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सोमवार, 27 अक्टूबर 2008

पता नहीं उन की दीवाली कैसी होगी?

कल से ही घर पर हूँ, दीवाली की तैयारियाँ जोरों पर हैं। बिजली वाला बल्ब लगा गया है, कल रात से ही जलने लगे हैं। शोभा (पत्नी) लगातार व्यस्त है पिछले कई दिनों से। बल्कि यूँ कहूँ कि महिनो से। कभी सफाई, कभी पुताई, कभी धुलाई, बच्चों के लिए कपड़े, त्यौहार के लिए मिठाइयाँ और पकवान निर्माण और इन सब के साथ-साथ घर का रोजमर्रा का काम। कितनी ऊर्जा भरी पड़ी है महिलाओं में, मैं दंग रह जाता हूँ। बच्चे आ गए पहले बेटा आया उस ने कुछ कामों में हाथ बंटाया, बाकी समय अपने मित्रों से मिलने में लगा रहा। सब घर जो आए हैं दीवाली पर। बेटी आई तब से कहीं नहीं गई। एक पुराने काम वाले टॉपर को ठीक करने में लगी है दो दिन से बाकी माँ का हाथ बंटा रही है।  उसे वापसी का रिजर्वेशन दो नवम्बर का चाहिए, चार का उस के पास है। तत्काल में हो सकता है। लेकिन रेल्वे की कोई साइट यह नहीं बता रही है किस ट्रेन में कितनी सीटें खाली हैं। कल ही सुबह रिजर्वेशन विण्डो पर सबसे पहले लाइन में लगने के लिए कितने घंटे पहले जाना होगा हम यही कयास लगाने आज जा कर सुबह आठ बजे विण्डो का नजारा करने गए। कुल मिला कर काम उतना ही कठिन जितना हनुमान के लंका जा कर सीता का पता लगाने का था। वे लंका जला आए थे, हम से तो आज लाइटर से गैस भी न जली, माचिस से जलाना पड़ा। कल रिजर्वेशन करा पाएँगे या नहीं मैं तो क्या भगवान भी न बता पाएंगे।

दोपहर भोजनोपरांत कम्प्यूटर पर बैठा ही था कि फोन घनघना उठा। एक पुराने मुवक्किल का था। कहने लगा एक केस ले कर आ रहा हूँ, घर ही मिलना।  मैं सोच रहा था दीवाली के दिन कैसी विपत्ति आन पड़ी? अदालतें भी शुक्रवार के पहले नहीं खुलेंगी। फिर भी  वह सौ किलोमीटर दूर लाखेरी से कोटा आया हुआ है, तो जरूर कोई विपत्ति ही रही होगी, मैं ने आने को हाँ कह दिया। करीब बीस मिनट बाद वह मेरे घर के कार्यालय में था। करीब साठ की उम्र होगी उस की, साथ में एक तीस-पैंतीस की महिला और एक लड़का करीब पच्चीस साल का साथ था। उस ने बताया कि वह उस की बेटी और भान्जा है। फिर वह कथा बताने लगा।

 अठारह साल पहले बेटी का ब्याह किया था तब वह सोलह की थी। अब कोटा में ही अपने पति के साथ रहती है। उस के छह और आठ वर्ष के दो बेटे हैं। पति पेन्टिंग का काम करता है। बेटी ने बताया कि कई साल से वह सिलाई का काम करती है जिस से करीब तीन-चार हजार हर माह कमा लेती है। पति कभी काम पर जाता है कभी नहीं जाता। जितना कमाता है उस का क्या करता है? पता नहीं। तीन बार मकान बनाए तीनों बार बेच दिए। खुद किराए के मकान में रहते रहे। पिछली बार मकान बनाने पर कर्जा रह गय़ा था जिसे पिता जी से चालीस हजार ले कर चुकाया। लेकिन कुछ दिन बाद ही मकान को बेच कर एक प्लाट खरीद लिया और उस पर निर्माण का काम चालू कर दिया। उसने अपना कमाया एक लाख रुपया मकान बनाने में पति को दे दिया। करीब पचास हजार अपने पिता से ला कर और दे दिया। करीब  तीस हजार अपने सिलाई के ग्राहकों से उधार दिलवा दिया।

तीन माह पहले मकान तैयार होते ही वे उस में जा कर रहने लगे। एक कमरा मेरे पास है, एक ससुर के पास।  अब पति कहता है इस मकान से निकल मकान बेचूंगा। दारू पी कर मारता है। पुलिस में शिकायत भी कर चुकी हूँ। मोहल्ले में बदनाम करता है कि मेरी औरत अच्छी और वफादार नहीं है। झगड़ा शुरू हुआ था, घर खर्च से, घर में सारा खर्च मैं डालती हूँ। बच्चों की फीस मैं देती हूँ। एक दिन बच्चों के रिक्शे वाले को किराया देने को कहा तो झगड़ा हुआ और आदमी से मार खाई। उस के बाद से अक्सर हाथ उठा लेता है। ससुर और देवर पति का साथ देते हैं। मुझे सताने को बच्चों को मारने लगता है। वह कहता है मैं मकान बेचूंगा। मैं कहती हूँ कि मकान में दो लाख से ऊपर तो मेरा लगा है। घर मैं चलाती हूँ। तेरा क्या है? कैसे मकान बेचेगा? एक दिन पीहर गई तो मकान के कागज निकाल कर ले गया और अभी अपनी बहिन से मेरे और खुद के नाम नोटिस भिजवाया है कि मकान बहिन का है हम उस में किराएदार हैं। पांच महीने से किराया नहीं दिया है। मकान खाली कर संभला दो नहीं तो मुकदमा करेगी। अभी पुलिस ने समझौते के लिए बुलाया था, नहीं माना। सहायता केन्द्र से बाहर आते ही धमकी दे दी कि मैं तो चाहता था कि तू मुकदमा करे तो मेरा रास्ता खुले। पुलिस वालों ने 498-ए, 406 और 420 आई पी सी में,  घरेलू हिंसा कानून में और मकान में हिस्से के लिए मुकदमे करने को कहा है। मेरे मुवक्किल, उस के पिता ने कहा कि मार-पीट से बचने को उस ने अपने भान्जे को उस के पास रख छोड़ा है।

खैर तुरंत कुछ हो नहीं सकता था। मैं ने पुलिस द्वारा अब तक की गई कार्यवाही के कागज लाने को कहा और अदालत खुलने पर शुक्रवार को आने को कहा। वे चले गए।

ऐन दिवाली के बीच, जब मैं सब को हार्दिक शुभकामनाएँ प्रेषित कर रहा हूँ, परिवार के लिए सर्वांग समृद्धि की कामना कर रहा हूँ। वहाँ एक घर टूट रहा है। एक महिला ने अपने पैरों पर खड़े हो कर एक घर बनाया, उसे वह बचाना भी चाहती है। अच्छे खासे पेंटर पति को जो रोज कम से कम दो सौ रुपए, माह में पाँच हजार कमा सकता है। मकान बना कर बेचने और मुनाफा कमाने का ऐसा चस्का लगा है कि उस में उस ने अपने काम को  छोड़ दिया, पत्नी और अपने ससुर का कर्जदार हो गया, लेकिन उस कर्ज को चुकाना नहीं चाहता। चाहता है पत्नी घर चलाती रहे, वह मकान बनाए और बेचे। जल्दी ही करोड़ पति हो जाए। सम्पत्ति उस के पास रहे और पत्नी मार खाती रहे, बच्चे बिना कसूर पिटते रहें। पत्नी और बच्चे ऐसे रहें कि जब चाहो तब उन्हें घर से बाहर धकेल दो। 

खुद्दार, खुदमुख्तार पत्नी अब पिटना नहीं करना चाहती, वह अपने पैरों पर खड़ी है। केवल इतना चाहती है उस का घर बसे। लेकिन पति भी तो सहयोग करे। अभी वे सब एक ही घर में हैं। पर इस शीत-युद्ध के बीच पता नहीं कैसे उन की दीवाली होगी? और छह-आठ वर्ष के बच्चे पता नहीं उन की दीवाली कैसी होगी? और कब तक उन का घर बचा रहेगा?

19 टिप्‍पणियां:

  1. Dukti rag chedh di, bahut achhi tarah samajhti hun us aurat ki peedha. Apna pati sath na ho to kaisi diwali?

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  2. आज बहुत कम पोस्ट हैं तो आपका ये लेख मैंने बहुत ध्यान से पढा ! आपकी लेखनी का फ्लो तो कमाल का है ही ! आपने घर परिवार का हाल बताते हुए मुद्दे को जहाँ पहुंचाया है वो आपकी लेखनी की ही बस की बात है ! द्विवेदी साहब मुझे ऐसा लगता है की जिस समस्या का जिक्र आपने किया है उसमे मेरे मन में एक बात सहज ही आ रही है ! अगर हो सके तो कभी अगली पोस्ट में या निजी रूप से जवाब अवश्य दीजियेगा ! क्योंकि आपके पेशे में ये समस्याए आप बहुत नजदीकी से देखते हैं जबकि हम लोग इससे सीधे तौर पर इन समस्याओं से रूबरू नही हो पाते ! अक्सर अखबारों के माध्यम से जब तब ऐसे वाकये पढने को मिलते हैं ! मेरा सवाल या कहे जिज्ञासा यह है की ये समस्या क्या आर्थिक स्तर की है ? और ज्यादातर इसी तबके में बहुतायत से क्यो देखने में आती है ? आज के दिन इस मुद्दे पर ध्यान खींच कर आपने वाकई बहुत जागरूकता का और संवेदनशीलता का परिचय दिया है ! आपको इसके लिए धन्यवाद !

    आपको परिवार सहित दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं !

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  3. कीन्हीँ लोगोँ के नसीब मेँ ऐसे निखट्ट्टू और लुच्चे लोग दुखी करने के लिये आते हैँ और जीवन नर्क बनाते हैँ -
    क्या हो ! कानूनन इस स्त्री को मकान मिल भी जाये पर उसका सँसार तो बिखर ही जायेगा -
    खैर ! आप बच्चोँ व भाभीजी के साथ दीपावली मनायेँ ..और हल भी निकालेँ
    स स्नेह्,
    - लावण्या

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  4. मन भारी हो गया..
    आपके पास केस है, तो हारने का प्रश्न ही नहीं..
    पर यह केस जीत कर भी. क्या वह अपने दुर्भाग्य.. मन की तल्ख़ी को कभी धो भी पायेगी ? उसकी हर दीपावली अपने पति को कोसते ही बीतेगी ।
    किन्तु एक घृष्टता करूँगा, पंडित जी !
    मेरे मन में यह सहज प्रश्न उठ रहा है कि,
    क्या आप उन अनाम दम्पति की प्राइवेसी तो नहीं भंग कर रहें हैं ?
    डाक्टर व वकील के सम्मुख व्यक्ति वह सभी तथ्य रख देता है, जो वह किसी से कभी साझी नहीं करता...
    बस ऎसे ही पूछ लिया, ताकि गोपनीयता की सीमारेखा को छू पाऊँ !

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  5. दीपावली पर हार्दिक शुभकामनाएँ!
    दीपावली आप और आपके परिवार के लिए सर्वांग समृद्धि लाए!

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  6. Bilkul achha laga ji lekh. Diwali ke deepakon ka prakash aapke poore pariwar ke logon ke jeewan men dher sari khushiyon ki roshni failade, yahi kamna.

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  7. दीपावली पर आप को और आप के परिवार के लिए
    हार्दिक शुभकामनाएँ!
    धन्यवाद

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  8. उस स्त्री का संसार क्या अभी बसा हुआ है जो टूट जाएगा ?
    आपको व आपके परिवार को दीपावली की शुभकामनाएं ।
    घुघूती बासूती

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  9. बड़ी विचित्र दुनिया है कितने रंगों वाली...हद कर दी उसके पति ने तो मगर न जाने कितने घरों के यही हाल होंगे.

    आपको एवं आपके परिवार को दीपावली की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाऐं.

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  10. आपको और आपके परिवार को भी दीवाली की अनेकों बधाइयां!

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  11. मन भारी हो गया. वह बेचारी सही जगह आई है. बताइयेगा क्या मदद कर पाती है आपकी अदालत और कानून.

    दीवाली की शुभकामनाएं.

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  12. वकील साहब! ...आपका पेशा ही ऐसा है ....समाज के सभी वर्गों को आप करीब से देख पाते होंगे!....उम्दा पोस्ट!....दीपावली की ढेरों शुभ कामनाएं!...धन्यवाद!

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  13. मार्मिक प्रसंग है । उस सा‍हसी नारी को विजय मिले । लेकिन चूंकि औरत है, सो उसकी तो हर हाल में हार ही है ।

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  14. Bilkul sahi kaha Vishnu Bairagi ji ne, jeet kar bhee aurat ki hi haar hai. Mann bahut hee bhari ho gaya, koi kushi nahin hai.

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  15. हमारे समाज में कुछ ऐसे अधम पुरुष विराजमान हैं जो मानवता के नाम पर कलंक हैं। ऐसी कर्मठ और साहसी पत्नी पाकर भी उस नराधम ने अपने जीवन में सुख का द्वार अपने हाथों से बन्द कर रखा है। अफ़सोस…!
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    !॥!दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं!॥!
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  16. सर जी, यह आप आपबीती सुना रहे थे या कोई कहानी। जो भी हो दिल को छू गई।

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  17. बन्धु,तीन व्यक्ति आप का मोबाइल नम्बर पूँछ रहे थे।मैनें उन्हें आप का नम्बर तो नहीं दिया किन्तु आप के घर का पता अवश्य दे दिया है।वे आज रात्रि आप के घर अवश्य पहुँचेंगे।उनके नाम हैं सुख,शान्ति और समृद्धि।कृपया उनका स्वागत और सम्मान करें।मैने उनसे कह दिया है कि वे आप के घर में स्थायी रुप से रहें और आप उनकी यथेष्ट देखभाल करेंगे और वे भी आपके लिए सदैव उपलब्ध रहेंगे।प्रकाश पर्व दीपावली आपको यशस्वी और परिवार को प्रसन्न रखे।

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  18. इस देश में न तो दुखो की सीमा है न दुखियारों की... कितने तरह के लोग, कितनी तरह की समस्याएं हैं... उनके लिए क्या होली, क्या दिवाली !

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कैसा लगा आलेख? अच्छा या बुरा? मन को प्रफुल्लता मिली या आया क्रोध?
कुछ नया मिला या वही पुराना घिसा पिटा राग? कुछ तो किया होगा महसूस?
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