अनवरत

क्या बतलाएँ दुनिया वालो! क्या-क्या देखा है हमने ...!

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शुक्रवार, 30 अप्रैल 2010

दादा जी! जरा अपने पोते पोतियों के दोस्त तो बनें!

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श्री  विष्णु बैरागी जी के ब्लाग एकोऽहम् पर कुछ दिन पहले एक पोस्ट थी  'वृद्धाश्रम: मकान या मानसिकता'। मैं ने इस पर टिप्पणी की थी ...
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दिनेशराय द्विवेदी
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