अनवरत
क्या बतलाएँ दुनिया वालो! क्या-क्या देखा है हमने ...!
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गुरुवार, 28 मई 2009
सूत जी ने माना, वे सठिया गए हैं : इस युग का प्रधान वैषम्य : जनतन्तर कथा (35)
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हे, पाठक! सूत जी को नैमिषारण्य पहुँचे तीन दिन व्यतीत हो गए। चौथे दिन वे कार्यालय पहुँच कर पीछे से दो माह में हुई गतिविधियों के बारे में ...
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मंगलवार, 26 मई 2009
इस युग का प्रधान वैषम्य : जनतन्तर कथा (34)
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हे, पाठक! सूत जी ने शीतल जल ग्रहण किया। कण्ठ में नमी पहुँची तो आगे बोले -सनत! तुम लाल फ्रॉक वाली बहनों के बारे में जानना चाहते थे कि ये ...
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शनिवार, 23 मई 2009
सब पूँजी के चाकर : जनतन्तर कथा (33)
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हे, पाठक! साँयकाल सनत राजभवन की रौनक देखने चला गया और सूत जी नगर भ्रमण को। नगर में लोग अपने कामों व्यस्त रहते हुए बीच बीच में माध्यमों पर ...
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शुक्रवार, 22 मई 2009
मिथ्याभिमान का टूटना : जनतन्तर कथा (32)
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हे, पाठक! इधर राजधानी में अब सरकार निर्माण का काम चल रहा है। इस काम में बड़े बड़े दिग्गज जुटे हुए हैं। पहले घोषणा हुई थी कि पैंसठ मंत्री ...
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गुरुवार, 21 मई 2009
उत्सव मत्तता और शांतम् ज्वालाः : जनतन्तर कथा (31)
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हे, पाठक! अगले तीन दिन तक सूत जी और सनत दोनों विभिन्न दलों के कार्यालयों में गए और लोगों से मिलते रहे। बैक्टीरिया दल में उत्सव का वातावरण ...
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रविवार, 17 मई 2009
सब से बड़ा अंतर्विरोध शासक शक्तियों और जनता के बीच : जनतन्तर कथा (30)
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हे, पाठक! सनत और सूत जी प्रातः नित्य कर्म से निवृत्त होते उस के पूर्व ही माध्यमों ने परिणामों के रुझान दिखाना आरंभ कर दिया। प्रारंभिक सूच...
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शनिवार, 16 मई 2009
कौन चुनता है खेतपति? कौन बनाता है सरकारें? : जनतन्तर कथा (29)
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हे, पाठक! प्रातःकाल के नित्यकर्म से निवृत्त हो कर सूत जी और सनत यात्री आवास से बाहर बहुत गर्मी थी। अभी दोपहर होने में समय था लेकिन सूरज प...
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