ध्रुव ने जब से होश संभाला विष्णु भक्ति में ही लीन रहा। राजा उत्तानपाद का औरस पुत्र होते हुए भी उसे अपने पिता से सौतेला व्यवहार मिला। फिर एक दिन विष्णु को ध्रुव पर पिता के सौतेले व्यवहार के कारण दया आ गयी या उसकी भक्ति से प्रसन्न हो गए। (जरूर भक्ति से ही प्रसन्न हुए होंगे नहीं तो अधिकतर लोगों के साथ दुनिया में सौतेला व्यवहार होता है पर विष्णु नहीं पसीजते। खैर!
तो विष्णु प्रकट हुए और अपना शंख ध्रुव के सिर के इर्द-गिर्द घुमाया। बस बेपढ़े लिखे, अशिक्षित ध्रुव को दुनिया का सारा ज्ञान प्राप्त हो गया।
इससे यह शिक्षा मिलती है कि पढ़ने लिखने में कुछ नहीं धरा। बस विष्णु की आराधना करो। एक दिन विष्णु प्रकट होकर सिर के इर्द-गिर्द अपना शंख घुमाएंगे और भक्त को दुनिया का सारा ज्ञान प्राप्त हो जाएगा।
डिसक्लेमर :
इस कहानी की शिक्षा पर भरोसा मत करना। मैंने ध्रुव की कथा पढ़ी और चित्र देखे तो मुझे भी चार साल की उम्र में एक दो सप्ताह तक यही इलहाम रहा। सोचता रहा कि विष्णु की भक्ति करेंगे। लेकिन इस कहानी को पढ़ाने वाले मेरे पिताजी ने ही मुझसे कहा कि पढ़ने लिखने से ही ज्ञान आएगा, विष्णु की भक्ति से नहीं। सो मैं पढने लिखने लगा। इसलिए तुम भी खूब दिल लगा कर पढ़ना। भक्ति-वक्ति में कुछ नहीं धरा। यह पुराण कथा है, पूरी तरह काल्पनिक है। बुहत पुरानी है। इतनी पुरानी कि तब तक किसी के दिमाग में विष्णु के अवतारों की कल्पना तक नहीं उपजी थी। देवराज इन्द्र अपने कारनामों से बदनाम हो गया था। देवताओं को नया नायक चाहिए था। उन्होंने इन्द्र के छोटे भाई विष्णु को प्रमोट करना शुरु कर दिया। सारे अवतारों की कहानियाँ भी बाद में उपजी। ये कथा बस आनन्द लेने के लिए है। आनन्द लो और भूल जाओ।
कथा सागर
जवाब देंहटाएंआनन्द लो और भूल जाओ।
सादर