आज गोवर्धन पूजा है। इस मौके पर स्मरण हो आता है हरीश भादानी जी का गीत "जय जय गोरधन !"
हरीश भादानी राजस्थान के मरुस्थल की रेत के कवि हैं।राजस्थानी और हिन्दी में उन का समान दखल है। 11 जून 1933 बीकानेर में (राजस्थान) में जन्मे । 1960 से 1974 तक वातायन (मासिक) का संपादन किया। कोलकाता से प्रकाशित मार्क्सवादी पत्रिका 'कलम' (त्रैमासिक) से भी आपका गहरा जुड़ाव रहा है। अनौपचारिक शिक्षा, पर 20-25 पुस्तिकायें प्रकाशित। राजस्थान साहित्य अकादमी से "मीरा" प्रियदर्शिनी अकादमी, परिवार अकादमी, महाराष्ट्र, पश्चिम बंग हिन्दी अकादमी(कोलकाता) से "राहुल" और के.के.बिड़ला फाउंडेशन से "बिहारी" सम्मान से आपको सम्मानीत किया जा चुका है।
"जय जय गोरधन" सत्ता के अहंकार के विरुद्ध जनता का गीत है..
* हरीश भादानी *
काल का हुआ इशारा
लोग हो गए गोरधन !
हद कोई जब
माने नहीं अहम,
आँख तरेरे,
आँख तरेरे,
बरसे बिना फहम,
तब बाँसुरी बजे
तब बाँसुरी बजे
बंध जाए हथेली
ले पहाड़ का छाता
जय जय गोरधन
काल का हुआ इशारा!
काल का हुआ इशारा!
हठ का ईशर
जब चाहे पूजा,
एक देवता
एक देवता
और नहीं दूजा,
तब सौ हाथ उठे
सड़कों पर रख दे
सड़कों पर रख दे
मंदिर का सिंहासन
जय जय गोरधन
काल का हुआ इशारा!
काल का हुआ इशारा!
सेवक राजा
रोग रंगे चोले,
भाव ताव कर
भाव ताव कर
राज धरम तोले,
तब सौ हाथ उठे,
उठ थरपे गणपत
उठ थरपे गणपत
गणपत बोले गोरधन
जय जय गोरधन !
काल का हुआ इशारा
लोग हो गए गोरधन !
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एक सामयिक पोस्ट, अच्छी तो खैर है ही...
जवाब देंहटाएंयह भी क्या अलग से कहा जायेगा ?
अच्छी पोस्ट है...
जवाब देंहटाएंआज गोवर्धन पूजा के दिन आपने सामयीक पोस्ट लिखी ! बहुत धन्यवाद आपका !
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया-एकदम मौके पर. आभार.
जवाब देंहटाएंगोवर्धन के बारे में अच्छी जानकारी . कृपया समय चक्र देखे. - गोवर्धन पर एक पोस्ट.
जवाब देंहटाएंhttp://mahendra-mishra1.blogspot.com/2008/10/blog-post_28.html#links
हमारे पूर्वी उत्तर प्रदेश में गोबर्द्धन पूजा दो चरणों में होती है। अमावस्या के अगले दिन प्रतिपदा को पशुओं को बाँधने के स्थान पर गोबर्द्धन जी का परिवार बनाया जाता है जिसे पशु (गाय, बैल, भैंस आदि)अपने पैरों से कूटते हैं। उसके अगले दिन यानि दूज को महिलाओं द्वारा गोबर से बने गोबर्द्धन महाराज की ‘पूजा’ करती हैं। इस पूजा के अन्तिम चरण में सोते हुए गोबर्द्धन की कुटाई होती है जो काम सभी महिलाएं मिलकर एक मोटे लठ्ठे (हल की हरिस) को पकड़कर सामूहिक रूप से करती हैं। इसी ‘भैया दूज’ के दिन बहनें अपने भाइयों की दीर्घायु के लिए भी उपवास और पूजा करती हैं।
जवाब देंहटाएंबहुत ही उम्दा सरजी, क्या कहना !
जवाब देंहटाएंगणपत बोले गोरधन
जवाब देंहटाएंजय जय गोरधन !
बहुत ही सामयिक और सटीक।
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर लगा, धन्यवाद
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