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बुधवार, 30 अगस्त 2023

मुहूर्तों की निस्सारता

लेकिन मुहूर्त देखने का व्यवसाय करने वाले ब्राह्मणों, गैर ब्राह्मणों और अखबारों, वेबसाइटों और मीडिया ने आज भी भद्रा -भद्रा का जाप करके भसड़ मचा रखी है।

मुझे भी अपनी किशोरावस्था में ज्योतिष और पंडताई का काम दादाजी ने सिखाया, उद्देश्य यही था कि यदि जीवन में कुछ सार्थक नहीं कर सका तो ब्राह्मण का बच्चा है यही सब करके पेट भराई तो कर ही लेगा।

उस समय जो सीखा और बाद में खोजबीन करके पढ़ा उसके हिसाब से मेरी समझ में यह सारा ज्ञान मिथ्या है और केवल डराने और रोजी रोटी चलाने का जरिया मात्र है।

मेरी एक कविता है...

क्या जोशी, क्या डाक्टर, क्या वकील
डरे को और डरावे,
फिर डर से निकलने का रास्ता बतावै,
जो ऐसा न करे तो घर के गोदड़े बिकावै।

ज्यादातर ब्राह्मणों को भद्रा के मामले में शास्त्रीय तथ्यों का ज्ञान तक नहीं है, वे भद्रा भद्रा करके लोगों को डराते हैं।

हालाँकि किसी भी ग्रंथ में रक्षाबंधन, प्रथम श्रावणी के अलावा बाद वाले श्रावणी कर्म और श्रवण पूजा हेतु शुभाशुभ देखने की जरूरत होने के बारे में कुछ भी नहीं कह रखा है। इसलिए कभी भी रक्षाबंधन मनाया जा सकता है।

महुर्त चिंतामणि ग्रन्थ कहता है, पूर्णिमा तिथि के पूर्वार्थ में भद्रा रहती है, तथा तिथि के पूर्वार्ध में होने वाली भद्रा रात्रि में शुभ होती है। इस का सीधा अर्थ है कि आज 10.58 सुबह से पूर्णिमा आरंभ हो रही है उसमें पूर्वार्ध में अर्थात रात्रि 9.01 तक भद्रा रहेगी। लेकिन तिथि के पूर्वार्ध की भद्रा होने से रात्रि में शुभ है। जिसका अर्थ है कि सूर्यास्त के बाद वह शुभ है, सूर्यास्त के बाद रक्षाबंधन मनाया जा सकता है।

इसलिए जिन्हें रक्षाबंधन मनाना है मुहूर्त की टेंशन छोड़ो, मस्ती से पूरे दिन और रात कभी भी रक्षाबंधन मनाओ।


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