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बुधवार, 10 जून 2009
उद्यम भी श्रम ही है
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उद्यमैनेव सिध्यन्ति कार्याणि, न मनोरथै। नहि सुप्तस्य सिंहस्य: प्रविशन्ति मुखे मृगा:॥ हिन्दी के सक्रियतम ब्लागर (चिट्ठा जगत रेंक) श्री ज...
15 टिप्पणियां:
बुधवार, 21 जनवरी 2009
बाज़ार पर निगरानी न रखी जाए तो वह बेकाबू हो सकता है
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"पूंजीवादी अर्थव्यवस्था के बारे में बहस का यह न तो समय है, न ही गुंजाइश. लेकिन मौजूदा संकट से हमने सीखा है कि अगर बाज...
12 टिप्पणियां:
गुरुवार, 30 अक्टूबर 2008
किसे बचाने की आवश्यकता है? बैंकों को? नहीं, मनुष्य को?
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कल दो समाचार पढ़ने को मिले जिन्हों ने कार्ल मार्क्स की पुस्तक "पूंजी" को पढ़ने और समझने की इच्छा को और तीव्र कर दिया। अब लगता है उ...
14 टिप्पणियां:
शुक्रवार, 17 अक्टूबर 2008
बीस साल बाद? लौट रहा है उस का प्रेत
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बीस साल पहले जिसे दफ़्न कर दिया गया था। नगर के बीच की दीवार गिरा दी गई थी और उस के मलबे के ढेर के नीचे उस की कब्र को दबा दिया गया था। कभी न ...
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