इन्दौर के होल्कर राज्य की सेना में बहादुरी के बदले उन्हें राजपूताना की सीमा पर 12 गाँवों की जागीर बख्शी गई। पाँच पीढ़ियाँ गुजर जाने और जागीरें समाप्त हो जाने पर उन के वंशज अब किसान हो कर रह गए हैं। गाँव में रहते और किसानी करते करते वही ग्रामीण किसान का सीधापन उन के अंदर घर कर गया। जागीरदारी का केवल सम्मान शेष रहा। सीधेपन और सरल व्यवहार ने उस परिवार के सम्मान को नई ऊंचाइयाँ दीं। इसी परिवार के एक 68 वर्षीय बुजुर्ग बलबहादुर सिंह इसी साल 19 अगस्त को अपने गांव रावली के पास के निकटतम कस्बे सोयत जिला शाजापुर मध्य प्रदेश से अपने कुछ रिश्तेदारों से मिलने कोटा आने के लिए बस में बैठे पुत्र चैनसिंह साथ था।
बस कोटा से कोई तीस किलोमीटर दूर मंड़ाना के पास पहुँची थी कि बलबहादुर को पेट में दर्द होने लगा उन्हों ने इस का उल्लेख अपने पुत्र और सहयात्रियों से किया।कोटा के नजदीक आते आते पेट दर्द बहुत बढ़ गया तो सहयात्रियों ने सलाह दी कि वे कोटा में कामर्स कॉलेज चौराहे पर उतर कर वहाँ के किसी अच्छे अस्पताल में दिखा कर इलाज ले लें। बस कॉमर्स कॉलेज चौराहा पहुँची तो बलबहादुर सिंह अपने पुत्र सहित वहीं उतर गए और सब से नजदीकी अस्पताल पहुँचे। वे अस्पताल के गेट से अंदर प्रवेश कर ही रहे थे कि विजयसिंह नाम का एक नौजवान उन्हें मिला। उस ने उन से बातचीत की। खुद को उन की जाति का और सोयत में अपनी रिश्तेदारी बताई और उन्हें विश्वास में ले कर सलाह दी कि यह अस्पताल तो अब बेकार हो गया है। अच्छा इलाज तो पास के दूसरे अस्पताल में होता है, अस्पताल भी बड़ा है और वहाँ सारी आधुनिक सुविधाएँ मौजूद हैं। मैं वहीं नौकरी करता हूँ। आप को डाक्टर को दिखा कर अच्छा इलाज करवा दूंगा। मेरे कारण आप को खर्च भी कम पड़ेगा। एक तो जात का, दूसरे गांव के पास ही उस की रिश्तेदारी, बलबहादुर ने उस का विश्वास किया और उस के साथ उस बड़े अस्पताल आ गए।
अस्पताल पहुँचते ही विजयसिंह ने वहाँ के प्रधान डॉक्टर मिलवाया। डॉक्टर ने खुद जाँच की फिर दो अन्य डॉक्टरों को बुला कर दिखाया। सभी डॉक्टरों ने आपस में सलाह कर बताया कि अभी और जांचें करनी पड़ेंगी जिस का खर्च पाँच-छह हजार आएगा, यह राशि तुरंत जमा करानी पड़ेगी। विजय सिंह बलबहादुर के पुत्र चैन सिंह को अलग ले गया और कहा कि तुम्हारे पिता को तो हार्ट अटैक आने वाला है, इन का तुरंत इलाज जरूरी है, अन्यथा या तो इन से हाथ धो बैठोगे या फिर इन को लकवा हो जाएगा तो जीवन भर के लिए पलंग पकड़ लेंगे। लेट्रिन-बाथरूम के लिए भी दूसरों पर निर्भर हो जाएंगे। चैन सिंह कुछ समझता और निर्णय लेता उस से पूर्व ही डॉक्टरों ने उसे कहा कि 50-60 हजार रुपयों का इन्तजाम करो इन का तुरंत आपरेशन करना पड़ेगा। चैन सिंह भौंचक्का रह गया उस इतने पैसे का तुंरत तो इन्तजाम नहीं हो पाएगा कल तक कोशिश कर सकता हूँ। उसे जवाब मिला -इतना समय नहीं है, जितने पैसे अभी हों उतने अभी जमा करा दो तो हम इलाज चालू करें। इस बीच तुम जितना हो सके इंतजाम करो। पिता की तत्काल मृत्यु की आशंका से भयभीत हुए चैनसिंह ने अपने और पिता के पास के सवा तीन हजार रुपए जमा करवा दिए। वह रुपयों के इन्तजाम जुटा और बलबहादुर को अस्पताल के ऑपरेशन थियेटर में पहुँचा दिया गया।
उसी दिन बल बहादुर का ऑपरेशन कर के दो घंटे बाद जनरल वार्ड में शिफ्ट कर दिया। दूसरे दिन चैनसिंह किसी तरह बीस हजार रुपये जुटा कर लाया लाया जिसे अस्पताल वालों ने जमा कर रसीद दे दी। लिया। उसे कहा गया कि अभी उस के पिता का इलाज शेष है, चालीस हजार रुपयों का इंतजाम और कर के जमा कराओ। हम कल तक इन की अस्पताल से छुट्टी कर देंगे। चैनसिंह ने अपने मौसा को खबर भेजी। तीसरे दिन वे चालीस हजार रुपया और ले कर आए वह भी अस्पताल में जमा करा दिया गया। यह रुपया जमा हो जाने पर बलबहादुर को बताया गया कि उस की एंजियोग्राफी और एंजियोप्लास्टी 19 अगस्त को ही कर दी गई है।
इस बीच बलबहादुर को सीने और पेट में दर्द होता, जिस की वह शिकायत करता तो उस से कहा जाता कि चुपचाप लेटे रहो, अभी बाहर से डाक्टर आएंगे और वही तुम्हें देखेंगे। बलबहादुर को अब तक लगने लगा कि वह कहीं इस अस्पताल में आ कर फंस तो नहीं गया है वह कुछ भी नहीं कर पा रहा था। उस ने प्रतिपक्षीगण से अस्पताल से छुट्टी देने की प्रार्थना की तो उसे अस्पताल बयालीस हजार का बिल और बताया गया और कहा गया कि जमा करा दोगे तो शेष रहा जीवन भर लगातार चलने वाला इलाज बता कर छुट्टी कर देंगे। जब तक रुपया जमा नहीं होगा छुट्टी नहीं मिलेगी। इस बीच पुत्र ने उसे हिंगोली की गोली बाजार से ला कर दी तो पेट दर्द कम हो गया। इस तरह के व्यवहार से बलबहादुर अपने अनिष्ट की आशंका से भयभीत हो गया। अस्पताल वाले लगातार रुपया जमा कराने को कहते रहे। बलबहादुर को लगने लगा कि अब इस अस्पताल में उस की खैर नहीं है, यहाँ दो दिन भी रहा तो वह शायद ही जीवित घर वापस लौट सके। इस तरह के डाक्टर तो पैसे के लिए कुछ भी कर सकते हैं। यहाँ से उसे निकलना पड़ेगा।
खुद को ठगा हुआ, फंसा हुआ और बंदी समझ कर बलबहादुर अपने पुत्र के साथ 22 अगस्त को चुपचाप अस्पताल छोड़ भागा। उसी दिन उस ने खुद को हृदयरोग विशेषज्ञ और मेडीकल कॉलेज कोटा के एक सहायक प्रोफेसर डाक्टर को दिखाया तो उन्हों ने कहा कि आप को मात्र गेस्ट्रिक प्रोब्लम थी। आप का गलत इलाज कर दिया गया। आप की ऐंजिओप्लास्टी करने की जरूरत ही नहीं थी। उस ने गेस्ट्रिक प्रोब्लम के लिए सामान्य दवाइयाँ लिखीं जिन को लेने के बाद तुरंत ही बलबहादुर खुद को सहज और स्वस्थ महसूस करने लगा। लेकिन उस की शंकाएं नहीं गईं। दूसरे दिन उस ने खुद को मेडीकल कॉलेज एक पूर्व अधीक्षक,पूर्व प्रोफेसर एवं विभागाध्यक्ष मेडिसिन विभाग और हृदयरोग विशेषज्ञ, को दिखाया तो उन्हों ने भी यही कहा कि उसे हार्ट की कोई बीमारी ही नहीं थी जिस के इलाज की जरूरत होती। लेकिन अब एंजिओप्लास्टी कर दी गई है तो जीवन भर निरंतर दवाओं पर निर्भर रहना पड़ेगा। जिन का महिने भर का खर्च आठ सौ-हजार रुपए आएगा। यह खर्चा तो जीवन भर करना ही पड़ेगा।
इस बीच विजयसिंह बलबहादुर के गांव रावली जा पहुँचा, और घर में घुसते ही बलबहादुर और उस के परिवार वालों को चिल्ला कर अपशब्द कहते हुए कहा कि लोग अस्पताल में भरती हो कर इलाज करवा लेते हैं, और फिर बिना पैसा जमा कराए अस्पताल से भाग जाते हैं। पूछने पर बलबहादुर के परिवार वालों को उस ने बताया कि उन के परिवार के मुखिया ने उन के अस्पाताल मे इलाज करवाया और बिना रुपया दिए भाग आया है और धमकी दे गया कि बाकी का रुपया जमा करवा दो वरना इस का अंजाम बहुत बुरा होगा। परिवार वाले यह सब सुन कर घबरा गए, उन्हें बलबहादुर की बीमारी का कुछ पता ही नहीं था। वे बलबहादुर की खोज खबर करने को फोन पर फोन करने लगे। जब तक उन की बात उन से नहीं से हो गई उन्हें तसल्ली नहीं आई।
बाद में पता लगा कि यह अस्पताल अनेक लोगों के इसी तरह के आपरेशन कर चुका है। ऐसा करना उस की मजबूरी है। कुछ डॉक्टरों ने यह अस्पताल खोला था। बैंकों आदि से भारी कर्जे ले कर उसे तुरंत विस्तार दे दिया गया। अब जब तक रोज मरीज न मिलें तो कर्जे चुकाने ही भारी पड़ जाएँ। अस्पताल इसी तरह मरीज जुटाता है। अब बलबहादुर ने अपने भतीजे के वकील पुत्र की सलाह पर अस्पताल, उस के डाक्टरों और विजयसिंह के खिलाफ एक फौजदारी मुकदमा धोखाधड़ी के लिए किया है और उपभोक्ता अदालत में अलग से हर्जाना दिलाने की अर्जी पेश की है।
बहुत अफसोसजनक, देखिये अदालत क्या करती है.
जवाब देंहटाएंबलबहादुर जी जैसे कई मामले सुनने में आते हैं। त्वरित पैसा कमाने की चाह उन प्रोफेशन्स में ज्यादा है, जिनमें पैसा आना लगा रहता है।
जवाब देंहटाएंऐसे धोखेबाज और निर्मम अस्पताल के सारे गुनहगारोँ को कडी से कडी सज़ा देनी चाहीये ताकि दूसरोँ के जीवन के साथ वे ऐसा भद्दा मजाक करने की हीम्मत भी ना कर पायेँ ..
जवाब देंहटाएंबहुत दुखद घटना है ये :-(
- लावण्या
ऐसे ठग बचने नहीं चाहिए.
जवाब देंहटाएंभारत में अस्पतालों की हालत बहुत खराब है। मुझे इस बार अपनी मां को अस्पताल ले जा कर जो हाल देखने को मिला उससे लगा नहीं कि भारत में प्रगति हुई है। इलाज का खर्च अंतर्राष्ट्रीय स्तर का ही है और अस्पताल अन्तर्राष्ट्रीय स्तर के इलाज का भी दावा लरते हैं, मगर वो बात बिल्कुल भी नहीं। नर्स और अटेन्डेन्ट का व्यवहार बहुत ही रूखा। डाक्टर बहुत पड़े लिखे और बहुत काबिल हैं मगर अटिट्यूड बहुत ही बुरा। एक सवाल पूछते हुये डर लगता है कि कहीं बुरा न मान जायें वो किसी बात पर। कभी कभी देश से दूर रहने का जो दर्द होता है, वो इन सब चीज़ों को अनुभव कर के कम हो जाता है।
जवाब देंहटाएंहॉस्पिटल इलाज के नाम पर लोगों को लूटने का ही काम कर रहे है ।
जवाब देंहटाएंआशा है कि कोर्ट उन्हें न्याय देगा ।
medico legal ka case to banaa magar aise prbandhan aur chikitsko se degree chhin lene ki karywahi ki jaati krupya kar suchit karen
जवाब देंहटाएंमीडिया, न्यायपालिका , राजनीति, प्रशासन, स्वास्थ्य ये तमाम ऐसे महकमें हैं जहां काम करने, कैरियर बनाने की इच्छा लोगों में होती थी ताकि समाज की सेवा की जा सके, नामवरी होसिल हो सके।
जवाब देंहटाएंमगर ये और तमाम दूसरे क्षेत्रों में ऐसे अपराधी तत्व बढ़ गए हैं । क्या आपको नहीं लगता कि सामाजिक नैतिक पतन के मूल में हमारे यहां के कानून में बेहद हल्की फुल्की सजाओं का होना है ? क्या कठोर दंड नहीं होना चाहिए ? क्या कानूनों में बदलाव नहीं होना चाहिए ?
सार्वजनिक तौर पर विजयसिंह जैसे लोगों को फांसी पर नहीं लटका देना चाहिए ? धिक्कार है उस समाज पर जो दो प्रेमियों को तो फांसी पर लटका देता है मगर विजयसिंह जैसे लोगों से दब कर चलता है.....
कभी कानून में बदलाव वाले विषय पर भी लिखें और श्रंखल चलाएं...रोचक और लाभप्रद रहेगी।
एक गरिमामय पेशे को बदनाम करने वाला कृत्य है !
जवाब देंहटाएंमैंने कर्ज लेकर घर बनाया तो क्या मेरे घर में जो भी मेहमान आए उसको चाय के हजारों देने पड़ेंगे। नहीं तो जाने नहीं दिया जाएगा। ये तो गलत हैं। खासकर डॉक्टरी सेवा में तो ये नहीं होना चाहिए।
जवाब देंहटाएंबहुत अफसोसजनक,ऐसे लोगो को कड़ी से कड़ी साजा के साथ उनका रजिस्ट्रेशन भी रद्द करना चाहिए
जवाब देंहटाएंऐसे लोग न तो चिकित्सक होते हैं और न ही पुरूषार्थी । ये लोग अपने पेशे पर धब्बे हैं । दिक्कत यही है कि लोग अलग-अलग (व्यक्तिगत) स्तर पर पीडित होते हैं जबकि उनका शोषण संगठित स्तर पर । प्रत्येक पीडित ऐसी आफत से बच निकलने के बाद इसे याद भी रखना नहीं चाहता । ऐसे में यही कहा जा सकता है कि बलबहादुरसिंहजी के साथ सचमुच में बहुत ही बुरा हुआ लेकिन खैर मनाएं कि इससे भी बुरा हो सकता था ।
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