घणो बवाल मचायो! अश्यी काँईं ख्ह दी। य्हा ई तो बोल्यो थरूर के कैटल क्लास म्हँ जातरा कर ल्यूंगो। अब थें ई सोचो; ब्हापड़ा नें घणी घणी म्हेनत करी। पैदा होबा के फ्हेली ई हिन्दुस्तान आज़ाद होग्यो जी सूँ बिदेस म्हँ पैदा होणी पड्यो। फेर बम्बई कलकत्ता म्हँ पढणी पड़्यो। इत्य्हास मँ डिगरी पास करी व्हा बी अंग्रेजी म्हँ प्हडर। फेर अमरीका ज्यार एम्में अर पीएचडयाँ करणी पड़ी। नरी सारी कित्याबाँ मांडी। जद ज्यार ज्यूएन म्हँ सर्णार्थ्याँ का हाई कमीस्नर बण्यो। फेर परमोसन लेताँ लेताँ कणा काँई सूँ कणा काँईं बण बैठ्यो। फेर बडी मुसकिल सूँ जुगाड़ भड़ायो अर ज्यू एन का सेकरेटरी जर्नल को चुणाव ज्या लड्यो। ऊँम्हँ भी हारबा को अंदसो होयो तो नाम ई पाछो जा ल्यो।
अब यो अतनो ऊँचो कश्याँ बण्यो? थाँ ईँ याद होव तो बताओ! न्हँ तो म्हूँ बताऊँ छूँ। अतनो बडो आदमी अश्याँ ई थोड़ी बण ज्याव छे। घणा पापड़ बेलणी पड़ छे, ज्यूएन म्हँ घुसबा कारणे। जमारा भर का मोटा मोटा सेठ पटाणी पड़े छे। कान काईँ बण ज्याबा प व्हाँ की सेवा करणी पड़े छे। जद परमोसन मले छे। अब अश्याँ परमोसन लेताँ लेताँ दोन्यूँ को गठजोड़ो अतनो गाढ़ो हो ज्यावे छे जश्याँ फेवीकोल को जोड़। दोन्यूँ आडी हाथी अड़ा र खींचे जद भी न छूटे।
अब थाँ ई बोलो! जमारा भर का सेठाँ सूं गठजोड़ो बांधे अर फेर भी व्हाई ज्हाज की थर्ड किलास म्हाइनें जातरा करे। य्हा कोई जमबा हाळी बात छे कईँ। अब य्हा ई तो गलती होगी, के उँठी ज्यूएन छोडर अठी आ मर् यो। पण काँई करतो ब्हापड़ो, उँठी मंदी की मार पड़ री छी। गठजोड़ा हाळा सन्दा सेठा के ही व्हा गळा में आ री छी तो यो व्हाँ काई करतो। अठी इटली हाळी माता जी नें देखी के यो ज्यूएन को बंदो फोकट म्हँ पल्ले पड़ रियो छे तो ईं ने छोडो मती, पकड़ ल्यो। व्हाँ ने पकड़्यो अर किसमत नें जोर मारि्यो, अर चुणाव में जीतग्यो। अठी जीत्यो अर उठीं उँ की पौ बारा। झट्ट सूं सेकिण्ड बिदेस मंतरी जा बणायो। आखर कार ऊँ ने गठजोड़ा को धरम भी तो निभाणो छो।
अब थें ई बताओ! अतनो बडो आदमी ज्ये जमारा भर का सेठाँ सूँ गठजोड़ो बणावे अर व्हाँ के कारणे सैकिंड बिदेस मंतरी बण के दिखावे। ऊँ से था खेवो के भाया खरचा माथे व्हाई ज्हाज का थर्ड किलास में बैठणी पड़सी। अब माता जी को खेबो भलाईँ न्ह माने पण गठजोड़ा को धरम तो निभाणी पडे। अर माताजी न्हें भी थोड़ी आँख्याँ दखाणी पड़े; के थें यूँ मती सोच जो के म्हूँ थाँ के न्हाईं छूँ। थानें हिन्दूस्तानी व्हाई ज्हाज का डिरेवर सूँ गठजोड़ो बणायो, पण म्हंने तो जमारा भर का सेठाँ सू बणायो छे, आज ताईँ निभायो छे। अर आगे भी निभाबा को पक्को इरादो कर मेल्यो छे।
थें ई बताओ, के ससी थरूर न्हें काँई झूट बोल्यो? हिन्दुस्तान का व्हाई ज्हाज की थर्ड किलास गायाँ भैस्याँ के बरोबर छे क कोई न्हँ? थाईं तो याद छे के व्ह परदेसी गायाँ जे पच्चीस-पच्चीस सेर दूध देव व्हाँ के ताँई कूलर एसी म्हँ रखाणणी पड़े छे। अब ससी थरूर साइब के ताईं जमारा भर का सेठाँ सूँ गठजोड़ा को सरूर न्हँ होवेगो तो काँईँ थारे ताँई होवेगो के ?
मेरा तो सर चकरा गया,भाई मेरी समझ मै कुछ नही आया , शायद ठेठ राजस्थानी भाषा मै लिखा है
जवाब देंहटाएंहमें तो समझ ही नहीं आया और आजकल बिना समझे टिप्पणी देने में डर रहा हूँ.
जवाब देंहटाएंकोशिश की पढ़ कर समझने की, पर असफल रहा।
जवाब देंहटाएंभाटिया जी की हिंदी देख मन प्रसन्न हो गया, बहुत सुधार किया है उन्होंने।
उड़न तशतरी भी डरती है? वाह!
बी एस पाबला
इतने बडे बडे महारथी कुछ न बोल पा रहे हों .. तो मै क्या बोलूं ?
जवाब देंहटाएंव्ह परदेसी गायाँ जे पच्चीस-पच्चीस सेर दूध देव व्हाँ के ताँई कूलर एसी म्हँ रखाणणी पड़े छे।
जवाब देंहटाएंफेर तो थरूर जी ज्यानका विदेशी क्यां रह सकी
बात तो सोच्बा की है ..!!
समीर जी और डर ? ऊ कौनो और बात कह रहे हैं ! राज भाटिया जी की टिप्पणी में हिन्दी सचमुच साफ़ सुथरी और निखरी निखरी लग रही है ! और हाँ राजस्थानी ठेठ बोली ध्यान से पढने में समझ में आ जाती है अरे वही जहाज के इकोनोमी क्लास के थरूर क कैटिल क्लस्वा बोलने पर पर दिनेश जी से रहा नयी ग - ई लिख दिहिन !
जवाब देंहटाएंबढियां लिखे हयन !
शशि थरूर अभी नासमझ और अपरिपक्व हैं. भारतीय राजनीति में जिस धूर्तता, पाखंड और मक्कारी की भाषा बोली जाती है उन्हें सीखने में कुछ समय लगेगा.
जवाब देंहटाएंबाप रे
जवाब देंहटाएंबडी मेहनत करवाई आपने
अब थुरुर का भी क्या कुसूर
उन्ने कब सोचा होगा कि मिनिस्टर बन के एकानमी में चलना पडेगा।
अभी पाखंड सीखने में वक़्त लगेगा…
बापडो शशि तो साँच बोल फँस गयो समझे तो सगळा नेता आम लोंगा ने ढोर ही है
जवाब देंहटाएंथे तो पूरी कहाणी राजस्थानी में ही मेल दी कइयां के तो समझ में ही कोणी आई,
जवाब देंहटाएंपण थारी बातां चोखी लागी, म्हाने जयपुर की याद आगी, आशीर्वाद राखजो,म्हारा ताईं,
थे तो पूरी कहाणी राजस्थानी में ही मेल दी कइयां के तो समझ में ही कोणी आई,
जवाब देंहटाएंपण थारी बातां चोखी लागी, म्हाने जयपुर की याद आगी, आशीर्वाद राखजो,म्हारा ताईं,
थोडी बहुत तो समझ में आ ही गयी अपने भी. और हाँ घोस्ट बाबू की टिपण्णी हमें पसंद आई.
जवाब देंहटाएंसब अपने को गरीब आदमी से आइडेण्टीफाई कराना चाहते हैं, पर सुविधायुक्त जीवन हेतु थरूर सब बनना चाहते हैं। यह हिपोक्रेसी भारतीय मानस में बहुत है। थरूर कम से कम हिपोक्रेट तो नहीं है!
जवाब देंहटाएंनो कमेंट्स
जवाब देंहटाएंBhatia jee sahee kah rahe hain mujhe bhi kuchh samajh naheen aayaa fir bhe jo samajh aayaa vo sahee hai khabar padhee thi is liye
जवाब देंहटाएंBhatia jee sahee kah rahe hain mujhe bhi kuchh samajh naheen aayaa fir bhe jo samajh aayaa vo sahee hai khabar padhee thi is liye
जवाब देंहटाएंaapka blog aur ye likhne ka tarika bahad nirala hai...pasand aaya
जवाब देंहटाएंHariyanawi thodi bahut samaz leti hoon. Shashi Tharoor ka poora kachcha chittha bata diya .Jor dar.
जवाब देंहटाएंम्हारे तो एक एक शब्द समझ आइ ग्यो भाया। घोस्ट बस्टर साब सइ के रिया हे। थरूर में गुरूर कोनी, बालपन और मूरखता ज्यादे दिखे।
जवाब देंहटाएंउने भापड़ा कांई लेवा के रिया हो भाया???
हम्म्म्म्... राजस्थान की पोस्टिंग आज काम आई
जवाब देंहटाएंBhapda na khah to dee,par kaain bhi na sochi k inko katno bawal machago.unha pheli sochno chhava chho k bana sochan samjhan kheba se baat ko batangad ban jaav chhah.Manah laage chhe k bhapdo Aagasun Asi galti na karahgo.
जवाब देंहटाएंShrinath Soni
Bhapda na khah to dee,par kaain bhi na sochi k inko katno bawal machago.unha pheli sochno chhava chho k bana sochan samjhan kheba se baat ko batangad ban jaav chhah.Manah laage chhe k bhapdo Aagasun Asi galti na karahgo.
जवाब देंहटाएंShrinath Soni