तजी स्टायल
जवाब देंहटाएंबढि़या पोस्ट है