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शुक्रवार, 21 अगस्त 2009

'गिरता है शह सवार ही मैदाने जंग में'

भारतीय जनता पार्टी के दो पुरोधा अडवाणी और जसवंत (जिन में से एक निकाले जा चुके हैं) जिन्ना को सेकुलर कह चुके हैं, तो कोई तो वजह होगी। नेहरू पर उंगली उठाने से नेहरू की सेहत पर क्या फर्क पड़ेगा? उन पर पहले भी बहुत उंगलियाँ उठती रही हैं, और उठती रहेंगी।  यह एक खास राजनीति की जरूरत भी है।  फिर यह भी है कि गलतियाँ किस से नहीं हुई?  कौन घुड़सवार है जो घोड़े से नहीं गिरा?  मशहूर उक्ति है कि 'गिरता है शह सवार ही मैदाने जंग में'।  जो मैदाने जंग में ही नहीं हो वही नहीं गिरेगा।  बाद में लड़ने वालों पर उंगलियाँ भी वही उठाता है।  

गलती तो बहुत बड़ी भारतीय साम्यवादियों से भी हुई थी।  वे अपने ही दर्शन को ठीक से नहीं समझ कर मनोवाद के शिकार हुए थे। सोवियत संघ और मित्र देशों का पक्ष ले कर अंग्रेजों के विरुद्ध स्वाधीनता संग्राम से अपने को अलग कर लेने की गलती के लिए उसी सोवियत संघ के और विश्व साम्यवाद के सब से बड़े नेता  स्टॉलिन ने भी उन्हें गलत ठहराया था।  उस के बाद भी उन्हों ने कम गलतियाँ नहीं की हैं।  कभी वामपंथी उग्रवाद के बचकानेपन के और कभी दक्षिणपंथी अवसरवाद के शिकार होते रहे हैं और आज तक हो रहे हैं। 

लेकिन आज जसवंत ने मुर्दे को कब्र से निकाला है तो यह आसानी से फिर से दफ़्न नहीं होने वाला।  नेहरू के साथ पटेल पर भी उंगली उठी और पटेल को अपना आदर्श मानने वाले गुजरात में जसवंत की पुस्तक प्रतिबंधित कर दी गई। चाहे वे नेहरू हों, या फिर पटेल, या फिर कथित सेकुलर जिन्ना, इन के राष्ट्र प्रेम पर उंगली उठाना इतना आसान तो नहीं है। गलतियाँ तो ये सब कर सकते थे और उन्हों ने कहीं न कहीं की ही हैं। लेकिन आजादी के इन दीवानों से ये गलतियाँ क्यों हुई? इस समय में क्या इस की तह में जाना जरूरी नहीं हो गया है? मेरी समझ में तो इस बात की खोज और विश्लेषण होना चाहिए कि आखिर वे कौन सी परिस्थितियाँ थीं जिन के कारण इन तीनों से और भारत के स्वतंत्रता आंदोलन की प्रमुख धारा से ये गलतियाँ हुई कि जिन्ना उस मुख्य धारा से अलग हुए। देश बंट गया। यहाँ तक भी जाना प्रासंगिक और महत्वपूर्ण होगा कि उन परिस्थितियों को उत्पन्न होने देने के लिए जिम्मेदार शक्तियाँ कौन सी थीं? उन शक्तियों का क्या हुआ?  वे  शक्तियाँ आज कहाँ हैं? और क्या कर रही हैं?

17 टिप्‍पणियां:

  1. यह सही कहा आपने इसके लिये हमे तात्कालिक परिस्थितियों का ऐतिहासिक विश्लेषण करना ज़रूरी है .इतिहास में हम जिसे गलती कह रहे है वह सब कुछ सहज रूप से नहीं घटित हुआ है .इस बात की ओर ध्यान अब तक नहीं गया है कि ऐसी कुछ शक्तियाँ हो सकती हैं जो आज लुप्त दिखाई दे रही हैं . हो सकता है जसवंत की पुस्तक में इनकी ओर इशारा हो ।

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  2. उन परिस्थितियों को उत्पन्न होने देने के लिए जिम्मेदार शक्तियाँ कौन सी थीं? उन शक्तियों का क्या हुआ? वे शक्तियाँ आज कहाँ हैं? और क्या कर रही हैं?

    वो शक्ती आज भी जिंदा है और अब और ज्यादा शक्तिशाली हो गया है | विडम्बना इस बीत की है की दबी जुबान से हम स्वीकार करते हैं की ये शक्ती का गलत उपयोग हो रहा है, पर वोट बैंक के लिए इसको और सह देते हैं |

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  3. रोचक और जिज्ञासा जगाने वाले प्रश्न !

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  4. जिन्ना पर किताब लिख ली तो लिख ली! क्या बवाल मचाना उस पर!

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  5. जिन्न को बोतल के बाहर ही इसलिये निकाला जाता है कि हलचल पैदा की जा सके. मुझे तो वापस यही लग रहा है.

    रामराम.

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  6. द्विवेदी भारतीय इतिहास यूँ तो वैसे ही बहुत सी गलतियों का पुलंदा रहा है...और ये पुलंदा ..आजादी से पूर्व के इतिहास लेखन में कहीं कहीं ..पिटारा हो गया है...मुझे नहीं लगता की अब ऐसा संभव है की उन परदों के पीछे छिपे सच को ..बाहर लाया जा सकता है ..

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  7. मुद्दा असल में थोड़ा ज्यादा विस्तार मांगता है. आपने कम शब्दों में निपटाने की कोशिश की है.

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  8. कुछ शक्तियों की तरफ आपका इशारा समझ आ रहा है. मगर जो नेता होता है उसे जिम्मेदारी लेनी ही होती है. जसवंतसिंहजी ने पटेल पर आक्षेप कर अपने उपर मुसिबत मोल ले ली....वरना बच जाते..

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  9. बिलकुल सही कहा आपनेुस समय नेहरू जी ने अपने किसी स्वार्थ को आगे रख कर कओई फैसला नहीं लिया होगा उस समय जो प्रिस्थितियां बनी उन के हिसाब से फैसला लिया होगा लेकिन इन नेताओं को कौन समझाये कि कहने के लिये एक जुबान छाहिये होती है मगर करने के लिये एक पूरी ज़िन्दगी जो नेहरूजी ने देश के नाम कर दी थी। इन से कोई पूछे कि इन लोगों ने सिवा शोर मचाने के और देश के लिये क्या किया? आभार लिखना तो बहुत कुछ चाहती हूँ मगर जानती हूँ कि जिन से पूछ रही हूँ ये उन तक नहीं जायेगा इस लिये इतना ही काफी आभार्

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  10. गिरते हैं शह-सवार ही मैदान-ए-जंग में
    वो तिफ्ल क्या गिरेगा जो घुटनों के बल चले

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  11. ये एक बडी उथलपुथल के संकेत लगते हैं, और खुद वहां चिंतन के स्तर पर एक नई दशा-दिशा की संभावनाएं...

    भूत जी ने सही कहा, थोडा विश्लेषण हो सकता था...हमारा ज्ञान बढ़ता...

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  12. पहले अडवानी जी के जिन्ना पर बयान से कष्ट हुआ था, पर अब लग रहा है कि इतिहास में हुड़दंग निठ्ठला कृत्य है! क्या फर्क पड़ता है?!

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  13. आखिर वे कौन सी परिस्थितियाँ थीं जिन के कारण इन तीनों से और भारत के स्वतंत्रता आंदोलन की प्रमुख धारा से ये गलतियाँ हुई कि जिन्ना उस मुख्य धारा से अलग हुए। देश बंट गया। यहाँ तक भी जाना प्रासंगिक और महत्वपूर्ण होगा कि उन परिस्थितियों को उत्पन्न होने देने के लिए जिम्मेदार शक्तियाँ कौन सी थीं?

    शायद इसी बात का विश्लेष्ण करने की जसवंत सिंह ने कोशिश की हो ! लेकिन यहाँ तो किताब पढ़े बिना ही लोगों ने अपनी प्रतिक्रिया दे दी |

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  14. इति‍हास पढना ठीक है,लि‍खना भी ठीक है किंतु इति‍हास में जाकर जीना ठीक नहीं है,जसवंत सिंह की स्‍थि‍ति‍ वही है कि‍ वे अतीत में जाकर सत्‍य की वैधता की तलाश कर रहे हैं, अतीत के सत्‍य को वैध बनाया नहीं जा सकता, यदि‍ आप वैध बनाने की कोशि‍श करेंगे तो वैध नहीं बनेगा ,नए पंगे जरूर खड़े हो जाएंगे,दूसरी बात यह कि‍ इति‍हास की एक ही व्‍याख्‍या को सही मानना और उसे ही वैध ठहराना भी फासीवादी पद्धति‍ का हि‍स्‍सा है,इति‍हास व्‍याख्‍या के लि‍ए जि‍तना खुला रहेगा उसमें वैवि‍ध्‍यपूर्ण व्‍याख्‍याओं की जि‍तनी संभावनाएं रहेंगी लोकतंत्र उतना ही मजबूत होगा, शर्त्‍त यही है हम इति‍हास की व्‍याख्‍या के एकांगीपन और इति‍हास को यथार्थ और वैध ठहराने की हरकतों से बाज आएं। जसवंत सिंह के साथ भाजपा यही गलती कर रही है। भाजपा का मानना है इति‍हास का उनके यहां जो खाका और समझ बनी है वह वैध है और एकमात्र सही व्‍याख्‍या है,सारी मुसीबतों की जड़ यही समझ है। हमें 'मैं सही और बाकी सब गलत' वाली फासीवादी मान्‍यता से अंदर और बाहर दोनों ओर लड़ना होगा।

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  15. जब दिल बँट जाते हैं तो देश को कोई बांधकर नहीं रख सकता. अगर बंटवारा नहीं हुआ होता तो आज भी पूरा देश मुस्लिम और गैर-मुस्लिम के सिविल वार में फंसा हुआ होता. हाँ, इतना ज़रूर है कि जिन्नाह को बचाकर नेहरु को इसका जिम्मेदार ठहराने वाला या तो अव्वल दर्जे का गधा है या हद दर्जे का मक्कार. और यह जसवंत सिंह तो अपनी पिछली किताब के झूठ का खुलासा हो जाने पर पहले ही माफी मांग चुके हैं

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  16. पाकिस्तान बनना मतलब 80 प्रतिशत हिन्दूवादी विचारधारा दोषी।

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