उधर बेनजीर के कत्ल की खबर टीवी पर आई और इधर ब्रॉडबेंड का बेंड बज गया शाम पाँच बजे नेट लौटा। खबर से मन खराब हो गया। कुछ लिखना चाहता था। लेकिन तब तक ब्लॉग जगत में इस पर बहुत कुछ आ चुका था और हत्या से विचलित मानवीय संवेदनाओं का ज्वार तब तक विमर्श तक पहुँच चुका था। जब भी कोई घटना दुनियां के एक बड़े जन समूह के मानस को झकझोर दे तो वह विमर्श के लिए सही समय होता है। सभी के सूत्र घटना से जुड़े होते हैं। यदि विमर्श की दिशा सही हो तो इस समय के विमर्श से सोच को एक नई और सही दिशा प्राप्त हो सकती है। हिन्दी ब्लॉगिंग आज ऐसे विमर्श की सामर्थ्य प्राप्त कर चुका है। वैश्विक आतंकवाद इस समय विश्व के एजेण्डे पर है। हिन्दी ब्लॉगिंग चाहे तो इस विमर्श को प्रारम्भ कर कम से कम भारतीय उप महाद्वीप में इस वैश्विक आतंकवाद के विरुद्ध सोच का एक नया सिलसिला शुरू कर सकती है।
आज वैश्विक आतंकवाद के विरुद्ध अमेरिका ने अविराम युद्ध की घोषणा की हुई है। पर क्या यह युद्घ आतंकवाद के विरुद्ध है? और क्या यह विश्व से आतंकवाद का समूल नाश करने में सक्षम है? क्या वैश्विक स्तर पर आतंकवाद को जन्म देने में खुद अमरीका की भूमिका प्रमुख नहीं? क्या अमरीका अब उन सभी कृत्यों से विमुख हो गया है जिन के कारण आतंकवाद जन्म ही नहीं लेता, अपितु फलता फूलता भी है? क्या आतंकवाद की समाप्ति के लिए अमरीकी पथ सही है? यदि नहीं तो सही रास्ता क्या है। इन तमाम प्रश्नों पर विचार किया जाना चाहिए।
आतंकवाद के विरुद्ध खड़े लोगों की कमी नहीं। आतंकवाद को धराशाई करना भी असंभव नहीं। लेकिन इस के खिलाफ सफलतापूर्वक तभी लड़ा जा सकता है जब पहले इस की जन्मभूमि की तलाश कर के इस का उत्पादन बन्द कर दिया जाए। यह एक लम्बा काम है। इस से भी पहले महत्वपूर्ण है, आतंकवाद के खिलाफ खड़े योद्धाओं की आपसी लड़ाई को समाप्त करना। यहां हो यह रहा है कि योद्धा इस बात को ले कर आपस में भिड़े हुए हैं कि, मेरा सोच ज्यादा सही है। फिर ऐसा वाक् युद्ध छेड़ देते हैं कि आतंकवाद को ही बल मिलता नजर आता है, आतंकवाद के खिलाफ खड़े होने वाले लोगों को वापस आतंकवाद के साथ खड़ा कर देते हैं। कभी तो लगने लगता है कि आतंकवाद के खिलाफ जोर जोर से बोलने वाले लोग उन्हीं के भाईबन्द हैं और उन्हीं की मदद कर रहे हैं।
आज शाम ब्रॉडबैंड शुरू होते ही सब से पहले हर्षवर्धन के 'बतंगड़' की पोस्ट पर टिप्पणी से ही काम शुरू किया। टिप्पणी अपलोड होती तब तक बैंड फिर बज गया। पता नहीं क्या गड़बड़ होती है 'ज्ञान' जी की तरह कोई हमारे बीच बीएसएनएल से भी होता तो अंदर की बात पता लगती रहती। अगर कोई हो भी तो सामने नहीं आया है। कोई हो उसे इस पोस्ट के बाद सामने आ ही जाना चाहिए। वरना फिजूल में ब्लॉंगर्स की आदत गालियां देने की पड़ जाएगी। वैसे एक टिप मिली है कि ये सब टेलीकॉम कम्पनियों के कम्पीटीशन का नतीजा भी हो सकता है। मै बतंगड़ पर की गई अपनी टिप्पणी यहां भी दे रहा हूँ। ताकि विमर्श का कोई रास्ता बने।
बतंगड़ पर की गई टिप्पणी-
हर्ष जी, कल खबर आते ही ब्रॉडबेंड का बैंड बज गया, अभी पाँच बजे नेट लौटा है। खबर से मन खराब हो गया। कुछ लिखना चाहता था। लेकिन अब तक ब्लॉग्स पर बहुत कुछ आ चुका है। आप की पोस्ट पर टिप्पणी से ही बात शुरू कर रहा हूँ। आप की पोस्ट के शीर्षक की अपील, पोस्ट पर कहीं नजर नहीं आई। आप ने जिन मुसलमानों से अपील की है, वे उन से अलग हैं जिन के लिए मिहिर भोज ने टिप्पणी की है। यह फर्क यदि मिहिर भोज समझ लें, तो हमें एक हीरा मिल जाए। वे यह भी समझ लें कि आप ने जिन मुसलमानों से अपील की है उन की संख्या मिहिर के इंगित मुसलमानों की संख्या से सौ गुना से भी अधिक है। मेरा तो मानना है कि एक सच्चा मुसलमान एक सच्चा हिन्दू, ईसाई, बौद्ध, जैन, और सर्वधर्मावलम्बी हो सकता है। जिस दिन हम यह फर्क चीन्ह लेंगे और सच्चे धर्मावलम्बी व इंसानियत के हामी एक मंच पर आ जाएंगे उस दिन से दुनियां में शान्ति की ताकतें विजयी होना शुरू हो जाएंगी। आतंकी कहीं नहीं टिक पाएंगे।
- दिनेशराय द्विवेदी
दिनेशजी मेरे लेख पर आई टिप्पणियों पर मैंने प्रति टिप्पणी की है। मौका लगे तो देखकर बताइए।
जवाब देंहटाएंhttp://batangad.blogspot.com/
दुनिया बचेगी जी, बुराई चाहे जितनी बड़ी हो जाये, अंतत आखिरी जीत सिर्फ इंसानियत की होगी। इसके अलावा कोई रास्ता नहीं है।
जवाब देंहटाएं"मेरा तो मानना है कि एक सच्चा मुसलमान एक सच्चा हिन्दू, ईसाई, बौद्ध, जैन, और सर्वधर्मावलम्बी हो सकता है। जिस दिन हम यह फर्क चीन्ह लेंगे और सच्चे धर्मावलम्बी व इंसानियत के हामी एक मंच पर आ जाएंगे उस दिन से दुनियां में शान्ति की ताकतें विजयी होना शुरू हो जाएंगी। आतंकी कहीं नहीं टिक पाएंगे।"
जवाब देंहटाएंदिनेश जी, मैं आपके लेख का, खास कर ऊपर जो उद्धरण मैं ने दिया है उसका दिल से अनुमोदन करता हूँ. आपने मेरे दिल की बात कह दी है.
वसुधैव कुटुम्बकम सर्वधर्मावलम्बी बनाने कि दिशा में एक कदम है.
पुनश्च: सालों के बाद "चीन्ह" शब्द देख कर अच्छा लगा. आजकल अधिकतर लोग इसका मतलब नहीं "चीन्ह" पाते!!
जवाब देंहटाएंआपकी बात से सहमत हूँ । किन्तु यह भी जोड़ना चाहती हूँ कि यदि किसी धर्म में आस्था न भी हो तब भी एक अच्छा मनुष्य बनना ही पर्याप्त है ।
जवाब देंहटाएंघुघूती बासूती
आतंकवाद को जब तक कानून-व्यवस्था की समस्या के रूप में नहीं देखा जाता, समस्या का खात्मा मुश्किल है. किसी को चाहे जितना दुख हो, कोई आर्थिक रूप से चाहे जितना पिछड़ा हो, किसी को शिक्षा मिले या न मिले, लेकिन इन सब समस्याओं की वजह से आतंकवाद फैले, ये बात हजम नहीं होती.
जवाब देंहटाएंटीवी के पैनल डिस्कशन और सेमिनार आयोजित कर आतंकवाद का खात्मा मुश्किल काम है.
शठे शाठ्यम समाचरेत।
जवाब देंहटाएंफिर भी, उससे बड़ा सत्य यह है कि व्यक्ति अपने धर्म को पहचाने और उसके अनुसार आचरण करे।
आपका लेख सोचने को बाध्य और प्रेरित करता है - यह बड़ी बात है।
हमारा भी यही हाल था, बेनजीर भुट्टो के निधन की खबर आई और नैट पर समाचार देखना चाहा तो नैट बंद हुआ सो वापस चौबीस घंटे बाद वापस चालू हुआ।
जवाब देंहटाएंकहीं आप भी टाटा के ग्राहक तो नहीं??
This is Swapnesh rattan. Today i read some blocks written by Dinesh Rai Dewedi Ji.
जवाब देंहटाएंI am fully agreed with Mr. Diwedi what ever he has written in his block" DUNIYA KO BACA LO ..." against Terrorism. His all questions about US Terrorism policy are very valid. Because on one end US is Against Terrorism and at other end US is providing all kind of supports to a country like Pakistan that is a hub for world Terrorism. Now this is right time for whole world to ask US about its policy against Terrorism. I think if one event is not good for US then it is Terrorism for US, but if worst then that event occurs any where in rest of world then that is not Terrorism according to US.
I hope that we will read so many blocks on different issues from Mr. Dewedi.
SWAPNESH RATTAN