कोई एक पखवाड़े पहले 'इन्टेन्स डिबेट' (Intense Debate) से साक्षात्कार हुआ, कैसे? यह मुझे अब पता भी नहीं। यूँ ही, नेट पर चलते चलते। मुझे उस के पोस्ट पेज पर टिप्पणी फार्म और क्लिक करते ही सैकण्ड़ों में पोस्ट पर शामिल होने के गुण से आकर्षित किया। इस में और भी अनेक फीचर्स थे, जैसे आप एक ही पेज पर अपने ब्लॉग की अब तक की सारी टिप्पणियां देख सकते थे, और अपने ब्लॉग पर की गई खुद की सारी टिप्पणियाँ भी अलग से। टिप्प्णियों की स्टेटिस्टिक्स भी। और भी अनेक विशेषताएँ हैं इस में।
लेकिन दोष भी साथ ही। जैसे शायद सर्वर का सीमित होना जिस के कारण कभी समय पर टिप्पणी फार्म का ब्लॉग के साथ शीघ्र् नहीं जुड़ पाना, जिस के कारण ब्लॉगर के टिप्पणी फार्म का दिखना और टिप्पणी वहाँ चले जाना। इस समस्या का हल था उस की टिप्पणी फार्म को जो मैं ने पेज एलीमेंट के रूप में जोड़ा था उसे एचटीएमएल के रूप में जोड़ देना। वह मैं ने किया भी। लेकिन एक अन्य समस्या सामने आ गई। सर्वर की अक्षमता के कारण अनेक टिप्पणियाँ बार बार धकेलने पर भी नहीं चढ़ पाना और टिप्पणीकर्ता का परेशान होना। जिस में बालकिशन जी और समीर भाई तो बहुत ही परेशान हुए। समीर भाई ने तो मुझे अनेक मेल भी किये।
एक और दोष था कि टिप्पणियाँ मेल द्वारा मुझे आती तो उस में यूटीएफ-8 एनकोडिंग के शामिल न होने से उन्हें पढ़ नहीं पाना।
इन सब कमियों को मैं ने इंटेन्स डिबेट को सूचित किया और उन्हों ने वायदा भी किया। लेकिन मुझे लगता है कि उन्हें ठीक होने में अभी समय लगेगा। हो सकता है वे शीघ्र ठीक कर लें। लेकिन हिन्दी ब्लॉग्स के लायक होने में उन्हें समय लगेगा। तब तक टिप्पणी करने वाले पाठकों से अन्तर्क्रिया न कर पाना या उस में व्यवधान बर्दाश्त करने काबिल नहीं।
खैर हम वापस ब्लॉगर टिप्पणी फार्म पर आ गए हैं और ऊंचा और सुन्दर पहाड़ चढ़ कर उतरने पर मैदान की यह यात्रा अधिक प्रिय प्रतीत हो रही है। खोए हुए परिचित वापस मिल गए हैं। इस बीच जिन पाठकों को परेशानी हुई और टिप्पणियों से दोनों को वंचित होना पड़ा उन से क्षमा प्रार्थी हूँ, मेरी इस सनक के लिए।
हो सकता है इन्टेन्स डिबेट शायद कुछ महिनों या कुछ बरसों के बाद एक अच्छा साधन बने ब्लॉगर्स के लिए। या तब तक कुछ ब्लॉगर टिप्पणी फार्म और सिस्टम ही वे सब सुविधाएं प्रदान कर दे जो इंटेन्स डिबेट पर हैं।
पर फिलहाल इंटेन्स डिबेट को विदा। खुले में सांस लेने के लिए। या यूँ कहें लौट कर बुद्धू घऱ को आए।
अरे बहुत बढ़िया किया द्विवेदी जी! हम तो उस टिप्पणी प्रणाली से परेशान थे। हर बार नाम-गांव-गोत्र भरना पड़ता था। तब भी संशय रहता था।
जवाब देंहटाएंअब टिप्पणी में भी सहूलियत रहेगी और यह भी रहेगा कि कोई अन्य हमारे नाम से टिप्पणी नहीं ठोंक सकता! :)
नई तकनीक, नई चीजें, नए गॅजेट ललचाते बहुत हैं, और उनके दुर्गुणों का पता, अकसर उपयोग करने के बाद ही हो पता है.
जवाब देंहटाएंइंटेन्स डिबेट ने एक बार तो मुझे भी ललचाया था, परंतु इसके सर्वर पर टिप्पणियों की निर्भरता (टिप्पणी डाटाबेस ब्लॉगर के बजाए इंटेन्स पर बने रहने की)ने मुझे रोक दिया था. अच्छा हुआ आपने अपनी समस्या सार्वजनिक कर दी, अन्य़था कई अन्य इंटेन्स परेशान होते...
वो कहते है ना की जो होता है अच्छे के लिए ही होता है। :)
जवाब देंहटाएंभाई वाह लगता है पांडे जी वाला रोग आपको भी लग गया ....वैसे भी अभी अभी आपने समीर जी के ब्लॉग पर कविता को लेकर जो टिपण्णी की है.....वो मन को बहुत भायी.....
जवाब देंहटाएंआपके चिट्ठे पर उसे देख कर हम भी ललचाये थे, सोचा कि उसे लगा डालें.. मगर समय और साधन(नेट अभी घर पर नहीं है) की अनुपलब्धि ने ऐसा नहीं करने दिया.. खैर अच्छा ही हुआ.. :)
जवाब देंहटाएंmaeraa naam nahin diya , sameer ji ka aur baal kishan jii kaa diya , bahut naainsaafi haen insaaf kae darbaar mae
जवाब देंहटाएंरचना जी आप का नाम छूट जाने की गलती पर सिर्फ कान अपना कान पकड़ा जा सकता है। वैसे सब से पहली चेतावनी आप की ही थी और बार-बार मिली। पर आप इन्टेन्स डिबेट से निपटने के मेरे इस अभियान में टीम मेम्बर की तरह सम्मिलित हो गईं थीं,यही कारण रहा कि वही नाम छूट गया। "दिया तले अंधेरा" इसी को तो कहते हैं।
जवाब देंहटाएंमैंने तो आपसे उसका जुगाड़ भी पूछा था की कहाँ से लाये हैं. चलिए मोहभंग हुआ.
जवाब देंहटाएंअभिषेक जी जब आप ने पूछा था तब मैं खुद ही उस में उलझा था। सोचता था एक बार इस का अंत पता लग जाए तो सब को बताएँगे, और बता दिया।
जवाब देंहटाएंइसी बात पर लीजिए हमारी टिप्पणी
जवाब देंहटाएंबहुत आभार, सर जी. महाराज के दरबार में हमारी सुनवाई हो गई. अब इत्मिनान है. शुभकामनाऐं.
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंअभी देखा लिन्क , बडे काम की चीज है ..आभार इसके बारे मेँ बतलाने के लिये ..
जवाब देंहटाएंपरेशानी तो हो गई थी टिप्पणी करते वक्त ,अब जा के चैन आया.
जवाब देंहटाएंहम भी भुगते भये हैं, भाई ।
जवाब देंहटाएंइंटेंस डिबेट ने बहुत सताया,
बिरादरी से अलग करवाया ।
मेरी ब्लागिंग स्प्रिट को मरवाया ।
अपुन भी लौट के बुद्धु घर को आया ।