शाम तीन बजे मैं चिन्ता में डूबा अपनी कुर्सी पर बैठा था कि शाम तक कैसे लक्ष्य पूरा कर सकूंगा। मुझे जल्द से जल्द अदालत के काम पूरे कर अपने लक्ष्य के लिए जाना था। तभी कोई बगल में आ खड़े होने का अहसास हुआ। सीने तक लटकी सलेटी दाढ़ी और कंधों तक झूलते सर के बाल कुर्ता पायजामा पहने कोई खड़ा था। देखा तो चौंक गया, वर्मा जी थे। पुराने बुजुर्ग साथी। मैं खड़ा हुआ, दोनों गले मिले तो आस पास के वकील देखने लगे। मैं ने अपने पास उन्हें बिठाया। पूछा -कैसे हैं? स्कूल कैसा चल रहा है? बेटे क्या कर रहे हैं? आदि आदि। अंत में पूछा -कैसे यहाँ आने का कष्ट किया। कहने लगे -मुझे कोई राय करनी थी। क्या विश्वविद्यालय का परीक्षार्थी एक उपभोक्ता है? मैं विचार में पड़ गया। कहा देख कर बताऊंगा।
मैं ने उन से पूछा कि मामला क्या है? परीक्षा में पेपर दिया, नंबर आने चाहिए थे 45, मगर आए 00 ही। पुनर्परीक्षण कराया तो 04 हो गए। मैं संतुष्ट नहीं हूँ। अदालत में मुकदमा करना चाहता हूँ। मैं ने पूछा -तो अब तक कारस्तानी जारी है? कहने लगे -जब तक दम है, जारी ही रहेगी।
ये विष्णु वर्मा थे। वर्मा सीनियर सैकंडरी स्कूल के संस्थापक। उन्हों ने बाराँ में आ कर स्कूल खोला था। कि एक कविगोष्ठी में हाजिर हुए, वहीं पहचान हुई। मैं बी. एससी. का विद्यार्थी था। लेकिन नगर में साप्ताहिक गोष्ठियों का एक मात्र आयोजक भी। एक गोष्ठी में कहने लगे -मेरे पास ग्यारहवीं के दस बारह विद्यार्थी कोचिंग के लिए आते हैं और जीव-विज्ञान का शिक्षक नहीं मिल रहा है। आप पढ़ा देंगे? मैं ने हामी भर ली। पढ़ाने लगा। धीरे-धीरे अंतरंगता बनी और बढ़ती गई।
एक दिन मुझे कहने लगे -दिनेश जी पहली कक्षा का एक बच्चा बहुत परेशान कर रहा है। चार माह हो गए हैं। वह कुछ लिखता ही नहीं है। उस के हाथ में बत्ती (खड़िया पैंसिल) पकड़ाते हैं हाथ पकड़ कर लिखना सिखाते हैं तो जहाँ तक हाथ पकड़ कर लिखाते हैं लिखता है। जहाँ छोड़ते हैं वहीं बत्ती पकड़े रखे रखता है। उस की गाड़ी आगे बढ़ ही नहीं रही है। जरा आप देखो।
मैं दूसरे दिन पहली कक्षा में हाजिर। उस बच्चे को देख कर मैं भी दंग रह गया। कोई तरकीब उस पर काम ही नहीं कर रही थी। मैं ने उसे ब्लेक बोर्ड पर बुलाया और बिंदुओं से वर्णमाला का क अक्षर अनेक बार लिखा। उस के सामने पहले अक्षर पर मैं ने चॉक से क बनाया , दूसरे अक्षर पर उस के हाथ में चॉक दे कर उस का हाथ पकड़ कर क बनवाया। तीसरे पर उसे बनाने को कहा। उस का हाथ रुक गया। फिर आधे अक्षर पर उस का हाथ पकड़ कर बनाया और आगे उसे बनाने को कहा तो उस ने पूरा क बना दिया मैं ने ब्लेक बोर्ड पर वर्णमाला के लगभग सभी अक्षर उस दिन बिंदुओं के बना कर उस से उन पर लिखवाया। उस ने बिना किसी सहायता के लिख दिए। फिर उसे बिना बिंदुओं के लिखने को कहा तो वैसे भी उस ने बिना किसी सहायता के लिख दिया। वह वर्णमाला के सभी अक्षर लिखने लगा। मैं उसे वर्मा जी को सौंप कर आ गया। उस के बाद उस बालक को कभी लिखने में समस्या नहीं आई।
वर्मा जी तब किसी एक विषय में एम ए थे, और एलएल बी भी, बी एड भी की हुई थी। फिर जब मैं वकालत में आ गया तो पता लगा कि उन को शौक लगा है, अलग विषय में एम ए करने का। वे फिर पढने लगे। आज पता लगा कि वे सात विषयों में एम. ए. कर चुके हैं। आठवें विषय में कर रहे हैं, तब उन के साथ एक पेपर में 00 अंक आने का हादसा हुआ। हम ने साथ बैठ कर कॉफी पी। उन से पूछा कि -कितने साल के हो गए हैं? तो बता रहे थे -छिहत्तर में चल रहा हूँ। यह एम ए कब तक करते रहेंगा? तो बताया -जब तक पढ़ने लिखने की क्षमता रहेगी। जिस साल परीक्षा न दूंगा, तो लगेगा कि कोई काम ही नहीं रह गया है। लगता है प्रोफेशनल विद्यार्थी हो गया हूँ।
चार बजे घड़ी देख कर बोले -अब चलता हूँ ट्रेन का समय हो गया है। तीन-चार दिन में मिलूंगा। मेरा मुकदमा लड़ना है। मैं ने उन्हें ऑटो में बिठाया और अपने काम में जुट गया।
वर्मा जी को हमारा प्राणाम, इसे कहते है लगन, प्यार, बहुत अच्छा लगा पढ कर.
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
अरे आजीवन विध्यार्थी बने रहनेवाले विष्णु वर्मा जी की लगन को नमन और आपने जिस बच्चे को
जवाब देंहटाएंवर्णमाला सीखलाई वो कहाँ होगा ? बहुत अच्छा प्रसँग बतलाया -
बहुत स्नेह सहित,
- लावण्या
आलेख बहुत अच्छा है .
जवाब देंहटाएंइस ज़ज्बे को नमन
काश हर आदमी दुिनया में फैली अच्छी चीजों को िवद्याथीॆ की तरह हमेशा ग्रहण करता रहे तो बहुत सी समस्याएं पैदा ही नहीं होगी । वमाॆ जी की लगन अिभनंदनीय है ।
जवाब देंहटाएंhttp://www.ashokvichar.blogspot.com
इतनी उम्र में यह जज्बा! बहुत प्रेरक।
जवाब देंहटाएंवाह वर्मा जी तो सही अर्थों में ज्ञान पिपासु निकले -पूरे फिलासफर !
जवाब देंहटाएंहमारे बरेली में भी एक आजीवन विद्यार्थी थे जिन्होंने अनगिनत विषयों में एम् ऐ किया था.
जवाब देंहटाएंबहुत प्रेरणादायक प्रसंग ! बहुत शुभकामनाएं !
जवाब देंहटाएंबड़े प्रेरक व्यक्तित्व है वर्माजी. ये जूनून तो अपने मत्थे भी सवार है... अगर नहीं उतरा तो आजीवन हम भी करेंगे. लेकिन समय की मर्जी !
जवाब देंहटाएंद्विवेदी जी
जवाब देंहटाएंचार विषय में तो हम भी हैं.
एलएल.बी. भी !...ये पोस्ट पढ़कर
पांचवें का विचार बन रहा है...अगर
कुछ हादसा हुआ तो आप मुक़दमा
लडेंगे न हमारी खातिर ?.हा...हा...!!!
=============================
ज्ञान और लगन की बात पढ़कर सच
बड़ी प्रसन्नता हुई....आभार.
डॉ.चन्द्रकुमार जैन
ठीक है जब तक सब A B C D पूरी न हो जाएं लगे रहें .
जवाब देंहटाएंएक दिन विष्णु वर्मा विष्णु शर्मा हो जाएंगे और पंचतंत्र की पुनर्रचना कर देंगे।
जवाब देंहटाएंवर्माजी का व्यक्तित्व सचमुच में प्रेरक है । उन्हें मेरी ओर से सादर वन्दन अर्पित कीजिएगा ।
जवाब देंहटाएंआपकी इस पोस्ट ने इसकी 'प्रति-पोस्ट' का विचार दिया है । जल्दी ही लिखनी पडेगी ।
ज्ञान और लगन की बात!!!!!!!
जवाब देंहटाएंलगन को नमन!!!!!!!!11
वर्माजी का व्यक्तित्व सचमुच में प्रेरक है. उनके व्यक्तित्व से परिचय कराने के लिए आपको धन्यवाद
जवाब देंहटाएंगंभीर और अद्भुत चिंतन के लिए मेरा वंदन स्वीकार करें अद्भुत शब्द प्रवाह
जवाब देंहटाएं