नव सम्वतसर के अवसर पर अनवरत और तीसरा खंबा के सभी पाठकों को शुभ कामनाएं।
जी हाँ, एक और नव-वर्ष प्रारंभ हो गया है, हमारे लोक जीवन में इस का बहुत महत्व है। इन दिनों दिन और रात की अवधि बराबर होती है। कभी मौसम में ठंडक होती है तो कभी गरमी सताती है। सर्दी के मौसम के फलों और सब्जियों का स्वाद चला जाता है। ग्रीष्म के फल और सब्जियाँ अपना महत्व बताने लगते हैं। भोजन में हरे धनिये की चटनी का स्थान पुदीना ले लेता है। कच्चे आम के अचार में स्वाद आने लगता है। बाजार में ठंडे पेय की बिक्री बढ़ जाती है। खान-पान पूरी तरह बदल जाता है।
अब हमारे पाचन तंत्र को भी इन नये खाद्यों के लिए नए सिरे से अभ्यास करना पड़ता है। जब भी हम कोई पुराना अभ्यास छोड़ते हैं और नया अपनाते हैं तो संक्रमण काल में कुछ नया करना होता है। इन दिनों यदि हम कम भोजन करें, अन्न के स्थान पर फलाहारी हो जाएं अथवा एक समय अन्न और एक समय फलाहारी रहें और वह भी आवश्यकता से कुछ कम लें तो इस संक्रमण काल को ठीक से निबाह सकते हैं।
शायद यही कारण है कि मौसम के इस संधि-काल में हमारे पूर्वजों ने नवरात्र का प्रावधान किया। जिस में व्रत-उपवास रखना, एक-दो घंटे स्वाध्याय करना शामिल किया। इस से संक्रमण काल को सही तरीके से बिताया जा सकता है, पुराने खाद्य का अभ्यास छूट जाता है और नए को अपनाना सुगम हो जाता है।
मैं चार-पाँच वर्षों से एक समय अन्न और एक समय फलाहार कर रहा हूँ। इस का नतीजा है कि मैं मौसमी रोगों का शिकार होने से बच रहा हूँ। विशेष रुप से उदर रोगों से।
आप को यह भी स्मरण करवा दूँ कि ऐसा ही मौसम परिवर्तन सितम्बर-अक्टूबर में भी होता है। उस समय शारदीय नवरात्र होते हैं।
एक और परम्परा याद आ रही है। दादाजी के सौजन्य से वे चैत्र की प्रतिपदा से नव-वर्ष के पहले दिन से नीम की कोंपलों को काली मिर्च के साथ पीस कर उस की कंचे जितनी बड़ी गोलियाँ बना लेते थे। सुबह मंगला आरती के बाद उन का भगवान को भोग लगाते और मंदिर में आए सभी दर्शनार्थियों को एक एक गोली प्रसाद के रूप में वितरित करते थे। हमें तो दो गोली प्रतिदिन खाना अनिवार्य था। उन का कहना था कि एक पखवाड़े, अर्थात पूर्णिमा तक इन के खाली पेट खा लेने से पूरे वर्ष मौसमी रोग नहीं सताते। शायद शरीर की इम्युनिटी बढ़ाने का उन का यह परंपरागत तरीका था। यह कितना सच है? यह तो कोई चिकित्सक इस की परीक्षा करके अथवा कोई आयुर्वेदिक चिकित्सक ही बता सकता है।
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बहुत दिनों के अन्तराल पर अपने उपस्थित हो सका हूँ। निजि और व्यवसायिक व्यस्तताएं और उन की कारण उत्पन्न थकान इस का कारण रहे। पाठक और प्रेमी जन इस अनुपस्थिति के लिए मेरे अवकाश को मंजूरी दे देंगे, ऐसा मुझे विश्वास है।
पुरानी छुट्टी मंजूर। अब आगे से काम में मन लगायें। नियमित लिखें।
जवाब देंहटाएंबहुत ही उपयोगी निज अनुभव हमसे बाँटने के लिये आभार।
जवाब देंहटाएंयाह तो बहुत सरल प्रयोग है। नीम भी मेरे घर में है। उदर की समस्यायें भी यदा कदा होती हैं। अत: प्रयोग अवश्य होगा जी।
जवाब देंहटाएंबाकी, एक समय अन्न और एक समय फलाहार थोड़ा कठिन जान पड़ता है।
जानकारी के लिये आभार...आपको भी बधाई एवं शुभ कामनाएं।
जवाब देंहटाएंशुक्रिया!!
जवाब देंहटाएंचलिए छुट्टी मंजूर की जाती है, आखिर वरिष्ठता का ध्यान भी रखना पड़ेगा न भई :)
तो अब आप वकालत के साथ-साथ स्वास्थ्य सम्बन्धी विषयों पर भी हम लोगों का ज्ञान बढायेंगे।
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छा लगा पढ़कर।
नीम की दातुन भी तो बहुत काम की होती है।
दिनेश जी थोडा सा नीम की गोलियो का प्रसाद हमे भी भेज दे जानकारी के लिये धन्यवाद
जवाब देंहटाएंदिनेश जी, इस प्रसाद के लिये मैं भी राज भाटिया जी के पीछे कतार में खड़ा हूं....बेहद, उमदा जानकारी।
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