आज पहली वर्षगांठ की पूर्व संध्या है। कल साल गिरह होगी अनवरत की। एक साल, महज एक साल कोई लंबा अर्सा नहीं होता लेकिन लगता है कि बहुत-बहुत दूर निकल आया हूँ। इतनी दूर कि वह छोर जहाँ से चला था, नजर नहीं आता, या किसी धुंध में छिप गया है। आगे आगे चलता हुआ नजर आता है तीसरा खंबा मेरा पहला प्रयास।
यह अनवरत ही था जिसने हिन्दी ब्लागरी के पाठकों के साथ मेरी अंतरंगता को स्थापित किया। 28 अक्टूबर 2007 को तीसरा खंबा का प्रारंभ हुआ था। मन में बात थी कि जिस न्याय-व्यवस्था में एक अधिवक्ता के रुप में 29 साल जिए हैं, उस की तकलीफों को एक स्वर दूं, जो लोगों को जा कर बताए कि जिसे वे बहुत आशा के साथ देखते हैं उस की खुद की तकलीफें क्या हैं? लेकिन एक पखवाड़ा भी न गुजरा था कि एक बात तकलीफ देने लगी कि कानून और न्याय व्यवस्था एक नीरस राग है और इस के माध्यम से शायद मैं अपने पाठकों के साथ तादात्म्य स्थापित नहीं कर सकूँ। इस के लिए मुझे खुद को खोल कर अपने पाठकों के बीच रखना पडे़गा। तभी वे शायद यह समझ पाएँ कि तीसरा खंबा लिखने वाला कोई काला कोट पहने वकील नहीं बल्कि एक उन जैसा ही साधारण मध्यवर्गीय व्यक्ति है जो उन की जिन्दगी को समझ सकता है, उन की तकलीफें एक जैसी हैं। यही कारण अनवरत के पैदा होने का उत्स बना।
20 नवम्बर 2007 को अनवरत जन्मा तो उस का स्वागत हुआ। वह धीरे धीरे पाठकों में घुल मिल गया। जब निक्कर पहनता था, जब मैं काफी कुछ पढ़ने भी गया था तभी कभी यह इच्छा जनमी थी कि मैं लिखूँ और लोग पढ़ें। फिर कुछ कहानियां लिखीं कुछ लघु कथाएँ। उन दिनों शौकिया संवाददाता भी रहा, और कानून पढ़ते हुए दैनिक का संपादन भी किया। लेकिन जैसे ही वकालत में आया। सब कुछ भूल जाना पड़ा। यह व्यवसाय ऐसा था जिस का सब के साथ ताल्लुक था, लेकिन समय नहीं था। रोज कानून पढ़ना, रोज दावे और दरख्वास्तें लिखना रोज बहस करना और नतीजे लाना। एक वक्त था जब साल में दिन 365 थे और निर्णीत मुकदमों की संख्या 400 या उस से अधिक। इस बीच बहुत लोगों को सुना, पढ़ा। लेकिन कोशिश करते हुए भी खुद को अभिव्यक्त करने का अवसर ही नहीं था, सिवाय उन दस महिनों के जब एक दैनिक के लिए साप्ताहिक कॉलम लिखा।
नाम के अनुरूप तीसरा खंबा को न्याय-प्रणाली के इर्द गिर्द ही रखा जाना था। उस से विचलित होना नाम और उस की घोषणा का मखौल हो जाता। अपने को अभिव्यक्त करने का अवसर दिया अनवरत ने। यहाँ जो चाहा वह सब लिखा। कुछ साथियों 'यकीन', 'महेन्द्र', 'शिवराम' और आदरणीय भादानी जी की एकाधिक रचनाओं को भी रखा। लोगों ने उसे सराहा भी, आलोचना भी हुई। पर समालोचना कम हुई। लेखन की निष्पक्ष समालोचना का अभी ब्लागरी में अभाव है। लेकिन ऐसी समालोचना की जरूरत है जो लोगों के लेखन को आगे बढ़ा सके, उन्हें उन के अंतस में दबे पड़े उजास और कालिख को बाहर लाने में मदद करे। उन्हें हर आलेख के साथ एक सीढ़ी ऊपर उठने का अवसर दे।
संकेत रूप में कुन्नू सिंह का उल्लेख करना चाहूंगा। वे नैट के क्षेत्र में जो कुछ नया करते हैं, उसे पूरे उत्साह के साथ सब के सामने रखते हैं, बिलकुल निस्संकोच। उन का दोष यह है कि हिन्दी लिखने में उन से बहुत सी वर्तनी की अशुद्धियाँ होती हैं। हो सकता है लोगों को उन के इस वर्तनी दोष के कारण उन का लेखन कुरूप लगता हो। जैसा कि कुछ दिन पहले किसी ब्लागर साथी ने अपने आलेख में इसका उल्लेख भी किया। लेकिन रूप ही तो सब कुछ नहीं। किसी भी रूप में आत्मा कैसी है यह भी तो देखें। आज जब कुन्नू भाई ने तीसरा खंबा पर टिप्पणी की तो उस में हिज्जे की केवल दो त्रुटियाँ थीं। कुछ दिनों के पहले उन्होंने घोषणा की थी कि वे जल्दी ही हिन्दी लिखना भी सीख लेंगे। कुछ ही दिनों में उन की यह प्रगति अच्छे अच्छे लिक्खाडों से बेहतर है। लोग चाहें तो मेरे इस कथन पर आज हंस सकते हैं, लेकिन मैं कह रहा हूँ कि वे इसी तरह प्रगति करते रहे और नियमित रूप से लिखते रहे तो वे चिट्ठाजगत की रैंकिंग में किसी दिन पहले स्थान पर हो सकते हैं।
शास्त्री जी ने खेमेबंदी का उल्लेख किया। जहाँ बहुत लोग होते हैं उन्हें एक खेमे में तो नहीं रखा जा सकता। हम जब स्काउटिंग के केम्पों में जाते थे तो वहाँ बहुत से तम्बू लगाने पड़ते थे। अलग अलग तम्बुओं में रह रहे लोगों के बीच प्रतिस्पर्धा तो होती थी, लेकिन प्रतिद्वंदिता नहीं। सब लोग एक दूसरे से सीखते हुए आगे बढ़ते थे। लक्ष्य होता था हर प्रकार के जीवन को बेहतर बनाना। वही हमारा भी लक्ष्य क्यों न हो? हो सकता है लोग अलग अलग राजनीतिक विचारधाराओं से प्रभावित हों। एक को अन्यों से बेहतर मानते हों। लेकिन राजनैतिक विचारों, दर्शनों और जीवन पद्धतियों का भी कुछ लक्ष्य तो होगा ही। यदि वह लक्ष्य मानव जीवन को ही नहीं सभी प्राणियों और वनस्पतियों के जीवन को बेहतर बनाना हो तो राजनैतिक विचारों, दर्शनों और जीवन पद्धतियों के ये भेद एक दिन समाप्त हो ही जाएँगे। अगर यह एक लक्ष्य सामने हो तो सारे रास्ते चाहे वे समानांतर ही क्यों न चल रहे हों एक दिन कहीं न कहीं मिल ही जाएँगे और गणित के नियमों को भी गलत सिद्ध कर देंगे।
बहुत बहुत बधाई आप को प्रथम वर्ष की पूर्व संध्या पर....उम्मीद करते हैं की ये ब्लॉग दशकों तक चले...
जवाब देंहटाएंनीरज
आपके जालघर के लिये
जवाब देंहटाएंसदैव हमारी
सच्ची शुभेच्छाएँ रहेँगीँ
प्रथम वर्ष की भाँति
आनेवाले साल
यशस्वी होँ~~~
- लावण्या
बहुत-बहुत बधाई !
जवाब देंहटाएंचलता रहे यह कारवाँ !
अनवरत अनवरत रूप से चलता रहे
जवाब देंहटाएंयूं कलेवर दिन ब दिन निखरता रहे
मेरी तरफ़ से बहुत शुभ कामान्ये, ओर खुब फ़ले फ़ुले यह आप का ब्लांग
जवाब देंहटाएंअपने कर्मपथ पर आप सदैव आगे बढ़ते रहें, हमारी शुभकामनाएं।
जवाब देंहटाएंआदरणीय गुरूजी,
जवाब देंहटाएंआपके (हमारे भी) "अनवरत" को प्रारंभ हुए आज शानदार एक बरस हुआ. इसके जन्मदिवस के अवसर पर आपको और सारे ब्लॉगजगत को बहुत बहुत बधाइयाँ. आपके साथी आदरणीय यकीन, महेंद्र, शिवराम, भादानीजी एवं अन्य भी बधाई के पात्र जिन्होंने अनवरत पर आपका साथ निभाया. कुन्नू भाई के विषय में आपने बजा फ़रमाया जी. आपकी इस बात से कम से कम मैं तो १०० फ़ीसदी इत्तेफ़ाक रखता हूँ जी, के निष्पक्ष समालोचना का अभी ब्लॉग जगत में अभाव है. आपका अपना बवाल
'अनवरत' की प्रथम वर्षगांठ पर हार्दिक अभिनन्दन और आत्मीय शुभ-कामनाएं । आपके परिश्रम को सलाम ।
जवाब देंहटाएंकुन्नूजी से कहिएगा कि वे अपना काम करते रहें । आलोचनाओं की परवाह नहीं करें ।
आलोचकों के स्मारक नहीं होते ।
मुबारक हो जन्मदिन!
जवाब देंहटाएंmubarak ho
जवाब देंहटाएंअसंख्य शुभकामनाएं । तीसरा खंभा और अनवरत दोनों ही ब्लॉग जगत के अहम स्तंभ हैं । आपको पढ़ना सदैव दिलचस्प होता है । फिर शुभकामनाएं
जवाब देंहटाएंढ़ेर सारी शुभकामनायें...
जवाब देंहटाएंदिनेशरायजी , निर्भीक और गंभीर चिट्ठेकारी का एक साल पूरा होने पर शुभ-कामनाएँ ग्रहण करें ।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत बधाई जी
जवाब देंहटाएंशुभास्ते पन्थान:सन्तु।
जवाब देंहटाएंमंगलकामनाएँ।
शुभकामनाएं!
जवाब देंहटाएंहार्दिक शुभकामनाएं !
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत बधाई और शुभकामनाएं।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत बधाई एवं शुभकामनाएं।
जवाब देंहटाएंढ़ेरों शुभकामनायें आपको
जवाब देंहटाएंऔर खेमे पे आपकी सटीक बातों ने मन हर्षित कर दिया...
बधाई स्वीकार हो एक अच्छे ब्लौग की अनवरतता और अपनी दुलारी हिंदी का परचम लहराने के लिये
बहुत बहुत बधाई द्विवेदी जी। आपके दोनो ब्लॉग अपनी अपनी विधा के उत्कृष्टतम में से हैं। इनसे बहुत कुछ जानने - सीखने को मिला है।
जवाब देंहटाएंखेमे जो हों सो हों। आप तो खेमे के स्वयम न्यूक्लियस हैं।
पुन: बधाई।
ढेर साड़ी शुभकामनायें और बधाई !
जवाब देंहटाएंbest wishes
जवाब देंहटाएंregards
बहुत बहुत शुभकामनाएं !
जवाब देंहटाएंबधाई ! आपके ब्लॉग पढ़ना सदा से अच्छा लगता रहा है । लेखन की शैली ऐसी है कि गंभीर विषय भी पठनीय हो जाते हैं । आपकी टिप्पणियाँ भी बहुत संतुलित व सटीक होतीं हैं । शायद यह लेखन पर आपके व्यवसाय से सीखे धैर्य व मानव जीवन की समझ का बहुत अधिक प्रभाव है कि आप कैसा भी लेख हो लेखक की बात समझकर टिप्पणी करते हैं । यह गुण कम ही पाया जाता है, मुझमें तो नहीं ही है ।
जवाब देंहटाएंघुघूती बासूती
'अनवरत' की पहली वर्षगांठ पर बहुत-बहुत बधाई !
जवाब देंहटाएंगंभीर लेखन को समर्पित यह ब्लॉग अपने सामाजिक-सांस्कृतिक सरोकारों के साथ इसी तरह हमारा मार्गदर्शन करता रहे .
सर, पहली साल गिरह की ढेरों बधाइयां. लेखन ऐसे ही चलता रहे, यही कामना है.
जवाब देंहटाएंअनवरत का एक साल पूरा होने पर ढेर सारी शुभकामनाएं। आप की एक अपनी विशिष्ट, रोचक लेखन शैली है , जहां एक तरफ़ अनवरत पर एक जिन्दादिल, संवेदनशील इंसान का परिचय मिलता है वहीं तीसरा खंभा पर एक अत्यंत अनुभवी वकील का परिचय मिलता है और ये बात सही है कि ये दोनों चिठ्ठे हिन्दी ब्लोगजगत का एक अहम हिस्सा हैं । भगवान करे आप दशकों तक यूं ही लिखते रहें।
जवाब देंहटाएंये अभिषेक ओझा आप को ढेर सारी साड़ी क्युं दे रहे हैं जी…॥:)
बधाई हो सर...अनवरत यूं ही अनवरत रूप से चलता रहे
जवाब देंहटाएंचिट्ठाजगत में एक साल इस के बाहर दस साल बिताने के समान है.
जवाब देंहटाएंआप जैसे वरिष्ठ अभीभाषक न केवल जिस संवेदना के साथ चिट्ठाकारी करते है, बल्कि (पता नहीं कहां से) समय निकाल निकाल कर नयेपुराने चिट्ठाकारों को प्रोत्साहित करते हैं, यह बहुत ही अनुकरणीय आदर्श है. ईश्वर करे कि आप जैसे हजार और चिट्ठाकार हिन्दी चिट्ठाजगत में अवतार लें. यदि ऐसा हो जायगा तो किसी को प्रोत्साहन की कमी नहीं होगी किसी को स्नेह एवं प्रोत्साहन से भरे परामर्श की कमी नहीं होगी.
मैं यहां यह रेखांकित करना चाहता हूँ कि पेशाई जलन के कारण मेरे अंग्रेजी डोमेनों पर जब जबर्दस्त हमला हुआ था तब दिनेश जी के एक पत्र ने वह काम किया जो शायद दस नहीं कर सकते थे. आपको मेरा अभिवादन!!
आपने लिखा:
"यदि वह लक्ष्य मानव जीवन को ही नहीं सभी प्राणियों और वनस्पतियों के जीवन को बेहतर बनाना हो तो राजनैतिक विचारों, दर्शनों और जीवन पद्धतियों के ये भेद एक दिन समाप्त हो ही जाएँगे।"
यही मेरे लेख का लक्ष्य था. परस्पर प्रतिद्वन्दिता के बिना बहुत सारे खेमे (स्कूल ऑफ थॉटस) सहअस्तित्व में रह सकते है. हिन्दीजगत में काफी कुछ यह दिखता है. हां 5000 में एकाध झगडालू या विरोधीलाल गंदगी फैलाये तो उस से परिवार की भावना या अखंडता पर कोई दूरगामी असर नहीं पडता.
आपको इस दिन की एक बार और बधाई!!
लोगों ने उसे सराहा भी, आलोचना भी हुई। पर समालोचना कम हुई। लेखन की निष्पक्ष समालोचना का अभी ब्लागरी में अभाव है।
जवाब देंहटाएंaapki is bat se mai poornatah sahamat hu.n.koi bhi pragyavan vyakti apane dwara kiye gaye karyo.n ki prashansha se adhik samalochana ki adhik apeksha rakhata hai...! yadi is pratha ka khule man se swagat ho sake to ye jagat(blog ka) aur sundar ban sakta hai...!
ek samajhdaari ki bhavana se alankrit vyakti ke roop me mai hamesha aap ka aadar larti hu.n...!
mare pranaam ke sath meri shubhkamanae.n swikar kare.n
ओ ! द्विवेदी जी के चिट्ठे वर्षगाँठ मुबारक .छपता रहे तू अनवरत . पढते रहें हम अनवरत .
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत बहुत बहुत बहुत बहुत बहुत बहुत बहुत बहुत बहुत बहुत बहुत बहुत बहुत बहुत बहुत बहुत बहुत बहुत बहुत बहुत बहुत बहुत बहुत बहुत बहुत बहुत बहुत बहुत बहुत बहुत बहुत बहुत बहुत बहुत बहुत बहुत बहुत बहुत बहुत बहुत बहुत बहुत बहुत बहुत बहुत बहुत बहुत बहुत बहुत बहुत बहुत बहुत बहुत बहुत बहुत बहुत बहुत बहुत बहुत बहुत बहुत बहुत बहुत बहुत बहुत बहुत बहुत बहुत बहुत बहुत बहुत बहुत बहुत बहुत बहुत बहुत बहुत बहुत बधाई !!!!!!!!!!!!
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