अनवरत
क्या बतलाएँ दुनिया वालो! क्या-क्या देखा है हमने ...!
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शुक्रवार, 8 फ़रवरी 2013
विदेशी शब्दों की बाढ़
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ह मारे साहित्य के प्रत्येक युग में विदेशी शब्दों की एक बाढ़ सी हमारे यहाँ आई है। हमारा अपना युग भी इस का अपवाद नहीं है। और यह एक ऐसी च...
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ज्ञान का, और अन्धविश्वासों का सूत्रपात
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मा नव सदा अपनी आदिम अवस्था में नहीं रह सकता था, सदा प्रकृति और गोचर जगत की नाल से जुड़ा नहीं रह सकता था। पशु ही ऐसा है जो प्रकृति...
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बुधवार, 6 फ़रवरी 2013
एक पेजी मार्क्सवाद
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ब हुत लोग हैं जो मार्क्सवाद पर उसे बिना जाने बात करते हैं। उन्हें लगता है कि मार्क्सवाद को समझना कठिन है या वह बहुत विस्तृत है उस में सर...
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रविवार, 3 फ़रवरी 2013
मनुष्य समाज का भविष्य क्या है?
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व र्गहीन मानव समाज एक सपना नही अपितु यथार्थ है। मानव समाज को अस्तित्व में आए दो लाख वर्ष हुए हैं। इन में से 90 से 95 प्रतिशत समय उस ने व...
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मंगलवार, 29 जनवरी 2013
दुनिया के सभी श्रमजीवी एक कौम हैं।
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ज ब किसी ऐसे कारखाने में अचानक उत्पादन बंद हो जाए, जिस में डेढ़ दो हजार मजदूर कर्मचारी काम करते हों और प्रबंधन मौके से गायब हो जाए तो कर्मच...
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मंगलवार, 22 जनवरी 2013
ठहराव बिलकुल अच्छा नहीं
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को ई पाँच बरस पहले ब्लागिरी शुरु हुई थी। पहले ब्लाग तीसरा खंबा आरंभ हुआ और लगभग एक माह बाद अनवरत। धीरे धीरे गति बढ़ी और हर तीन दिन में कम स...
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बुधवार, 19 दिसंबर 2012
अपनी राजनीति खुद करनी होगी
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दि न भर अदालत में रहना होता है। लगभग रोज ही जलूस कलेक्ट्री पर प्रदर्शन करने आते हैं। पर उन में अधिकतर बनावटी होते हैं। उस रोज बहुत दिनों ...
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