अब हमारी साली साहिबा, शोभा की छोटी बहिन वर की चाची थी। शोभा का उसे और दूल्हे को यह उपहार समय पर देना था इस लिए हमारा मंडल के समापन के पहले पहुँचना आवश्यक था। खैर, मंडल सम्पन्न होते ही सब को भोजन के लिए कहा गया। उस के लिए फर्लांग भर दूर स्थित एक धर्मशाला जाना था। हम चल दिए। रास्ते में साप्ताहिक हाट लगी थी। मुझे छोटे कस्बे की साप्ताहिक हाट देखे बहुत दिन हो गए थे। मैं उसे निहारता चला।
हाट बाजार
धर्मशाला बनाम स्कूल
कच्चे-पक्के माल का भंडार
और भंडारी बने साले साहब
धर्मशाला एक बगीची जैसे स्थान में बनी थी। बहुत खुला स्थान था। इमारत में तीन बड़े-कमरे थे। पास में शौचालय और स्नानघऱ थे। अनवरत पानी के लिए टंकियाँ रखी गई थीं। इमारत पर धर्मशाला और विद्यालय दोनों के नाम प्रमुखता से लिखे थे। इमारत दोनों कामों में आती थी। इमारत के एक और खुले स्थान में तंबू तान कर पाक शाला बना दी गई थी। वहाँ शाम के लिए सब्जियाँ बनाई जा रही थीं और दोपहर के भोजन के लिए गरम गरम पूरियां तली जा रही थीं। एक बड़े कमरे को भोजन का भंडार बना दिया गया था। जिस में भोजन बनाने का कच्चा माल और तैयार भोजन सामग्री का संग्रह था। मेरे बड़े साले साहब वहाँ जिम्मेदारी से ड्यूटी कर रहे थे। बीच बीच में साढ़ू भाई आ कर संभाल जाते थे। सुबह नाश्ता किया था, भूख अधिक नहीं थी। फिर भी सब के साथ मामूली भोजन किया। कच्चे आम की लौंजी बहुत स्वादिष्ट बनी थी। दो दोने भर वह खाई। गर्मी के मौसम में पेट को भला रखने के लिए उस से अच्छा साधन नहीं था।
शाम की सब्जी की तैयारी के लिए कद्दू के टुकड़े
गर्म-गर्म पूरियाँ तली जा रही हैं
प्याज और अचार के लिए कच्चे आम खरीदें, अच्छे हैं, पर जरा महंगे हैं
आंधी में झड़े कच्चे आम, सस्ते हैं, बस पाँच रुपए प्रति किलोग्राम
और अचार के लिए मसाला यहाँ से खरीद लें
कच्चे आम को काटना भी तो होगा, कैरी कट्टा यहाँ लुहारियों से खरीद लें
मीठे के लिए गुड़ और तीखे के लिए हरी मिर्च भी तो चाहिए
विकलांग होने का खतरा मत उठाइए, जरा शंकर जी के वाहन नन्दी से बचिए
घर की सुरक्षा के लिए ताला लेना न भूलें
यह बहुत नहीं हो गया? शेष अगली किस्त में.......
अरे वाह यह सब तो काफी मजेदार रहा .
जवाब देंहटाएंअब हमारी साली साहिबा, शोभा की छोटी बहिन वर की चाची थी----तो वो आपकी पत्नी से भी तो वही रिश्तेदारी हुई जो साली साहिबा से है..अगर मैं बहुत कन्फ्यूज नहीं हुआ हूँ तो!!
जवाब देंहटाएंआपने तो आज पूरा का पूरा गांव ही घुमा दिया. बहुत आनन्द आया यह चित्र देख कर.
जवाब देंहटाएंरामराम.
चित्र देखकर और आलेख पढ़कर लगा मानो हम भी बारात में गाँव गए है . बढ़िया प्रस्तुति पंडित जी आनंद आ गया .
जवाब देंहटाएंहमें तो गाँव जैसा कुछ नहीं लगा. अछे खासे भवन हैं. पहले चित्र में देखिये. हाट बाज़ार ऐसे ही तो होते हैं. आस पास के देहाज़त से लोग आते हैं.इस प्रकार के हाटों में जाने का मौका कम मिल पाटा है. आपने अच्छा घुमा दिया.कैरी यहाँ ३० रुपये किलो बिक रही है.
जवाब देंहटाएंहरे ताजे खीरे ककडी नहीं देखी क्या? हाट की सैर चकाचक रही,.
जवाब देंहटाएंदिनेश जी आप की आज की पोस्ट ने तो हमे हमारा बचपन याद दिला दिया, मै ओर मेरा परिवार सभी बेठे आप की पोस्ट देख रहे थे, ओर हर चित्र को देख कर मै बोल देत कि यह हो रहा है, ओर नीचे टाईटल पढ कर वीवी हेरान हो रही थी कि आप को केसे पता ? अजी अब हम पक्के भारतीया हो गये है, बहुत ही अच्छी लगी सारी फ़ोटो.
जवाब देंहटाएंबाकी लेख भी बहुत ही प्यारा लगा.बिलकुल अपना सा
आप का धन्यवाद,
मजेदार्…
जवाब देंहटाएंVisited haat, nice experience. India is after all India.Sorry for posting in english.
जवाब देंहटाएंयह सब तो काफी मजेदार रहा
जवाब देंहटाएंवाह वाह! जनतन्तर से निपट व्याह कराने में जुट गये हैं। जमाये रहिये।
जवाब देंहटाएं@ ज्ञानदत्त पाण्डेय | Gyandutt Pandey
जवाब देंहटाएंअजी, खानदानी धन्धा तो वही रहा है।
अहा....चित्रों वाली यात्रा...सुंदर!
जवाब देंहटाएंअरे वाह ..इत्ता मज़ा आया ये सचित्र आलेख पढकर के लगा, चलो, अभी अचार बना लेँ और लौँजी पूडी भी खा लेँ ;-)
जवाब देंहटाएं- लावण्या
मजेदार रही यह यात्रा ..चित्र बहुत सही लिए हैं ..लगता है जैसे हाट बाजार घूम लिए साथ ही
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