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शनिवार, 20 जून 2009

हम धरती के जाए "गीत" * महेन्द्र नेह


"गीत" 

 हम धरती के जाए

  • महेन्द्र नेह 

आज तुम्हारी बारी है
जो जी आए कर लो 
कलजब वक्त हमारा आए
तो रोना मत भाई!

तुमने हमें निचोड़ा
जीना दूभर कर डाला 
भाग हमारे मढ़ा 
अंधेरा, मकड़ी का जाला 

हम हैं धरती के जाए
हम सब कुछ सह लेंगे 
अंधियारा कल तुम्हें सताए
तो रोना मत भाई!

तुमने जंगल, नदी, खेत
सब हमसे छीन लिए 
संविधान के तंत्र मंत्र से 
बाजू कील दिए 

तंत्र-मंत्र के बल पर 
अब तक टिका नहीं कोई 
कल यह सब वैभव छिन जाए
तो रोना मत भाई! 

तुमने हमें चबाया सदियों,
भूख न मिट पाई 
हविश मनुज के लहू 
पान की तनिक न घट पाई 
.
हम तो हैं मृत्युंजय 
हम को मार न पाओगे 
काल तुम्हारे सिर मंडराए, 
तो रोना मत भाई!


*******************







12 टिप्‍पणियां:

  1. हम तो हैं मृत्युंजय
    हम को मार न पाओगे
    काल तुम्हारे सिर मंडराए,
    तो रोना मत भाई!

    बहुत शानदार कविता.

    रामराम.

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  2. कविता शानदार है
    हंसना भी शानदार है
    भाव भी जानदार हैं
    इसे देख सोचकर लगता है
    रोना भी प्राणवान होगा

    जवाब देंहटाएं
  3. बढिया रचना प्रेषित की है।्धन्यवाद।

    जवाब देंहटाएं
  4. उर्जा से सराबोर कर देने वाला गीत है। पढवाने के लिए आभार।
    -Zakir Ali ‘Rajnish’
    { Secretary-TSALIIM & SBAI }

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  5. इस बेहतरीन गीत को हम तक लाने के लिए आभार.

    जवाब देंहटाएं
  6. तुमने जंगल, नदी, खेत
    सब हमसे छीन लिए
    संविधान के तंत्र मंत्र से
    बाजू कील दिए

    संपत्ति रखने का अधिकार क्या दिया, बहुसंख्यक आबादी के सभी अधिकार छिन गए.

    एक अच्छी, सरल और आसानी से समझ आने वाले कविता के लिए धन्यवाद.

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  7. महेन्द्र नेह जी के गीतों के सरोकार बिल्कुल साफ़...
    सहज भाषा में आम जन से कैसे गंभीर संवाद किया जा सकता है, गीतों के जरिए..
    पूरा विश्वविद्यालय हैं वे..

    इस लाजबाब गीत के लिए धन्यवाद...

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  8. आदरणीय महेन्द्र नेह जी के इस अद्भुत गीत के लिये आपका बहुत-बहुत आभार. कल मथुरा वाले दादा मदन मोहन उपेन्द्र जी ने दिनांक 27-06-2009 को कोटा में आयोजित होने वाली नवगीत कार्यशाला और सम्यक के लोकार्पण में चलने का निमंत्रण दिया और आज आपके इस ब्लाग से कोटा के दर्शन भी हो गये. अभिव्यक्ति का भी ब्लाग देखा. जब शुरू हो जायेगा तो बहुत अच्छा लगेगा.
    आपको शत-शत प्रणाम इस अच्छे कार्य के लिये.

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  9. "हम हैं धरती के जाए हम सब कुछ सह लेंगे अंधियारा कल तुम्हें सताए तो रोना मत भाई!"

    कविता की सहज संवेदना मन को खासा प्रभावित करती है । महेन्द्र नेह जी के इस गीत के लिये आभार ।

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  10. वाकई मोहक रचना है ,बधाई प्रस्तुति हेतु .

    जवाब देंहटाएं
  11. द्विवेदी जी,


    क्‍या इस गीत का ऑडियो भी उपलब्‍ध है...

    यदि हां, तो कृपया उसे भी अपने ब्‍लॉग के माध्‍यम से हमें सुनवाएं

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