शब्दों के सफर वाले अजित वडनेरकर जी कोटा रह चुके हैं, और कोटा की कचौड़ियों के स्वाद से भली तरह परिचित हैं। मैं ने जब उन से भिलाई जाने का उल्लेख किया तो उन्हें तुरंत ही कचौड़ियाँ याद आ गईं। हमारी योजना सुबह बस से चल कर शाम को भोपाल से छत्तीसगढ़ एक्सप्रेस पकड़ने की थी। लेकिन अजित जी ने कहा कि बस के भोपाल पहुँचने और छत्तीसगढ़ एक्सप्रेस पकड़ने में दो ही घंटों का अंतराल है जो बहुत कम है। हमने योजना बदली और 27 जनवरी को सुबह निकलने के बजाय 26 की रात को ट्रेन से निकलने का मन बनाया और आरक्षण करवा लिया। अब हमारे पास भोपाल में आठ घंटे थे। अजित जी को बताया गया कि कचौड़ियाँ भोपाल पहुंचने की व्यवस्था हो गयी है, पर वहाँ आप तक कैसे पहुंचेगी? बोले, ट्रेन से उतर कर मेरे घर आ जाइए।
भोपाल में इतने कम अंतराल में अजित जी के घर जाने का अर्थ था किसी अन्य से न मिल पाना। वैसे भी हमारे पास चार बैग होने से कहीं आना जाना दूभर था। पर पल्लवी त्रिवेदी से मिलने की इच्छा थी, भोपाल जंक्शन के आस पास ही उन का ऑफिस होने से उन से मिल पाना संभव प्रतीत हो रहा था। पर पता लगा कि वे राजस्थान यात्रा पर हैं और उसी दिन भोपाल पहुंचेंगी। रवि रतलामी जी से मिल सकता था। पर वे भी दूर थे। अन्य के बारे में तो इस अल्प अंतराल में मिल पाने की सोचना भी संभव नहीं था। मैं ने किसी को बताया भी नहीं। मेरे साढ़ू भाई हॉकी रिकार्डों के संग्रहण के लिए विश्व प्रसिद्ध हॉकी स्क्राइब बी.जी. जोशी इस अंतराल में सीहोर उन के घर आने का निमंत्रण दे रहे थे। पर उन से माफी मांग ली गई, अजित जी के यहाँ जाना तय हो गया।
26 को यात्रा से निकलने के पहले अजित जी की कचौड़ियों के साथ साथ भिलाई तक ले जाने के लिए दौ पैकेट लोंग के सेव भी लाए गए। पता किया तो ट्रेन 22.30 के बजाय 23.30 पर आने वाली थी। हम 23.10 पर ही स्टेशन पहुँच गए। ट्रेन लेट होती गई और 27 जनवरी को 00.30 बजे उस ने प्लेटफार्म प्रवेश किया और एक बजे ही रवाना हो सकी। ट्रेन चलते ही हम सो लिए। आँख खुली तो सुबह हो चुकी थी और ट्रेन अशोक नगर स्टेशन पर खड़ी थी। कॉफी की याद आई, लेकिन पैसेन्जर ट्रेन में कहाँ कॉफी? बीना पहुँची तो सामने ही स्टाल पर कॉफी थी। उतर कर स्टॉल वाले से कॉफी देने को कहा तो बोला 10 मिनट बाद बिजली आने पर। मैं ने पूछा यहाँ पावर कट है? बताया गया कि बिजली 10 बजे आएगी। यानी भोपाल पहुंचने का समय हो चुका था। ट्रेन भोपाल पहुंचने तक वडनेरकर जी का दो बार फोन आ गया। स्टेशन पर गाड़ी रुकते ही पल्लवी जी का खयाल आया। लेकिन घड़ी ने सब खयाल निकाल दिए। ऑटोरिक्षा की मदद से वडनेरकर जी के घर पहुंचे तो दो बज चुके थे। वापसी में मात्र चार घंटों का समय था।
सैकण्ड फ्लोर पर दो छोटे फ्लेट्स को मिला कर बनाया हुआ घर। एक दम साफ सुथरा और सुरुचिपूर्ण ढंग से सजाया हुआ। बरबस ही आत्मीयता प्रदर्शित करते छोटे-छोटे कमरे। कमरों में फर्श से केवल छह इंच ऊंचा फर्नीचर। मैं ने फोन पर ही उन्हें बता दिया था कि हम दोनों बाप-बेटे मंगलवारिया हैं सो नाश्ते वगैरह की औपचारिकता न हो। जवाब मिला था, कैसा नाश्ता? भोजन तैयार है। जाते ही अजित और मैं बातों में मशगूल। भाभी हमारे लिए कॉफी ले आईं। हमें प्रातःकालीन कर्मों से भी निवृत्त होना था। कॉफी सुड़क कर जैसे ही मैं स्नानघर में घुसने लगा अजित जी को कचौड़ियाँ याद आ गई। बोले, मेरी कचौड़ियाँ? भाई एक तो निकाल कर दे ही दो। वैभव कचौड़ियों के पैकेट के लिए बैग संभालने लगा। मैं ने पूछा- आप को तो पांच बजे नौकरी पर जाना होगा? तो बताया कि उन्हों ने सिर्फ मेरी खातिर आज अवकाश ले लिया है।
दोनों पिता पुत्र प्रातःकालीय कर्मों से निवृत्त हुए तो भोजन तैयार था। हम दोनों और अजित बैठ गए। दाल, सब्जियाँ, चपाती और देश में उपलब्ध सर्वश्रेष्ठ बासमती चावल, साथ में नमकीन और अचार। भूख चरम पर पहुंच गई। हम भोजन के साथ बातें करते रहे। अजित बता रहे थे कुछ दिनों पहले यात्रा के बीच ही अफलातून जी उन के मेहमान रह चुके हैं। उन के साथ बिताए समय के बारे में बताते रहे। ब्लागरी और ब्लागरों के बारे में, कुछ भोपाल, कोटा और राजगढ़ जहाँ अजित का बचपन गुजरा के बारे में बातें हुई। इस बीच हम जरूरत से अधिक ही भोजन कर गए। तभी भाभी जी ने ध्यान दिलाया कि उन का पुत्र किस तरह पढ़ते पढ़ते सो गया है। अजित देखने गए तो उसका चित्र कैमरे में कैद कर लाए। भोजन के उपरांत भी हम बातें ही करते रहे। पता लगा भाभीजी अध्यापिका हैं और रोज 40 किलोमीटर दूर एक कस्बे में अध्यापन के लिए जाती हैं। पूरी तरह एक श्रमजीवी परिवार। इस बीच अजित जी ने हमारे अनेक चित्र ले डाले। बातों में कब पाँच बज गए पता न चला। भाभी जी ने फिर गरम गरम कॉफी परोस दी।
अब चलने का समय हो चला था। अजित के माता पिता सैकण्ड फ्लोर पर चढ़ने उतरने की परेशानी के चलते निकट ही ग्राउंड फ्लोर पर अपने घर पर निवास करते हैं। हम अपने सामानों की पैकिंग करने लगे, कोई जरूरी वस्तु छूट न जाए। अजित वैभव को साथ ले कर पिता जी के घर खड़ी कार निकालने चल दिए। वे कार ले कर लौटे तो मैं ने अपने बैग उठाए। शेष सामान अजित का पुत्र उठाने लगा तो लगा वह घायल है। भाभी ने बताया कि वह दो दिन पहले ही वह बाइक पर टक्कर खा चुका है। उस के पूरे शरीर पर चोटें थीं। चोटें टीस रही थीं, जिस तरह वह चल रहा था लगा बहुत तकलीफ में है। फिर भी वह सामान उठाने को तत्पर था। मेरे पूछने पर भाभी ने बताया कि क्या क्या चिकित्सा कराई गई है।
जब भी मैं किसी को बीमार या चोटग्रस्त देखता हूँ और चिकित्सा के बारे में पता करता हूँ तो खुद बहुत तकलीफ में आ जाता हूँ। मैं ने अपने घर आयुर्वेदिक चिकित्सा देखी और सीखी, बाद में होमियोपैथी सीखी, और उसे अपनाया तो घर में ही दवाखाना बन गया। धीरे धीरे यह काम कब पत्नी शोभा ने हथिया लिया पता ही नहीं लगा। होमियोपैथी की बदौलत दोनों बच्चे बड़े हो गए कभी बिरले ही किसी डाक्टर या अस्पताल जाने का काम पड़ा।
मैं ने भाभी को होमियोपैथिक दवा लिख कर दे दी। कार आ चुकी थी, हम सामान सहित कार में लद लिए अजित, भाभी और उन का पुत्र साथ थे। हम स्टेशन पहुंचे तो ट्रेन आने में मात्र दस मिनट थे। अजित के पुत्र को चलने में तकलीफ थी। मैं ने अजित जी को प्लेटफार्म तक पहुँचाने की औपचारिकता करने से मना किया। वे राजी हो गए। जाते जाते उन्हें यह जरूर कहा कि वे होमियोपैथी दवा आज ले कर बेटे को जरूर दें। उन्हों ने आश्वस्त किया कि वे जरूर देंगे। अजित जी को विदा कर हम अपना सामान उठाए अपने प्लेटफार्म की ओर चले। ऐसा लग रहा था जैसे हम अभी अभी अपना घर और परिजन छोड़ कर आ रहे हैं।
कचौडिया की संख्या बताई जाये . अनूप जी पेट दर्द से काफ़ी परेशान है . अजीत जी का फ़ोनवा मिल नही रहा है :)
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छा लगा अजित जी और उनके परिवार के बारे में जानकर.
जवाब देंहटाएंरामराम.
आपने अजित जी के साथ संस्मरणों को लिखकर उन्हें समझने का मौका दिया। आभार। साथ ही आपने मेरी जन्मस्थली बीना की याद दिलाई जहां हमेशा जाने का मन करता है लेकिन जा नहीं पाता।....और हां ये कचौरियां तो ठंडी भी खाई जा सकती हैं।
जवाब देंहटाएंअजीत शब्दों पर ही नही रिश्तो ्पर भी बराबर पकड़ रखते हैं।वाकई जादूगर हैं वे।
जवाब देंहटाएंअजित जी से आपकी मुलाकात की दास्ताँ भली लगी. इसी बहने हम सब से भी परिचय हो गया. आभार.
जवाब देंहटाएंवाह.. वाह... वाह.... जय हो..... यों लगा कि हम भी साथ ही थे..
जवाब देंहटाएंबडा ही नाम सुना था अजित जी का, कई ब्लोग्स पर. काफ़ी वरिष्ठ ब्लोगर हैं ये जाना था.(ऊम्र में नहीं!)
जवाब देंहटाएंआज आपने मिलवाया तो आत्मीयता भरे इस विवरण नें बेहद प्रभावित किया. यही तो वसुधैव कुटुम्बकम की अवधारणा का सफ़ल उधाहरण है.
बधाई आपको , और अजितजी को भी.
आलेख बहुत उम्दा
जवाब देंहटाएंऔर कोटा की कचौडि़यों की तरह खस्ता
इन कचौडि़यों का स्वाद
हम भी समित्र गोवा जाते हुए
राजधानी ट्रेन से कोटा में
डॉ. गरिमा तिवारी (बिटिया)के
हाथों 9 नवम्बर 2008 को
ले चुके हैं और अभी तक मुंह में
मिसरी की तरह कायम है।
बहुत बढ़िया!
जवाब देंहटाएंपंडित जी, ये कचौड़िया मप्र तो पहुंची पर छत्तीसगढ़??
हे हे हे!
दिनेश जी आप की यात्रा तो बहुत सुंदर रही, अजीत जी से मिल कर भी खुशी हुयी, चलिये कभी खुशी के मोके पर भारत आया तो आप सब से मिलना जरुरी होगा,
जवाब देंहटाएंओर यह आप की कचोडियां बनती केसे है, थोडा तरीका, ओर समान बता दे, जब मिले गे त्ब तो आप से खा ही लेगे, लेकिन पहले घर मे बना कर तो खाये.
धन्यवाद
36गढ़ में
जवाब देंहटाएं36 पहुंचें
ऐसी कामना है
हमारी
संजीत जी।
दिनेश जी के दर्शनों का लाभ
हमने भी लिया था दिल्ली
मैथिली जी के कार्यालय में
पंगेबाज, काकेश, आलोक पुराणिक
सिरिल भी मौजूद मिले वहां।
कचौड़ियों की प्रतीक्षा सूची में हमारा नाम पहले है, ध्यान रखियेगा और पेनाल्टी शुल्क मत भूलियेगा :-)
जवाब देंहटाएंअजित जी से हम पहले ही मिल चुके हैं सो उनके बारे में आपने ज्यादा कुछ नया नहीं बताया.. सो ये सब छोडिये, यह बताईये कि चेन्नई कब आ रहे हैं? :)
जवाब देंहटाएंहम नहीं जानते कि कोटा कि कचौडी कैसी होती है सो कचौडी लाना भी मत भूलियेगा..
जवाब देंहटाएंअजित जी से मिलकर अच्छा लगा. आशा है कि उनका बेटा आपकी दवा से जल्दी ठीक होगा. यह लौंग के सेव कैसे होते हैं?
जवाब देंहटाएंमिलन कथा अच्छी लगी। भाभीजी (श्रीमती अजित) के चलते अजित जी को मिलनसार, जादूगर की उपाधियां मिल रहीं हैं। :) उनके बेटे के शीध्र स्वास्थ्य लाभ के लिये शुभकामनायें।
जवाब देंहटाएंइस आत्मीय मुलाक़ात के बारे में पढ़ना बहुत आत्मीयता से भरा रहा.अजित जी जोधपुर भी रहे है यद्यपि उस समय हम यहाँ नही थे. अब तो इंतजार है कब अजित जी जोधपुर प्रवास पर आए और हम मावे की कचौरी और मिर्ची बड़ा उन्हें खिलाएं.
जवाब देंहटाएंअच्छा लगा अजित जी और उनके परिवार के बारे में जानकर!!!
जवाब देंहटाएंद्विवेदी जी !! खाने पीने के मामले में संकोच नहीं करना चाहिए के मूल सिद्धांत पर अमल करते हुए कचोडियां और लौंग के सेव पर अपना नंबर भी बेशर्मी से लगा रहा हूँ ......वैसे आरक्षण की सूची तो बड़ी लम्बी हुई दिखती है !!
बहरहाल आप टोकन भी देना चाहें तो स्वीकार !!
आभार सहित !!
अच्छी चल रही है ब्लागर मीट यात्रा ! शुभकामनाएं !
जवाब देंहटाएंबढ़िया रहा यह मिलना आपका ...कचोरी लिस्ट बढती जा रही है ..:)
जवाब देंहटाएंआपके द्वारा अजित जी के व्यक्तित्व के बारे मे जानने का मौका मिला वरना तो वो बकलमखुद के जरिये दूसरे लोगों से ही मिलवाते रहते है ।
जवाब देंहटाएंअच्छा और कुछ अलग सा लग रहा है ये यात्रा संस्मरण ।
चिट्ठाकारों की अलग दुनिया बनती-बसती जा रही है। परिवार और कुनबे बन रहे हैं। अनजान लोग अल्पसंख्यक होने लगे हैं।
जवाब देंहटाएंयह पोस्ट तीन बार पढी। हर आर नई लगी। शायद इसीलिए कि ये रिश्ते ही नए हैं।
अच्छे लागों की अच्छी बातें, अच्छी और रोचक भाषा शैली में पढकर अच्छा लगा।
जैसा सुख आपको मिला, सबको मिले।
पुणे आना हो तो कचौड़ियों के अलावा भी जो कुछ प्रसिद्द हो न हो, सब लेकर आना पड़ेगा :-) अजितजी तो हैं की कामल के व्यक्ति. उनके परिवार के बारे में भी जानकर अच्छा लगा.
जवाब देंहटाएंAjit ji se aapka milna aur hamse milvaana achchha laga
जवाब देंहटाएंबहुत् विस्तार से और बड़ा जीवंत चित्रण किया है,
जवाब देंहटाएंलगता है, पाठक स्टेपनी बन आपके संग घूम ही आया ।
पर... पर,
पर, ' जरूरत से अधिक ही भोजन कर गए ' से बाज आओ, पंडित जी !
कचौड़ियों की खुशबु खींच लायी ...अजित जी मुलाकात आपने एक पोस्ट में निबटा कर थोडी कंजूसी कर दी आपने ....घर का पूरा खाका खींच दिया आपने ...खासे मेहमान नवाज है अजित जी
जवाब देंहटाएं"अनजान लोग अल्पसंख्यक होने लगे हैं"
जवाब देंहटाएंविष्णुभैया की बात अच्छी लगी। हिन्दी ब्लागिंग परिवार की शक्ल ले रही है। कोटा की कचौरियों की एक सप्लाई एजेंसी आपको खोल लेनी चाहिए। काफी ग्राहक मिलेंगे। रतन, सुआलाल वालों से बात कर लीजिए....खूब चलेगा साइड बिज़नेस :)
आपका आना सबको अच्छा लगा,अलबत्ता वक्त कम था। मेहमाननवाज़ी जैसा कुछ नहीं किया हमने, हां, घर का आदमी समझकर इससे बचने की कोशिश ज़रूर की और हम कामयाब भी हुए:)
@ अजीत वडनेरकर
जवाब देंहटाएंन न अजीत जी!!
ख़ुद खाई कचौडिया प्रेम वाली !!!
जब हमारा नंबर आने की सम्भावना केवल बनी ...... तो ग्राहक बनाने की सलाह?????
सही बात है अजीत जी हम ग्राहक व्राहक नहीं बनने वाले हम तो यूँ ही अपना नंबर लगायेगे लिस्ट में, द्विवेदी जी टोकन किधर है। जितनी देर से भेजेगे उतनी पेनल्टी बढ़ेगी। अजीत जी की खातिरदारी के चर्चे हम पहले भी सुन चुके हैं। अनूप जी ठीक कह रहे हैं , सारा श्रेय भाभी जी को जाता है। अजीत जी ने अपने हाथ से खिचड़ी बना कर खिलायी होती तो अलग बात थी, है न अजीत जी?…:)
जवाब देंहटाएंआशा है उनके सुप्रुत्र अब ठीक होगें
देर आये दुरुस्त आये वाली बात है ..कितनी नई बातेँ सुनीँ और बिलकुल अपनोँ सा लगा सारा बयान - अजित भाई के परिवार से मिलवाने का शुक्रिया और होम्योपेथी से फायदा हुआ होगा बेटे को ऐसा विश्वास है -
जवाब देंहटाएं- लावण्या
हुँ! अच्छी चर्चा है.
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