विनोद जी और अनिता जी
अभिषेक ओझा बता रहे थे कि मैं पूर्वा से बात कर लूंगा कि वह किस बस से कहाँ उतरेगी। हम ने दोनों ही स्थितियाँ पूर्वा की माताजी को बता दीं। वे तनिक आश्वस्त हो गयीं। अगले दिन सुबह आठ बजे मैं ने पूर्वा को फोन लगाया तो वह बस में थी। उस ने बताया कि विनोद अंकल उस के इंस्टीट्यूट पर आकर उसे बस में बिठा गए थे। उस का अभिषेक से भी संपर्क हो चुका था। शाम को जब दुबारा फोन पर बात हुई तो पता लगा कि वह साक्षात्कार दे कर मुम्बई वापस भी पहुँच चुकी थी। जब उस की बस पूना पहुँची तो अभिषेक बस स्टॉप पर उस का इंतजार करते मिले। उसे केईएम अस्पताल छोड़ा। साक्षात्कार आधे घंटे में ही पूरा हो लिया। वह बाहर आई तो अभिषेक अभी गए नहीं थे। दोनों ने किसी रेस्तराँ में नाश्ता किया और पूर्वा को मुम्बई की बस में बिठा कर ही अभिषेक अपने काम पर लौटे। इस खबर को जान कर शोभा प्रसन्न हो गईं। उन की बेटी पहली बार पूना गई थी और उसे अकेला नहीं रहना पड़ा था।
कुछ दिन बाद पता लगा कि पूना केईएम अस्पताल में जिस स्थान के लिए पूर्वा ने साक्षात्कार दिया था वैसा ही एक स्थान बल्लभगढ़ (फरीदाबाद) के सिविल अस्पताल में अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) हरियाणा सरकार और एक अंतर्राष्ट्रीय संस्था इण्डेप्थ नेटवर्क के संयुक्त प्रयासों से चल रहे व्यापक जन स्वास्थ्य सेवाओं के प्रोजेक्ट में भी स्टेटीशियन/ डेमोग्राफर का स्थान रिक्त है। उस ने वहाँ के लिए आवेदन किया और एक टेलीफोनी साक्षात्कार के उपरांत यह तय हो गया कि पूर्वा को पूना के स्थान पर बल्लभगढ़ में ही यह पद मिल जाएगा। वह अपने नियुक्ति पत्र की प्रतीक्षा करने लगी। उस का नियुक्ति पत्र किन्हीं कारणों से विलंबित हो गया जिस का लाभ यह हुआ कि उस ने आश्रा प्रोजेक्ट के उस के जिम्मे के सभी कामों को पूरा कर दिया जिस से उस की अनुपस्थिति से आश्रा प्रोजेक्ट को कोई हानि न हो। बाद में यह तय हुआ कि वह 2 फरवरी को बल्लभगढ़ में अपनी नयी नियुक्ति पर उपस्थिति देगी। इधर वैभव को भी जनवरी के अंत तक अपना प्रोजेक्ट और ट्रेनिंग शुरू करनी थी।
बलविंदर सिंह पाबला
सुनाते चलिये..बड़ी जल्दी संस्मरण खत्म हो गया. बहुत अच्छा लग रहा है ये सब अनुभव पढ़ना.
जवाब देंहटाएंपाबलाजी को गुस्सा क्यों आता है?
जवाब देंहटाएंअच्छे संस्मरण है सुनाते जाईये !
जवाब देंहटाएंबहुत बढिया यादें. मजा आया सुनकर.
जवाब देंहटाएंरामराम.
गुस्सा दिखाने से कार्यक्रम बदल जाते हैं तो फ़िर क्यूं न आए गुस्सा?
जवाब देंहटाएंबढ़िया रही आपकी धुआंधार यात्रा...
जवाब देंहटाएंअच्छा चल रहा है संस्मरण...
अच्छे संस्मरण है सुनाते जाईये !
जवाब देंहटाएंवैसे हमारा भी यही सवाल है ....पाबलाजी को गुस्सा क्यों आता है?
मुझे पता होता की अगर आप पुणे आ जाते तब तो मैं कभी तैयार न हुआ होता :-) या फिर कम से कम पबलाजी की तरह गुस्सा तो कर ही सकता था !
जवाब देंहटाएंरोचक यादे बन गई यह तो ..:) अगली कड़ी का इन्तजार रहेगा
जवाब देंहटाएंदिलचस्प !
जवाब देंहटाएंआगे की कड़ी का इंतजार है ।
वल्लाभ्गद का काम तो पूरा हो ही गया होगा. अग्रिम बधाई. बाकी सब कुछ रोचक लगीं.आभार.
जवाब देंहटाएंयह तो कुछ वैसा है कि खटिया पर बैठ चाय की चुस्की के साथ यात्रा वृत्त सुना जाये। सुन्दर।
जवाब देंहटाएंदिनेश जी देख लिया पंजाबियो का प्यार, पाबला जी धन्यवाद आप के गुस्से मै भी बहुत सा प्यार छुपा है, ओर सच मै बहुत अच्छा लगा, दिनेश जी आप का भी धन्यवाद इस सुंदर यात्रा वृत्त के लिये, अगली कडी का इन्तजार है.
जवाब देंहटाएंथोड़ा जल्द खत्म हो गया ये वाला हिस्सा....
जवाब देंहटाएंअगले का इंतजार है
पाबलाजी का गुस्सा पूरी तरह वाजिब है। 'आम्बा की भूख आमली से नी जाय' राय साब!
जवाब देंहटाएंरोचक,अगली कड़ी का इंतज़ार रहेगा।
जवाब देंहटाएंनमस्कार द्विवेदी जी, पूर्वा बेटी तो हमारे ननिहाल पहुँच गई... पूर्वा को हमारा प्यार और आशीर्वाद
जवाब देंहटाएंअच्छे लग रहे ये संस्मरण !
जवाब देंहटाएंबच्चोँ के साथ आप अन्य ब्लोग साथोयोँ से इसी तरह मिलते और मिलवाते रहेँ
जवाब देंहटाएंबडा अच्छा लगा -
- लावण्या
ह्म्म्म्म्म्म्म्म्म तो ये आपकी और दिनेश भैया के प्यार और दोस्ती की गहराई की,शुरुआत की,प्रेम कहानी की दास्ताँ की झलक......ओके ओके बताते जाइए.देखूं तो सही आखिर ऐसा कौन है जिसके कारन हमारा दिन उनके हिस्से में देने का फैसला कर लिया.
जवाब देंहटाएंही हां