नया साल अभी १ जनवरी को शाम 6 बजे सांझ ढलने के बाद शुरु हुआ। आप आने वाली सुबह, यानी जनवरी की सुबह को ही नए साल के सूरज की पहली किरन देख पाएंगे या देख पाए होंगे। 2008 की पहली जनवरी की सुबह जो सूरज की पहली किरन आप ने देखी, न देखी हो तो भी वह ईसा के 2007वें साल के आखिरी दिन की पहली किरन थी।
आप आश्चर्य में न पड़ें। यह बिलकुल सही है। एक साल 365 दिन और 6 घंटों का होता है। अब आप मेरे साथ गणित करते चलें। ईसा का पहला साल आधी रात को शुरु हुआ, और खत्म हुआ 365 दिन और 6 घंटों के बाद। दूसरा साल शुरू हुआ १ जनवरी २ को सुबह ६ बजे। इस के ठीक ३६५ दिन और ६ घंटों के बाद तीसरा साल शुरू हुआ 1 जनवरी 3 को दोपहर 12 बजे। चौथा साल शुरू हुआ 1 जनवरी 4 को शाम 6 बजे। और पांचवाँ साल? क्या 1 जनवरी 5 को रात 12 बजने के समय?
नहीं, पूरे एक दिन की गड़बड़ हो गयी। केलेण्डर बनाने वालों ने गड़बड़ को दूर कर दिया हर चौथे साल में एक दिन बेशी जोड़ कर। तब से हर चौथे साल में एक दिन 29 फरवरी बेशी होने लगा। पर यह गड़बड़ दूर होती है चौथे साल के फरवरी महीने में जा कर। इसलिए हर चौथा साल शुरू होता है १ जनवरी की शाम 6 बजे। 2008वाँ साल वही चौथा साल है।
हो गयी गणित ? अब इसे अगले साल तक याद रखें। पर यह भी याद रखें अगला साल 31 दिसम्बर की रात 12 बजे बाद शुरू हो जाएगा।
31 दिसम्बर 2007 की रात 12 बजने के करीब एक घंटे पहले मुझे सूचना मिली कि मेरे एक प्रिय संबंधी श्री डी.सी.शर्मा जी नहीं रहे। मैं एक जनवरी की सुबह पाँच बजे ही उन की अन्त्येष्टी में सम्मिलित होने के लिए सवाई माधोपुर के लिए रवाना हो गया और शाम छह बजे घर लौटा। तब जाकर मेरा नया साल 2008 शुरू हुआ। यह भी एक वजह है।
डी.सी.शर्मा जी मिलनसार, दूसरों के काम आने वाले दिलदार आदमी थे। जो भी उनसे मदद मांगता अपनी सामर्थ्यानुसार करते थे। वे राजस्थान पी.डब्लू.डी. में सहायक इंजीनियर के पद से सेवानिवृत्त हुए थे। मात्र 66 वर्ष की उन की आयु थी। उन की दूसरी पुत्री का विवाह मेरे छोटे भाई के साथ हुआ था। बाद में वे अपनी तीसरी पुत्री के लिए वर देखने कोटा आए तो संभावित वर के पिता ने उन से पूछा कि द्विवेदी जी तो गौड़ ब्राह्मण नहीं हैं? उन्हों ने कहा-मुझे पता नहीं कौन से हैं? उन्हीं से पूछ लीजिए। उन सज्जन ने फिर पूछा –फिर आप ने बिना जाने यह सम्बन्ध कैसे कर लिया? तो इस पर शर्मा जी बोले –भाई मेरी और वकील साहब (मैं) की जन्मपत्री मिल गयी और हम ने संबंध बना लिया। बाद में उन सज्जन का पुत्र शर्मा जी का दामाद नहीं बन सका।
शर्मा जी को मेरी विनम्र श्रद्घांजली। वे मेरी स्मृतियौं में अमिट रहेंगे।
सभी ब्लागर साथियों को नववर्ष पर बहुत-बहुत बधाइयाँ।
श्री शर्मा ने मानवीय सम्बंधों को जातीय गणित पर तरजीह देकर जाति को ह्यूमनाइज किया, बिना तथाकथित सुधारवादी हल्ले के। यही व्यापक पैमाने पर होना चाहिये।
जवाब देंहटाएंउन्हें श्रद्धांजली।
ओ ओ तो ये लोचा है 18 घंटे देर का!!
जवाब देंहटाएंशुक्रिया!!
शर्मा जी को हमारी भी श्रद्धांजलि