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Durgadan Singh Gaur
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शुक्रवार, 14 जनवरी 2011
नैण क्यूँ जळे रे म्हारो हिवड़ो बळे
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स ब के ताँई बड़ी सँकराँत को राम राम! ब खत खड़ताँ देर न्हँ लागे। दन-दन करताँ बरस खड़ग्यो, अर आज फेरूँ सँकराँत आगी। पाछले बरस आप के ताँईं ...
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